प्रेम में विरह और विरह से भगवान ,व्यास जी,,,,,श्री कृष्ण – रुक्मणि विवाह के दर्शन में झूमे भक्त

दुद्धी/ श्रीमद् भागवत कथा के षष्ठम दिवस में भक्ति के सबसे श्रेष्ठ भाव का उपदेश करते हुए बालव्यास जी ने बताया कि भगवान सब भक्त के हृदय में प्रवेश करते है तब भक्त के हृदय में दैवीय कृपा का अनुभव होता है उसी कृपा की अनुभूति कभी शक्ति के रूप में कभी वियोग के रूप में होता है शायद भगवान यह बताते है कि जो वस्तु आपको या जो व्यक्ति आपको सहज में प्राप्त हुआ है उसका दिल कभी भी नहीं दुखाना चाहिए क्योंकि यदि आपने उसके प्रेम को न समझा तो वह निश्चित ही आपसे दूर हो जाएगा जैसे गोपियों को भगवान मिल तो सहज भाव से गए परन्तु गोपियों ने उनका मोल न समझा और उनके ऊपर अधिकार जमाने लगी अपने इशारे पर नचाने लगी भगवान ने लाख समझाया पर वह मान कैसे जाती हमारे यहां प्रचलन है जो देता है वह लेना भी चाहता है।

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वियहवा ने हम फलनवा के घरे 11 सौ न्योता देहले रही ,लेकिन ऊ हमरे घरे 5सौ देहलन यह भाव सबके मन में रहता ही रहता है परंतु भगवान गोपियों से दूर जाकर के यह दर्शन चाहते है कि प्रेम केवल समर्पण मांगता है वह व्यापार नहीं करना चाहता या लेन देन को दूर करना चाहता है इसीलिए भगवान वृंदावन छोड़ कर के मथुरा चले जाते है लेकिन गोपियों के मन में कृष्ण के प्रति इतना प्रेम कि गोपियों भगवान को रोकने के लिए श्राव तक का सहारा के लेती है।पर भगवान वृंदावन नहीं रुकते मथुरा जा कर कंश का वध तो कर ही देते है पुनः जब मथुरा में यशोदा मईया नंद बाबा जब पुनः गोपियों की याद आई तो भगवान की हिम्मत तक न पढ़ी वापस वृंदा वन जाने कि भगवान अपने मित्र उद्धव के सहारे प्रेम को वेद शास्त्र रस छंद अलंकार न्याय सख्या दर्शन और योग का सार समझा देते है।

वृन्दावन की ग्वालों के पास कुछ न होते हुए भी व्याकरण साहित्य न्याय दर्शन मीमांसा 18 पुराण 6 शास्त्र और चारों वेद का सार है।यू कहे तो उद्धव अहंकार के बृहस्पति का शिष्य बन कर आए है परंतु ब्रज के ग्वालों में कई बृहस्पति को बनाने की योग्यता है तब उद्धव को वहीं जाकर गोपियों के विरह प्रेम से प्रेम जागृत हुआ और वह ज्ञानी के साथ प्रेमी हो गए इसी तरह भगवान ने ब्राह्मणों के लिए रण छोड़कर के भागे द्वारिका बसे भगवान की ख्याति जन जन तक प्रसारित हुई हम सब माया से डरते है इस माया ने भला किसी को कहा छोड़ा है माया का चक्कर को घन चक्कर बना कर छोड़ देता है माया रूपी रुक्मणि का प्रवेश कृष्ण रूपी आत्मा में प्रवेश कर गया।इस तरह वेद वेदांत के सार को सुनाते हुए बाल व्यास जी ने रुक्मणि विवाह मंगल का दर्शन कराया भक्त झूमते हुए भगवान के विवाह का आनंद लिया।

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