खबर फिली – ‘मुन्ना और सर्किट’ के माफी वाले सीन के पीछे कि ये कहानी थी – #iNA @INA

साल 2003 में एक फिल्म आई… फिल्म राजू हिरानी कि थी इसलिए उम्मीदें भी जरा ज्यादा थीं. फिल्म एक कॉमेडी-ड्रामा थी जो लोगों ने बड़े पर्दे पर काफी कम ही देखा था. और भी ज्यादा हैरानी की बात ये थी कि इस पिक्चर कि कहानी एक ऐसे गुंडे की थी जिसका दिल बहुत साफ था और वह लोगों की मदद भी करता था. फिल्म का नाम था मुन्ना भाई एमबीबीएस. जितनी यह फिल्म खास थी उतने ही खास थे इस फिल्म के किरदार… मुन्ना और सरकिट. दो ऐसे शख्स जिन्होंने दोस्ती के अलग बेंचमार्क सेट कर दिए.

फिल्म में मुन्ना के किरदार को निभाया था संजय दत्त ने और सरकिट के रोल में अरशद वारसी ने उनका साथ दिया था. फिल्म में दोनों के बीच की केमेस्ट्री ने लोगों का दिल जीत लिया. जब-जब मुन्ना और सरकिट स्क्रीन पर आते सिनेमा हॉल में लोग पेट पकड़-पकड़कर हंसते. इन दोनों की किरदारों की दोस्ती को डायरेक्टर राजू हिरानी और दोनों अभिनेताओं ने इतना आईकॉनिक बना दिया था कि लोग ये आज भी ये कहते हैं कि दोस्ती हो तो मुन्ना और सरकिट जैसी.

2006 में आई फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’

साल 2003 में ‘मुन्ना भाई MBBS’ के कामयाब होने के बाद डायरेक्टर राजकुमार हिरानी ने साल 2006 में फिल्म का सिक्वेल रिलीज किया जिसका नाम था लगे रहो मुन्ना भाई. इस फिल्म की कहानी और भी ज्यादा एंटरटेनिंग थी. फिल्म में संजय दत्त और अरशद वारसी के अलावा विद्या बालन और बोमन इरानी भी लीड रोल्स में थे. वैसे तो इन दोनों ही फिल्मों के कई सींस काफी आईकॉनिक हैं, लेकिन मुन्ना के सरकिट से माफी मांगने वाले सीन ने हर किसी को इमोशमल कर दिया था. ये सीन पूरी फिल्म की जान है और सरकिट और मुन्ना की दोस्ती को एक अलग नजरिया देता है.

जब सरकिट से माफी मांगता है मुन्ना

राजू हिरानी ने एक खास बातचीत में इस सीन को लेकर भी बात की थी. उन्होंने बताया कि आखिर क्यों ये सीन लोगों के दिलों पर इतनी छाप छोड़ पाया. असल में जब मुन्ना सरकिट को नशे में थप्पड़ नार देता है तो फिल्म में दिखाया गया गांधी जी का किरदार उसे माफी की एहमियत समझाता है. इस बात को समझते ही मुन्ना को अपनी गलती का अहसास होता है और वो सरकिट से माफी मांगने ब्रिज पर जाता है. मुन्ना, सरकिट से कहता है कि वो पीछे घूम जाए और उसकी आंखों में ना देखे.

कैसे और भी ज्यादा खास बना ये सीन?

राजू ने कहा कि इस सीन में उन्होंने ये बात नोटिस की कि अगर एक एक्टर एक इमोशनल लाइन कह रहा है, यह बात जरूरी नहीं है कि उसी एक्टर के चेहरे पर कैमरा रहने से आपको वो इमोशन फील हो. कई बार सीन के दूसरे एक्टर के चेहरे पर कैमरा रहने से भी काफी इम्पैक्ट पड़ता है. एक की लाइन्स पर दूसरा कैसे रियेक्ट कर रहा है… ये बात कुछ सींस को काफी अलग बना देती है. इस फिल्म के इस सीन को कई टेक्स में शूट किया गया लेकिन वो इमोशन निकल कर नहीं आ रहा था. इसके बाद राजु बताते हैं कि उन्होंने अरशद को कहा कि वो थोड़ा ज्यादा रोएं. इस सीन में कैमरा अरशद के चेहरे पर ज्यादा रखा गया ना की संजय के चेहरे पर जिससे इस सीन का असर अलग होता है और यही बात इस सीन को और भी ज्यादा खास बनाती है.


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