खबर फिली – क्या साउथ सिनेमा से पिछड़ गया बॉलीवुड? अल्लू अर्जुन के प्रोड्यूसर पिता ने हिंदी फिल्मों पर क्या कहा – #iNA @INA

पुष्पा फेम लोकप्रिय एक्टर अल्लू अर्जुन के पिता और दक्षिण भारतीय फिल्म निर्माता अल्लू अरविंद अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कुछ समय पहले मुंबई में एक टॉक शो में एक बार फिर साउथ बनाम बॉलीवुड की फिल्मों को लेकर अहम बातें कही. टॉक शो के दौरान जब उनसे पूछा गया कि आज की तारीख में साउथ की फिल्में ज्यादा क्यों सफल हो रही हैं और उसके मुकाबले बॉलीवुड की फिल्में फ्लॉप हो रही हैं? तो उन्होंने बड़ी सरलता से कहा कि बॉलीवुड वाले केवल मुंबई के कुछ लोगों के लिए फिल्में बना रहे हैं, जबकि हमारे यहां दर्शकों के लिए फिल्में बनती हैं. उन्होंने अपनी इस बातचीत में साउथ बनाम बॉलीवुड फिल्मों के बीच मचने वाली होड़ की ओर भी गंभीरता से इशारा किया था.

निर्माता निर्देशक अल्लू अरविंद ने अपनी बातों को साबित करने के लिए हिंदी फिल्मों की पॉपुलर एक्ट्रेस दीपिका पादकोण स्टारर फिल्म गहराइयां का नजीर दिया. उन्होंने कहा कि गहराइयां फिल्म में थीम शादी को लेकर नाराजगी, अवैध संबंध और उसे नॉर्मल बनाने का मुद्दा है. लेकिन उसकी कहानी ऐसी नहीं बन पड़ी जो हमारे देश के मिडिल क्लास के लोगों को कनेक्ट कर सके.

करण जौहर की फिल्मों पर अल्लू अरविंद का कटाक्ष

अल्लू अर्जुन के पिता अल्लू अरविंद ने अपनी बातचीत में करण जौहर की निर्देशित या निर्मित फिल्मों को भी निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि एक नजर डालें तो उनकी सभी फिल्मों की कहानियां उच्च वर्ग परिवार की होती हैं. हीरो और हीरोइन दोनों ही अक्सर बहुत अमीर परिवार से होते हैं. करण जौहर की फिल्मों में हीरो फरारी कार से कॉलेज जाता है. आखिर आम दर्शक उन जैसे किरदारों से खुद को कैसे कनेक्ट कर सकते हैं. जो लोग आजीविका के लिए दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते हैं और हर दिन ट्रेन से यात्रा करते हैं, उनको फरारी कार वाला हीरो कैसा लगेगा?

इसी दौरान उन्होंने कहा कि हाल में धूम मचाने वाली किसी दक्षिण भारतीय फिल्म के हीरो और कहानी को देख लें. उन फिल्मों में हीरो एक ऐसा शख्स होता है जो आम आदमी का प्रतिनिधित्व करता है. भले ही केजीएफ हो या कंतारा, इनके नायक सामान्य परिवार से आते हैं. यहां तक कि कल्कि जैसी फिल्म में भी नायक प्रभास एक गरीब आदमी है ताल्लुक रखता है जो अमीरी के सपने देखता है.

बॉलीवुड में कम बनती हैं आम लोगों की फिल्में

उन्होंने बताया कि पुष्पा फिल्म के नायक को ही देखें, यहां का नायक निम्न मध्यम वर्ग के गुस्से का प्रतिनिधित्व करता है. यही वजह है कि भारत में बड़े पैमाने पर आम दर्शक दक्षिण भारतीय फिल्मों के नायक, उसकी कहानी से आसानी से जुड़ जाते हैं. इसी क्रम में उन्होंने मंजूमेल बॉयज, अवेशम और तमिल फिल्म महाराजा का भी नाम लिया. बॉलीवुड ने भी जब कभी आम लगने वाली कहानी पर कोई फिल्म बनाई है तो उसे सफलता मिली. मसलन रांझणा, गैंग्स ऑफ वासेपुर, जवां, स्त्री 2 और 12वीं फेल आदि. इनकी कहानियां देश भर में प्रशंसित हो रही हैं.

कोविड 19 के बाद समाज में आया बड़ा बदलाव

कोविड19 के बाद ओवरऑल भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में बड़ा बदलाव आया है. कंटेंट, मार्केटिंग और दर्शकों के मिजाज के हिसाब से बहुत बदलाव आया है. कोरोना काल में भारतीय दर्शकों को देश-विदेश की बेहतरीन फिल्मों और वेब सीरीज से रूबरू होने का मौका मिला. इन कंटेंट प्रधान फिल्मों से आम दर्शकों का जुड़ाव कम ही हो सका था. दर्शक बारीकियों को अब पहले से कहीं अधिक जानने लगे हैं और क्वालिटी फिल्मों की मांग करने लगे हैं. फाइट, एक्शन, 5 गाने और एक आइटम सॉन्ग वाली कहानियों से दर्शक ऊब चुके हैं. अल्लू अरविंद कहते हैं दर्शकों की बदलती च्वॉइस को जानन के बावजूद बॉलीवुड पुराने ढर्रे पर बना हुआ है.


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