देश – निज्जर हत्याकांड है बहाना, जस्टिन ट्रूडो का टारगेट अगले साल चुनाव में सिखों का एकमुश्त वोट पाना – #INA

कनाडा के साथ भारत के रिश्ते बीते साल ही निचले स्तर पर चले गए थे, लेकिन कुछ महीनों से स्थिरता देखी जा रही थी। अब फिर से दोनों देश खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर के मसले पर आमने-सामने हैं। यहां तक कि भारत ने कनाडा में अपने राजनियकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए उच्चायुक्त समेत 6 अधिकारियों को वापस बुला लिया है। खबर है कि कनाडा की ओर से नियुक्त होने वाले नए उच्चायुक्त क्रिस्टोफर कूटर को भी भारत सरकार अनुमति देने के मूड में नहीं है। यह पूरा विवाद उस बात से शुरू हुआ, जिसमें कनाडा कहा था कि निज्जर की हत्या के मामले में भारतीय उच्चायुक्त एवं अन्य राजनयिक ‘पर्सन ऑफ इंटरेस्ट’ हैं।

इसी से भड़के भारत ने कनाडा से अपने राजनयिकों को वापस बुला लिया है। यही नहीं विदेश मंत्रालय ने कनाडा की जस्टिन ट्रूडो पर आरोप लगाया कि वह वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसा कर रही है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि बिना किसी तथ्य के कनाडा भारत को बदनाम करने की कोशिश में है और यह सब कुछ वोट बैंक पॉलिटिक्स के लिए किया जा रहा है। मंत्रालय ने कहा, ‘पीएम ट्रूडो का भारत विरोधी रवैया पुराना है। उनकी कैबिनेट में ऐसे लोग हैं, जो अतिवादी हैं और भारत के खिलाफ अलगाववादी एजेंडा चलाते रहे हैं। इसके अलावा ट्रूडो ने जिस तरह दिसंबर 2020 में भारत के आंतरिक मामले में दखल की कोशिश की, उससे भी असली चेहरा उजागर हुआ था।’

भारत के इन आरोपों में दम भी प्रतीत होता है। इसकी वजह यह है कि अगले साल ही कनाडा में चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले जस्टिन ट्रूडो सरकार सिखों का एकमुश्त वोट पाने के लिए भारत विरोधी एजेंडा चल रही है। कनाडा में खालिस्तानी तत्वों का प्रभाव बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है और उनका गुरुद्वारों पर भी नियंत्रण है। ऐसे में वे सिखों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। इसे इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि कनाडा के कुल 388 सांसदों में से 18 सिख हैं। कनाडा की कुल 8 ऐसी सीटें हैं, जिन पर पूरी तरह सिखों का होल्ड है। इसके अलावा 15 अन्य पर वे ही हार-जीत तय करते हैं। ऐसी स्थिति में कोई भी राजनीतिक दल उन्हें नाराज नहीं करना चाहता।

गुरुद्वारों पर खालिस्तानियों का कंट्रोल, कैसे मजबूत है शिकंजा

सिखों का कनाडा में इसलिए भी प्रभाव बड़ा है क्योंकि आबादी के साथ ही वे फंडिंग में भी मजबूत हैं। कनाडा में गुरुद्वारों का बड़ा नेटवर्क है और उन पर खालिस्तानी तत्वों ने नियंत्रण जमा रखा है। इन्हें बड़े पैमाने पर अनुदान मिलता है और उस रकम को इलेक्शन कैंपेन में भी वे देते हैं। इससे सरकार को वे अपने पक्ष में कर पाते हैं और सरकार भी इस फंडिंग के लालच में उन्हें नाराज नहीं करना चाहती। कनाडा में सिखों की आबादी ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन में बसे सिखों को मिलाकर भी ज्यादा है।

कैसे कनाडाई पीएम का नाम पड़ गया ‘जस्टिन सिंह ट्रूडो’

सिख कनाडा की आबादी का केवल 2.1% हैं, लेकिन ब्रिटिश कोलंबिया और ओंटारियो जैसे प्रमुख क्षेत्रों में वे एक निर्णायक वोट बैंक हैं। ट्रूडो 2015 से सत्ता में हैं पर दूसरे दलों के समर्थन से सरकार चला रहे हैं। ऐसे में अगले साल अक्टूबर में होने वाले चुनाव में सिख समुदाय को लुभाना उनके जरूरी हो गया है। सिख वोटर्स की अहमियत इसी बात से समझी जा सकती है कि ट्रूडो ने 2015 में गर्व से कहा था कि उनकी कैबिनेट में जितने सिख शामिल हैं, उतने भारत की कैबिनेट में भी नहीं हैं। उनके पहले कार्यकाल में चार सिख मंत्री थे। इसी कारण से ट्रूडो को मज़ाक में ‘जस्टिन सिंह ट्रूडो’ कहा जाने लगा।

क्यों कम होकर भी ज्यादा मजबूत वोटबैंक हैं सिख

ईसाई, मुस्लिम और हिंदुओं के बाद कनाडा में सिखों की आबादी चौथे नंबर पर है। गुरुद्वारे के नेटवर्क के चलते उनकी फंडिंग मजबूत है और एकमत होकर मतदान करने के चलते वे एकमुश्त इलेक्टोरल ब्लॉक बन चुके हैं। इसके चलते जस्टिन ट्रूडो सरकार उन्हें और खासतौर पर राजनीतिक सक्रियता ज्यादा रखने वाले खालिस्तानी तत्वों को नाराज नहीं करना चाहती। खालिस्तानी तत्व वहां इतने हिंसक और वोकल हैं कि आम भारतीय सिख कई बार खुलकर विरोध नहीं कर पाते। कनाडा में पंजाबी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। पहले पर इंग्लिश और दूसरे पर फ्रेंच है। सिखों ने कनाडा में कंस्ट्रक्शन, ट्रांसपोर्ट और बैंकिंग सेक्टर में अच्छी पैठ बनाई है।

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