देश- बीजेपी और RSS के माइक्रो मैनेजमेंट ने हरियाणा में कैसे पलट दी बाजी?- #NA
अमित शाह, पीएम मोदी और मोहन भागवत
बीजेपी और संघ के माइक्रो मैनेजमेंट और पीएम मोदी के चेहरे पर विश्वास ने हरियाणा में बाजी पलट दी. बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित हुए आम आदमी की सुरक्षा, पारदर्शी शासन और नागरिकों का सम्मान के नाम पर वोट देने वाले ‘साइलेंट वोटर्स’, मोदी का चेहरा, शाह की रणनीति, संघ का जमीन पर बैकअप प्लान, प्रधान और पुनिया की जुगलबंदी ने सफलता दिलाई.
हरियाणा में जीत की हैट्रिक लगाकर बीजेपी ने इतिहास रच दिया. राजनीतिक विश्लेषक भले ही सतही तौर पर जाट बनाम गैर जाट राजनीति को सफलता का कारण बताएं लेकिन हकीकत कुछ और रही. कुछ दिनों पहले तक कहां बीजेपी के नेता और संघ के पदाधिकारी हरियाणा में 18/20 सीट जीतने के लिए मशक्कत की बात करते नजर आ रहे थे और कहां बीजेपी ने इतिहास रचते हुए अपनी सबसे बड़ी जीत हासिल कर लगातार तीसरी बार सरकार बना ली. इसके पीछे क्या कारण रहा जानने की कोशिश करते हैं.
साइलेंट वोटर्स फिर से बीजेपी के लिए वरदान
बीजेपी की इस ऐतिहासिक जीत में मोदी मैजिक और संघ और बीजेपी के ‘माइक्रो मैनेजमेंट’ का बड़ा रोल रहा. 10 साल में नागरिक सुरक्षा, पारदर्शी शासन और आम आदमी के सम्मान के वातावरण से अपेक्षित जातियों ने खामोशी से वोट देकर बीजेपी की विजयगाथा लिख दी. साइलेंट वोटर्स फिर से बीजेपी के लिए वरदान साबित हुए. लोकसभा चुनाव की गलतियों से सबक लेते हुए बीजेपी ने ऐसी अचूक रणनीति बनाई कि अपने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को भी कांग्रेस भुना नहीं पाई. 4 जून 2024 को 10 में से आधी लोकसभा सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 4 महीने में ही घुटने टेक दिए. प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा, आरएसएस और गृहमंत्री अमित शाह की रणनीति को जिस तरह से चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने धरातल पर उतारा, उसने जमीन पर भारी अंतर पैदा किया.
जवानों, किसानों को घोषणाओं से साधा
किसानों को साधने के लिए 24 फसलों पर एमएसपी दी गई तो गृहमंत्री अमित शाह ने अग्निवीरों को परमानेंट नौकरी की घोषणा कर जवानों को साधा. इसके अलावा पार्टी ने केंद्र और राज्य की योजनाओं को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाकर लाभार्थियों के बड़े वर्ग को ऐसा रिझाया कि वे अपनी जाति भूलकर एक नया वोटबैंक बन बैठे. साथ ही खट्टर सरकार की अलोकप्रिय लेकिन महत्वपूर्ण नीति ‘परिवार कार्ड’ बनाने में आ रही दिक्कतों को दूर करने और ग्रामीण लोगों को लाइन में लगने के चलते आ रही समस्याओं को दूर करने के लिए जगह जगह कैंप लगाकर कार्ड बनवाए. ऑनलाइन कार्ड बनवाने की इस प्रक्रिया में लोगों को आ रही दिक्कतों को पूरी तरह खत्म करने की कोशिश की गई.
खट्टर को हटाना और ओबीसी चेहरा सैनी को लाना गेम चेंजर
बीजेपी को इंटरनल सर्व में जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के चेहरे पर चुनाव में जाने से नुकसान की रिपोर्ट मिली तो डैमेज कंट्रोल एक्शन मोड में शुरू हुआ. मनोहर लाल खट्टर को हटाकर जनता के एक धड़े में नाराजगी काम करने की कोशिश हुई. बीजेपी ने चुनाव से पहले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर करीब 40 प्रतिशत ओबीसी मतदाताओं के बड़े हिस्से को अपने पाले में लाने की सफल कोशिश की.
