यूपी – UP: कभी डराते थे डकैत, अब देसी घी से सेहत संवारेगा बीहड़ – INA

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कभी डकैतों की शरणस्थली के रूप में मशहूर रहा बीहड़ अब देसी घी के रूप में पहचाना जाएगा। एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत बीहड़ को ब्रांड की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। देसी गाय के दूध से तैयार बीहड़ का घी ई-कॉमर्स (ऑनलाइन) पर मौजूद है। इससे औरैया और इटावा के अलावा बीहड़ और बुंदेलखंड से जुड़े पशुपालकों को फायदा होगा। बीहड़ को भी अलग पहचान मिलेगी।

यमुना नदी के किनारे स्थित बीहड़ क्षेत्र के लोग पशुपालन से जुड़े होने की वजह से देसी घी तैयार करने में माहिर थे। हालांकि, वक्त के साथ भट्ठियाें पर तैयार देसी घी की जगह फैक्टरियों का सीलबंद देसी घी बाजार में छा गया। लेकिन शुद्धता के कद्रदानों में देसी घी की मांग बनी रही। इसी बीच प्रदेश सरकार ने एक जिला, एक उत्पाद योजना के तहत औरैया जिले में देसी घी को शामिल किया। इससे जिले को अलग पहचान मिलने की उम्मीद जगी।

इसी बीच ओडीओपी से प्रभावित होकर युवा उद्यमी कावी तिवारी ने औरैया खासकर बीहड़ क्षेत्र से जुड़े देसी घी को नई पहचान देने की पहल की। देसी घी का अलग ब्रांड बनाकर वह करीब पांच सालों से बाजार में बेच रहे हैं। कावी तिवारी ने जिला प्रशासन की पहल पर औरैया, बीहड़ का घी ब्रांड शुरू किया है। उनका कहना है कि इससे बीहड़ क्षेत्र में शामिल इलाकों के पशुपालक देसी गाय के दूध से घी तैयार करके अपनी आमदनी बढ़ा सकेंगे। बीहड़ क्षेत्र के इटावा, जालौन के साथ बुंदेलखंड से जुड़े जिले और फर्रुखाबाद व कन्नौज के पशुपालकों से भी दूध लेकर घी तैयार किया जाएगा।


एकदम देसी तरीके से बनता है बीहड़ का देसी घी
पिछले पांच साल से देसी गाय के दूध से घी बनाने के काम से जुड़े युवा उद्यमी कावी तिवारी बताते हैं कि बाजार में जो घी मिलता है, उसकी शुद्धता पर यकीन करना मुश्किल होता है। पशुपालक से दूध लेकर उसे घी के प्लांट तक पहुंचाने में दो से तीन दिन का समय लगता है। इस दौरान दूध को खराब होने से बचाने के लिए उसमें केमिकल मिलाया जाता है। घी बनाने के दौरान पॉम ऑयल मिलाने के भी आरोप लगते हैं। वहीं, बीहड़ का देसी घी बनाने के लिए पशुपालक से दूध लेकर उसे फौरन पकाया जाता है। दूध को पकाने के बाद उसे फेंटा जाता है, इससे मक्खन और छाछ अलग हो जाता है। मक्खन को अलग कर उसे गर्म बर्तन में पकाया जाता है। इस तरह देसी घी बिना मिलावट के तैयार होता है। पहले गांव के लोग यही तरीका अपनाते थे। एक किलो देसी घी बनाने में औसतन 20 किलो दूध का इस्तेमाल किया जाता है। इससे कम दूध की मात्रा से घी की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है।

 


ओडीओपी मार्ट पर भी उपलब्ध
जिला उद्योग केंद्र के उपायुक्त दुर्गेश कुमार बताते हैं कि ओडीओपी में शामिल देसी घी के कारोबार को नई पहचान देने की हर मुमकिन कोशिश की जा रही है। डीएम डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी के सुझाव पर बीहड़ का घी ब्रांड शुरू कराया गया है। यह ई-काॅर्मस पर उपलब्ध है। इसे ओडीओपी मार्ट से भी खरीदा जा सकता है। इसे बड़े मेलों में भी पहुंचाया जाएगा।


Credit By Amar Ujala

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