दुनियां – जब पूरी दुनिया थी अमेरिका के खिलाफ तो सिर्फ इजराइल खड़ा था साथ, जानें क्या है मामला? – #INA

क्यूबा पर दशकों से लागू अमेरिकी प्रतिबंधों को खत्म करने के लिए लाए गए प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में जोरदार समर्थन मिला है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा पर लगे आर्थिक, व्यापारिक और वित्तीय प्रतिबंधों को खत्म करने के लिए क्यूबा की ओर से एक प्रस्ताव लाया गया था, वोटिंग के दौरान भारत समेत 187 देशों ने प्रतिबंध हटाने की अपील का समर्थन किया है.
दरअसल इन प्रतिबंधों के चलते क्यूबा को विकास के मौके नहीं मिल पा रहे हैं, जिसकी वजह से क्यूबा लगातार इन प्रतिबंधों को खत्म करने की मांग कर रहा है. हालांकि 2015 और 2016 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इन प्रतिबंधों को लेकर कई पहलुओं में बदलाव किए थे लेकिन, 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन्हें फिर से मजबूती से लागू कर दिया.
सिर्फ इजराइल ने दिया अमेरिका का साथ
अमेरिका और इजराइल ने UN महासभा में प्रस्ताव के खिलाफ वोट डाला, तो वहीं मोलदोवा ने मतदान में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. पिछले साल भी जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्यूबा पर लागू अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ प्रस्ताव लाया गया था तब भी सिर्फ इजराइल ने ही अमेरिका का साथ दिया था. हैरानी की बात ये है कि करीब 3 दशक से इस प्रस्ताव को UN की जनरल असेंबली से पारित किया जाता रहा है. लेकिन अमेरिका, क्यूबा पर लगे प्रतिबंधों को हटाने को राजी नहीं हुआ है.
अर्जेंटीना में चली गई विदेश मंत्री की कुर्सी
उधर क्यूबा के इस प्रस्ताव का समर्थन करने पर अर्जेंटीना में बड़ा सियासी घमासान मचा है. अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाने के पक्ष में मतदान करने के चलते विदेश मंत्री डायना मोंडिनो को राष्ट्रपति ने बर्खास्त कर दिया है. राष्ट्रपति के प्रवक्ता मैनुअल एडोर्नी ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म X पर पोस्ट कर कहा कि अर्जेंटीना की विदेश मंत्री डायना मोंडिनो को पद से हटा दिया गया है. उन्होंने मोंडिनो की जगह पर अमेरिका में अर्जेंटीना के राजदूत गेरार्डो वर्थीन को नियुक्त किए जाने की भी जानकारी दी है.
6 दशक पहले क्यूबा पर लगा था प्रतिबंध
अमेरिका ने क्यूबा पर करीब 6 दशक से आर्थिक, व्यापारिक और वित्तीय प्रतिबंध लगा रखे हैं. 1960 में क्यूबा पर सबसे पहली बार इन प्रतिबंधों को थोपा गया था, जिसके विरोध में पिछले करीब 3 दशक से हर साल संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह प्रस्ताव पेश किया जाता है. यह प्रतिबंध क्यूबा में फिदेल कास्त्रो की क्रांति और अमेरिकी संपत्तियों के राष्ट्रीयकरण के बाद लगाया गया था. इसे लगातार कई दशकों से ग्लोबल लीडर्स की ओर से चुनौती दी जाती रही है, क्योंकि इन प्रतिबंधों से क्यूबा को जरूरी संसाधन और विकास के अवसर नहीं मिल पा रहे हैं.
भारत ने प्रतिबंध को लेकर क्या कहा ?
UN में भारत की फर्स्ट सेक्रेटरी स्नेहा दुबे ने कहा कि ‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर भारत इस सभा के साथ एकजुटता में खड़ा है, जो विदेशी प्रभाव वाले घरेलू कानूनों को स्पष्ट रूप से खारिज करता है.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रतिबंध क्यूबा के निरंतर विकास के ‘2030 एजेंडे’ की प्रगति में बाधा डालता है.
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रतिबंधों से मुक्त माहौल को बढ़ावा देने के लिए प्रयासों को तेज़ करने की जरूरत है. भारत को उम्मीद है कि क्यूबा पर लगा प्रतिबंध जल्द से जल्द हटा लिया जाएगा.
हमें विकास का अवसर चाहिए- क्यूबा
क्यूबा के विदेश मंत्री ब्रूनो रोड्रिग्ज ने क्यूबा के ऊर्जा संसाधनों को प्रतिबंधित करने, द्वीप के आर्थिक संकट और हाल ही में ब्लैकआउट को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अमेरिकी प्रतिबंध की आलोचना की. उन्होंने देश की वास्तविक क्षमता और योग्यता विकसित करने के अवसर की मांग की. साथ ही उन्होंने अमेरिका के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि प्रतिबंध का उद्देश्य क्यूबा के लोगों की मदद करना है.
अमेरिका ने लोकतंत्र का दिया हवाला
क्यूबा पर लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर अमेरिका ने लोकतंत्र और मानवाधिकारों की दुहाई दी है. अमेरिका के डिप्टी एंबेसडर पॉल फॉल्सबी ने UNGA में कहा है कि ‘अमेरिका क्यूबा के लोगों के मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का सम्मान करने वाले भविष्य की खोज का समर्थन करता है. उन्होंने कहा कि यह प्रतिबंध क्यूबा में लोकतंत्र को बढ़ावा देने और मानवाधिकारों के सम्मान को बढ़ावा देने का प्रयास है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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