दुनियां – US Election: हैरिस और ट्रंप में से किसी को भी बहुमत नहीं मिला तो क्या होगा? – #INA

अमेरिकी जनता आज अपने 47वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए वोट करेगी. राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प और डेमोक्रेटिक पार्टी की कमला हैरिस के बीच सीधा मुकाबला है. जितने भी सर्वेज अबतक सामने आए हैं, उसके मुताबिक ट्रंप और हैरिस के बीच मुकाबला इतने कांटे का है कि एक प्रतिशत वोट इधर से उधर होने पर खेल बन या बिगड़ सकता है.
राष्ट्रपति की कुर्सी पर काबिज होने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 के जादुई आंकड़े को पार करना जरूरी है. यूएस में चूंकि जनता सीधे अपना राष्ट्रपति नहीं चुनती इसके बजाए वो पहले कुछ लोगों को वोट देती हैं जिन्हें इलेक्टर्स (प्रतिनिधि) कहते हैं. इन इलेक्टर्स की कुल संख्या 538 है. इन्हीं इलेक्टर्स के समूह को इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है. यही कॉलेज आखिरकार राष्ट्रपति भी तय करता है. इस तरह, अमेरिका में प्रेसिडेंट बनने के लिए कम से कम 270 इलेक्टोरल मत जरुरी होते हैं.
मगर अमेरिकी चुनावी में कोई पार्टी 270 इलेक्टोरल वोट न हासिल कर पाए तो फिर उस स्थिति में राष्ट्रपति कैसा चुना जाता है? कैसी होती है पूरी प्रक्रिया और क्या इस प्रोसेस के जरिए राष्ट्रपति चुनने में देरी भी हो सकती है? आइए समझते हैं…
तो अमेरिका में अगर कोई भी पार्टी बहुमत तक नहीं पहुंच पाती है तो मामला पहुंचता है अमेरिकी संसद कांग्रेस में. यहां का निचला संदन जिसे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव कहते हैं वो राष्ट्रपति का चुनाव करता है. ये भारत की लोकसभा की तरह है. इस तरह के चुनाव को अमेरिकी संविधान में कंटिंजेंट इलेक्शन (वैकल्पिक चुनाव) कहा जाता है.
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (निचले सदन) में कुल 435 प्रतिनिधि होते हैं. लेकिन इस कंटिंंजेंट वोटिंग में हर राज्य को एक ही वोट मिलता है. अमेरिका में फिलहाल 50 राज्य है तो कुल वोट 50 पड़ते हैं, इसमें से जो कैंडिडेट 26 वोट जुटा लेता है, प्रेसिडेंट बन जाता है. वहीं उपराष्ट्रपति को चुनने का दारोमदार संसद के उच्च सदन यानी सीनेट के पास होता है. जिसमें 100 सीनेटर्स होते हैं.
अमेरिकी इतिहास में दो बार ऐसा चुनाव हुआ
अमेरिका के इतिहास में दो बार ऐसा हो चुका है. पहला हुआ साल 1800 में, अमेरिका के चौथे राष्ट्रपति चुनाव के दौरान. मैदान में थे डेमोक्रेटिक-रिपब्लिकन पार्टी के नेता थॉमस जेफरसन और आरोन बार. और दूसरे तीसरे नंबर पर फेडरलिस्ट से उम्मीदवार थे. इस साल किसी को बहुमत न मिलने पर हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव ने थॉमस जेफर्सन को राष्ट्रपति चुना था. मगर यहां भी बात ध्यान दें कि उस वक्त कंटिंजिंट इलेक्शन के लिए नियम तय करने वाला 12वां संशोधन नहीं हुआ था.
फिर 12वें संशोधन के बाद 1824 के राष्ट्रपति चुनाव में ऐसा दूसरा कारनामा हुआ. इस चुनाव में मुख्य मुकाबला एंड्रयू जैक्सन, जॉन क्विसी एडम्स, विलियम क्रॉफर्ड और हेनरी क्ले के बीच था. नतीजे के बाद जैक्सन को सबसे ज्यादा पॉपुलर वोट तो मिले ही, साथ ही बाकी उम्मीदवारों के मुकाबले इलेक्टोरल वोट्स में भी बढ़त हासिल रही.
इस साल जैक्सन ने 99 इलेक्टोरल वोट हासिल किए थे मगर बहुमत के लिए उन्हें 131 वोटों की दरकार थी. यानी बहुमत के जादुई आंकड़े से 32 पायदान पीछे थे. वहीं बाकी के तीन कैंडिडेट्स: एडम्स 84, क्रॉफर्ड 41 तो हेनरी क्ले 37 इलेक्टोरल वोट्स के साथ चुनावी नतीजों में दूसरे, तीसरे और चौथे नंबर पर रह गए थे.
अब चूंकि चारों उम्मीदवार ही राष्ट्रपति बनने के लिए जरुरी संख्या से काफी पीछे थे तो मामला हाउस ऑफ रिप्रेंजेंटेटिव्स के पास गया. उस वक्त अमेरिका में 24 राज्य ही थे तो प्रेसिडेंट बनने के लिए आधे से ज्यादा यानी 13 वोट की जरुरत थी. हाउस में वोटिंग हुई तो एडम्स को राष्ट्रपति चुन लिया गया.
क्या मतदान में कोई रूकावट आ सकती है?
हां, ऐसा बिल्कुल संभव है. क्योंकि अगर हाउस ऑफ रिप्रेजेंटिव में 50 वोट पड़ेंगे तो हो सकता है यहां भी डेडलॉक की स्थिति बन जाए. इसे ऐसे समझिए कि अगर एक पार्टी के पास दूसरे की तुलना में ज्यादा राज्य प्रतिनिधि हैं, तो उस पार्टी को टाई वाले चुनाव में जरुरी 26 वोट मिलने की अधिक संभावना होगी.
अगर राष्ट्रपति पद के लिए प्रतिनिधि सभा में भी बराबरी होती है, तो मतदान तब तक दोहराया जाता है जब तक कि एक उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिल जाता. लेकिन अगर इनॉगरेशन डे यानी 20 जनवरी 2025 तक कोई विजेता घोषित नहीं होता है तो सीनेट में जो भी निर्वाचित उपराष्ट्रपति होगा वो ही एक्टिंग राष्ट्रपति की भूमिका में रहेगा. और अगर सीनेट भी उपराष्ट्रपति चुनने में नाकाम रहता है, तो Presidential Succession Act के तहत सदन के अध्यक्ष को कार्यवाहक राष्ट्रपति बना दिया जाता है.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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