देश- पंजाब में पराली जलाने की समस्या का समाधान बन रही है सुपर सीडिंग मशीन!- #NA

देश की राजधानी दिल्ली में इस वक्त आबोहवा सांस लेने लायक नहीं है. AQI का स्तर 350 से ऊपर है. जिसका कारण प्रदूषण और पड़ोसी राज्यों में धान की कटाई के बाद खेतों में पड़ी पराली जलाना है. खासकर सितंबर से दिसंबर के बीच दिल्ली-NCR के आसमान में स्मॉग छाया रहता है. मामला देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा है. कोर्ट की सख्ती और किसानों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के बावजूद पराली जलाने पर पूरी तरह से रोक नहीं लग पाई है.
हालांकि, पंजाब सरकार का दावा है कि पिछले 2 सालों में पराली जलाने की घटनाओं में 70-80 फीसदी तक कमी आई है. आखिर पंजाब में किसान क्या तरीका अपना रहे यह जानने के लिए दिल्ली से 370 किलोमीटर दूर होशियारपुर पहुंची TV9 भारतवर्ष की टीम. होशियारपुर के एक खेत में पड़ी पराली को हटाने के लिए हमें किसान सुपर सीडर मशीन का इस्तेमाल करते मिले.
दरअसल, कृषि वैज्ञानिकों ने पराली की समस्या से छुटकारा दिलाने के साथ ही खेती की लागत कम करने लिए के तीन मशीनों को जोड़कर एक ‘सुपर सीडर’ मशीन बनाई है. इसमें एक प्रेस व्हील्स के साथ रोटरी टिलर और सीड प्लांट को जोड़ा गया है. इसका इस्तेमाल गेहूं, धान और चना जैसे बीज बोने के लिए किया जाता है. साथ ही इस मशीन का गन्ना, कपास, मक्का, केला जैसी कई फसलों के बचे हुए अवशेषों को हटाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
सुपर सीडर मशीन एक मल्टी टास्किंग मशीन है
TV9 से बात करते हुए होशियारपुर के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर दीपेंद्र सिंह संधू ने बताया कि सुपर सीडर की कीमत तकरीबन ढाई लाख रुपए होती है. पंजाब सरकार सुपर सीडर मशीन की खरीदारी पर किसानों को 40 से 50 फीसदी तक सब्सिडी देती है. ये मशीन एक घंटे में एक एकड़ जमीन में फैली पराली को नष्ट कर देती है. इसके बाद गेहूं की बुआई करती है. वहीं, अगर कई किसान मिलकर समूह बनाकर खरीदते हैं तो पंजाब सरकार सुपर सीडर की खरीद पर किसानों को 80 फीसदी सब्सिडी देती है.
सुपर सीडर मशीन एक मल्टी टास्किंग मशीन है. ये मशीन बुआई, जुताई, मल्चिंग और खाद फैलाने का काम एक साथ कर देती है. आसान शब्दों में कहें तो इस मशीन के इस्तेमाल से खेती के काम बेहद आसान हो जाते हैं. इसके अलावा, सुपर सीडर मशीन खेत को तैयार करने में लगने वाले वक्त को कम कर देती है और लागत को घटा देता है. इससे किसानों के समय और पैसे दोनों की बचत हो जाती है. यही नहीं, सुपर सीडर पराली को जलाए बिना नष्ट कर देती है. वैज्ञानिकों का कहना है कि सुपर सीडर के इस्तेमाल से पराली प्रबंधन आसानी से किया जा सकता है.
वायु प्रदूषण नहीं होता, पैसों की भी बचत
सुपर सीडर से बीज की बुआई और जमीन की तैयारी एक बार में एकसाथ हो जाती है. किसी भी फसल के डंठल को नरवाई कहा जाता है. वहीं, धान की कटाई के बाद बचे हुए ठूंठ को पराली कहा जाता है. सुपर सीडर मशीन धान और गेहूं की पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर मिट्टी में मिला देती है. ऐसे में सुपर सीडर से फसलों की बुआई करने वाले किसानों को पराली जलानी नहीं पड़ता है.
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लिहाजा, पराली को जलाने पर होने वाला वायु प्रदूषण भी नहीं होता है. वहीं, जमीन के पोषक तत्व भी नष्ट नहीं होते हैं. साथ ही ज्यादा रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ता है. इससे किसानों को पैसों की भी बचत होती है. सुपर सीडर मशीन का इस्तेमाल कर रहे किसान भी इसे फायदेमंद मानते हैं. उनका कहना है कि धान की फसल के बाद दूसरी फसल की बुआई के लिए जुताई करनी होती है. जुताई के बाद खेत बिजाई के लिए तैयार होता है.
लोगों को जागरूक होना जरूरी
वहीं, सुपर सीडर से सीधे धान की फसल की कटाई के बाद खड़ी हुई या पड़ी हुई पराली पर बिजाई की जा सकती है. ये मशीन पराली को टुकड़ों में काटकर मिट्टी के नीचे दबा देती है और उसके ऊपर से गेहूं या सरसों की बिजाई के लिए बीज भी डालती है. मिट्टी में दबी पराली गलकर खाद बन जाती है. इससे जमीन की उर्वरक शक्ति बढ़ती है और पैदावार भी ज्यादा होती है. इससे जमीन की पानी सोखने की ताकत भी बढ़ जाती है.
हालांकि, कुछ किसानों का यह भी कहना है कि धान की कटाई और गेहूं की बुआ के बीच अंतर बहुत कम होता है. ऐसे में मशीन की उपलब्धता और लागत ज्यादा होने की वजह से अभी भी कुछ किसान इस तकनीक का इस्तेमाल करने से बचते हैं और पराली में आग लगा देते हैं. दूसरी तरफ सरकार का दावा है कि वो लोगों को जागरूक करने और उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दे रही है. आने वाले समय में पराली जलाने की घटनाओं में और कमी देखने को मिलेगी.
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