गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के तर्ज़ पर बिहार में भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को नियमित करें….ग्रेड 3 और ग्रेड 4 के सरकारी कर्मचारी के रूप में इन आंगनवाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं का नियोजन सुनिश्चित करें-मनीषा कुमारी।

रिपोर्ट अमरदीप नारायण प्रसाद

अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका महासंघ (AIFAWH) आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं की सेवाओं के संबंध में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा आज जारी किए गए निर्णय का स्वागत करता है। गुजरात उच्च न्यायालय नें केंद्र एवं राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से एक नीति बनाने का निर्देश दिया है जिसके तहत् आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं एवं सहायिकाओं को गुजरात सिविल सेवा (वर्गीकरण एवं भर्ती) (सामान्य) नियम, 1967 के तहत वर्ग 3 एवं वर्ग 4 के राज्य कर्मचारियों के रूप में नियमित किया जाएगा।

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एकलपीठ में न्यायमूर्ति निखिल करियल ने निर्देश दिया है कि जब तक सरकार नीति तय नहीं कर लेती, याचिकाकर्ता राज्य सरकार के तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पदों के बराबर न्यूनतम वेतन पाने के हकदार हैं।

हम गुजरात उच्च न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियों की भी सराहना करते हैं। उच्च न्यायालय नें एक बहुत हीं उल्लेखनीय टिप्पणी की है जिसमें उसनें कहा है कि एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता पैरामेडिकल काउंसलर, समन्वयक, जनसंपर्क प्रबंधक, इवेंट मैनेजर, क्लर्क, प्रीस्कूल शिक्षक सहित कई काम करता है और उन्हें आंगनवाड़ी केंद्र पर लगभग 7 घंटे काम भी करना पड़ता है। राज्य और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के बीच का रिश्ता नियोक्ता और नियुक्तिकर्ता यानी मालिक और नौकर का है।

सरकार आईसीडीएस कार्यक्रम चलाने में बहुत गर्व महसूस करती है, लेकिन कार्यकर्ताओं को बहुत कम पैसे देती है। गुजरात उच्च न्यायालय नें उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर निर्णय अपलोड करने की तिथि से छह महीने के भीतर नियम बनाने का आदेश दिया।

अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका महासंघ मांग करता है कि गुजरात सरकार उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित समय सीमा में इस निर्णय को लागू करे।

स्मरण रहे कि इससे पहले 2022 में ग्रेच्युटी के संबंध में सुप्रीम कोर्ट नें भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका देश के दो बहुत महत्वपूर्ण कानूनों, खाद्य सुरक्षा अधिनियम और शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत् वैधानिक सेवाएं देती हैं, जिन्हें आईसीडीएस/आंगनवाड़ी केंद्र के माध्यम से क्रियान्वित किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ तौर पर कहा गया था कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम के तहत ग्रेच्युटी की हकदार हैं और उन्हें मिलने वाला पारिश्रमिक ‘मजदूरी’ है। सुप्रीम कोर्ट नें राज्य और केंद्र सरकारों को संयुक्त रूप से आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की सेवा शर्तों में सुधार करने का निर्देश दिया था। एआईएफएडब्ल्यूएच द्वारा बार-बार मांग के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार नें अभी तक इनमें से किसी भी निर्देश को लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। इसके बजाय, नवीनतम बजट में भी आईसीडीएस के लिए आवंटन में 300 करोड़ रुपये की कटौती की गई है।

बाल कुपोषण से निपटने और प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण योजना आईसीडीएस के 50 वर्ष पूरे होने पर, एआईएफएडब्ल्यूएच आईसीडीएस के संस्थागतकरण और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों के नियमितीकरण की अपनी मांग दोहराता है।

एआईएफएडब्ल्यूएच, बिहार इकाई मांग करता है कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्देशों और गुजरात उच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के अनुसार यथाशीघ्र पूरे देश में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के नियमितीकरण की प्रक्रिया शुरू करे।

अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका महासंघ सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं से आह्वान करता है कि वे 14 नवंबर, 2024 को बाल दिवस पर जिला/स्थानीय स्तर पर अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका महासंघ (AIFAWH) द्वारा आहूत बड़े पैमाने पर कार्रवाई में शामिल हों, ताकि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के नियमितीकरण और आईसीडीएस को मजबूत करने की मांगों पर जोर दिया जा सके।
समाजवादी महिला सभा की अध्यक्ष सह पूर्व जिला परिषद प्रत्याशी मनीषा कुमारी नें कहा कि बिहार राज्य में कार्यरत लाखों आंगनवाड़ी सेविकाओं, सहायिकाओं की तरफ से बिहार सरकार से गुजारिश करतें हैं कि बिहार राज्य में भी गुजरात हाईकोर्ट के निर्णय के आलोक में जरुरी कदम उठाए।

मनीषा कुमारी
अध्यक्ष
समाजवादी महिला सभा, बिहार
संयोजक, अखिल भारतीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिका महासंघ, बिहार इकाई।

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