इस बीच एक और बड़ा फैसला ओबीसी के पक्ष में हुआ वो था क्रीमी लेयर का दौरा 6 लाख की जगह 8 लाख कर दिया जाना. ओबीसी वोटरों में इसका बड़ा असर हुआ तब जबकि बीजेपी ने सूबे में अपना चेहरा एक माली समाज के ओबीसी को बनाया. सैनी के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद जून में धर्मेंद्र प्रधान के हरियाणा चुनाव प्रभारी बनते ही सूबे की ग्रुप ए और ग्रुप बी कैटेगरी नौकरियों में ओबीसी आरक्षण का दौरा 15 से बढ़ाकर 27 फीसदी करना भी इस वर्ग के मतदाताओं को रिझाने में एक बड़ी भूमिका अदा किया.
बिना पर्ची खर्ची 1.40 लाख नौकरियों का मुद्दा हिट रहा
बीजेपी ने हुड्डा की कांग्रेस सरकार में पर्ची यानी सिफारिश और खर्ची यानी घूस से नौकरियों का बड़ा मुद्दा बनाया. पिछले 10 साल में 1.40 लाख सरकारी नौकरियों को पारदर्शी तरीके से देकर गुड गवर्नेंस की छाप छोड़ी. पहले जहां जाति विशेष को ही नौकरियां मिलने की शिकायतें आती थीं, एक दशक में पूरा सिस्टम बदल जाने से जनता का बड़ा वर्ग खुश नजर आया.
टिकट वितरण से जाट और दलित वोटों में सेंधमारी
बीजेपी ने राज्य में 10 साल से गैर जाट राजनीति कर ओबीसी को गोलबंद करने की राजनीति को भले ही बढ़ावा दिया, लेकिन चुनाव में 13 जाटों को टिकट देकर इस धारणा को तोड़ा भी. यही वजह रही कि जाट बेल्ट में भी बीजेपी को अच्छी सीटें मिलीं. बीजेपी ने 27 नए चेहरों को उतारकर नाराजगी भी दूर की. दलितों में भी दलित मानी जाने वाली बाल्मिकी, धानुक, बावरिया और बाजीगर जातियों के नेताओं को टिकट देकर अनुसूचित वोटों में सेंधमारी की. एससी सीटें भी जीतने में बीजेपी सफल रही.
RSS ने की 16000 बैठकें
हरियाणा चुनाव में संघ और बीजेपी के बीच बहुत बेहतर तालमेल देखने को मिला. संघ ने हरियाणा में 16 हजार छोटी छोटी बैठकें कर बीजेपी के लिए माहौल बनाया. दिल्ली में भी बीजेपी के शीर्ष नेताओं के साथ संघ के शीर्ष अधिकारियों ने बैठक कर चुनाव के लिए रणनीति तैयार की थी, जिसके तहत हर मुहल्ले में संघ ने बैठकें की.
संघ के छोटे छोटे प्रचारक और स्वयंसेवकों ने ओबीसी और दलित वोटरों को जोड़ने में बड़ी भूमिका अदा की. हरियाणा के जीटी रोड इलाके में संघ के स्वयंसेकों ने किसान आंदोलन की याद दिलाकर लोगों को ये समझाने में भी सफलता हासिल की कि यदि बीजेपी के अलावा दूसरी सरकार आती है तो यहां आए दिनों में सड़क जाम, हंगामें, अथनीय व्यवसाय धंधा चौपट करने में भूमिका अदा कर सकती है.
आखिरी तीन दिनों में ग्राउंड जीरो पर पैनी नजर
बीजेपी ने हरियाणा चुनाव में इस बार एक सफल प्रयोग किया है. आखिर के तीन दिनों में अपना ध्यान बड़े नेताओं की सभा के बजाय ग्राउंड इंटेलिजेंस और वोटरों के मोबलाइजेशन पर केंद्रित किया. इसके लिए हरेक बूथ पर वोटरों के मूड को भांपने और उसके आधार पर एक्शन लेने की कोशिश किया गया. हरेक विधानसभा के सभी बूथों से रियल टाइम इन्फॉर्मेशन जुटाने का काम और वहां के लोकल उम्मीदवार को उन लोगों या कम्युनिटी के बीच सीधा संपर्क करने की ताकीद बीजेपी के सेंट्रलाइज्ड ऑफिस से किया गया.
जहां 50/100 वोट भी बढ़ सकते थे उन गली मोहल्ले में स्थानीय उम्मीदवार और उसके सहयोगियों को भेज कर साधने की कोशिश की गई. ग्राउंड इंटेलिजेंस के इस काम में संघ,बीजेपी और प्रोफेशनल प्राइवेट एजेंसियों का उपयोग किया गया.
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