दुनियां – PM मोदी की 16वें ब्रिक्स सम्मेलन में जिनपिंग से हो सकती है मुलाकात, भारत-चीन रिश्तों की नई शुरुआत? – #INA

रूस के कजान शहर में 22-23 अक्टूबर को 16 वें ब्रिक्स सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी न सिर्फ भारत-रूस संबंधों को मजबूत करेगी, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी गहरा प्रभाव डालेगी. रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर विश्व के शीर्ष नेताओं का रूस में एकत्रित होना पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की कोशिशों की विफलता का संकेत है. इस सम्मेलन में संभावित मोदी-शी जिनपिंग मुलाकात से भारत-चीन संबंधों की नई दिशा तय हो सकती है.
ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक मंच के रूप में उभर रहा है, जिसमें नई ताकतें शामिल हो रही हैं. 2023 के सम्मेलन में सऊदी अरब, ईरान, मिस्र, और यूएई जैसे देशों की सदस्यता ने इसे और व्यापक बना दिया. ब्रिक्स अब 60 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी और 37.4 प्रतिशत वैश्विक सकल उत्पाद का प्रतिनिधित्व करता है, जो इसे group of seven (G7) से भी ज्यादा शक्तिशाली बनाता है. इस बढ़ते संगठन की भूमिका आने वाले दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल सकती है और भारत की इसमें भागीदारी इसे और मजबूत कर रही है.
रूस की भूमिका और पश्चिम की विफलता
रूस पर अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों के बावजूद, इस ब्रिक्स सम्मेलन ने साबित किया है कि रूस अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने प्रभाव को खो नहीं रहा है. अमेरिका और पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की नीति अब तक सफल नहीं हो पाई है.कजान में होने वाला यह सम्मेलन दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्षों को रूस की ओर आकर्षित कर रहा है. इसमें न सिर्फ रूस के करीबी साझेदार शामिल हैं, बल्कि कई नए उभरते राष्ट्र भी हिस्सा ले रहे हैं जो रूस के साथ अपने रिश्ते मजबूत करना चाहते हैं.
पीएम मोदी-शी जीनपिंग की मुलाकात!
साल 2020 में भारत-चीन सीमा विवाद के बाद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इस सम्मेलन में मुलाकात की पूरी संभावना है. यह बैठक दोनों देशों के बीच संबंधों की बहाली के लिए अहम मानी जा रही है. चीन और भारत के बीच लगातार तनाव के बावजूद, इस मुलाकात से दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी पर नए सिरे से बातचीत की उम्मीद है. रूस की इस प्रक्रिया में मध्यस्थता की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि रूस भारत और चीन दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है.
भारत-रूस रिश्ते, भविष्य की दिशा
ब्रिक्स सम्मेलन में भाग लेने रूस पहुंचे प्रधानमंत्री मोदी की इस साल यह दूसरा रुस दौरा है. 8-9 जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच मॉस्को में हुई मुलाकातों ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा. अब 22 अक्टूबर को एक बार फिर दोनों नेता द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे और उसके बाद ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान दूसरे सहयोगी देशों के साथ मंच साझा करेंगे.
भारत और रूस के बीच लंबे समय से चल रही विशेष रणनीतिक साझेदारी ने दोनों देशों के बीच सहयोग को और गहरा किया है. इस ब्रिक्स सम्मेलन के जरिए प्रधानमंत्री मोदी का रूस दौरा इस साझेदारी को और मजबूत करने का मौका होगा. रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखते हुए वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखी है. इस सम्मेलन के जरिए, भारत और रूस न केवल अपने आर्थिक और रक्षा सहयोग को बढ़ा सकते हैं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी जरूरी प्रभाव डाल सकते हैं.
वैश्विक राजनीति में ब्रिक्स 2024
रूस बनाम नाटो और इजराइल-मध्य पूर्व संघर्ष के बीच इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन वैश्विक राजनीति में अहम साबित होने वाला है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में डॉलर के प्रभुत्व से परे ब्रिक्स करेंसी लाने पर गंभीरता से विचार हो रहा है . अमेरिका के मनमाने तरीके से प्रतिबंधों के खिलाफ भी बाकी दुनिया को ब्रिक्स एक मंच प्रदान करेगा.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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