खबर फिली – साउथ सिनेमा यानी एक्शन, इमोशन और कंटेंट… बॉलीवुड क्यों नहीं समझ रहा दर्शकों की उम्मीद? – #iNA @INA
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आखिरी बार कब किसी बॉलीवुड की किसी हिंदी फिल्म ने बड़े स्केल पर दर्शकों के सबसे बड़े वर्ग को कितना प्रभावित किया, यह एक अहम सवाल है. क्योंकि ज्यादातर हिंदी फिल्मों के दर्शक या तो ओटीटी या फिर दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों की ओर रुख करने लगे हैं. उत्तर भारतीय दर्शकों को बाहुबली, आरआरआर, पुष्पा: द राइज़ या मंजुम्मेल बॉयज (Manjummel Boys) जैसी दिल दहला देने वाली और हैरतअंगेज प्रभाव पैदा करने वाली फिल्में ज्यादा रास आने लगी हैं. इस हिसाब से बॉलीवुड और साउथ सिनेमा के बीच खाई चौड़ी होती जा रही है. बॉलीवुड के बारे में समझा जाता है यहां कहानी से ज्यादा अक्सर चमक-दमक और ग्लैमर पर फोकस किया जाता है जबकि साउथ फिल्ममेकर्स चमक दमक को कहानी पर हावी नहीं होने देना चाहते.
साउथ की ज्यादातर फिल्में केवल चकाचौंध पैदा करने वाले नहीं बनतीं बल्कि एक्शन से भरपूर होती हैं और कहानी से कभी समझौता नहीं करतीं. साउथ में फिल्म बनाने वाले इस बात को बखूबी समझते हैं कि दर्शक एक्शन के साथ-साथ कहानी से भी जुड़ाव चाहते हैं. दक्षिण भारतीय फ़िल्म निर्माताओं को दर्शकों की इस इच्छा को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहते, जिसका बेहतर नतीजा उन्हें बॉक्स ऑफिस पर भी देखने को मिलता है.
महामारी के बाद दर्शकों की पसंद बदली
कोविड-19 की महामारी के बाद बहुत कुछ बदल गया है. लोगों की दिनचर्या बदल गई है, मनोरंजन का कंटेंट बदल गया. दशकों को गहरी, अधिक सार्थक कहानियों की तलाश होने लगी. ओटीटी प्लेटफॉर्म लोगों की बोरियत दूर करने का सबसे बड़ा जरिया बन गया. उधर कोरियाई नाटकों ने अपना दबदबा बनाया और इधर दक्षिण भारतीय फ़िल्मों में नई-नई खोज होने लगी. यहां चमत्कृत करने वाला जादुई प्रभाव था, तो दिल और दिमाग को झकझोरने वाली कहानी भी.
लोग अब ऐसी कहानियां चाहने लगे हैं जिसकी उड़ान उनके पैरों तले जमीन खिसकाने का माद्दा रखती हो, जिनके किरदारों में संघर्ष हो- कोई हैरत नहीं कि दक्षिण भारतीय सिनेमा इसे बखूबी समझता है. उदाहरण के लिए मंजुम्मेल बॉयज़ को ही लें. यह एक सर्वाइवल ड्रामा है. कहानी ज़मीन से जुड़ी है. किरदार भरोसेमंद हैं. नायक से सामने एक छोटे से गाांव में बेरोजगारी और सामाजिक दबाव की चुनौतियां है.
बॉलीवुड में फॉर्मूला बनाम गहराई
इसके उलट बॉलीवुड आज भी पुराने फ़ॉर्मूलों पर ही ज्यादा निर्भर नजर आता है. बड़े बजट की फ़िल्में अक्सर कंटेंट की बजाय स्टाइल पर फोकस करती हैं. हां, 12वीं फ़ेल और लापता लेडीज़ जैसी फ़िल्में बताती हैं कि बॉलीवुड और भी गहराई तक जा सकता है, लेकिन ये अपवाद हैं. अभी इस दिशा में और काम करके दिखाने की दरकार है.
साउथ में लोककथा से जुड़ता है सिनेमा
दक्षिण भारतीय सिनेमा का जादू इसकी प्रामाणिकता में निहित है, जहां कहानियां फिल्म का मुख्य तत्व होती हैं. उदाहरण के लिए अल्लू अर्जुन की पुष्पा: द राइज़ को ही लें. यह सच है कि यह नाटकीयता से भरपूर एक्शन फिल्म है लेकिन यह इसलिए कामयाब होती है क्योंकि मुख्य किरदार पॉलिश किया नायक नहीं है. वह ऐसा शख्स है जिसके अस्तित्व पर लोग विश्वास कर सकते हैं.
पुष्पा के अलावा कंतारा जैसी फिल्म को देखें. यह लोककथा और आध्यात्मिकता से जुड़ती है. साथ ही यह भावनात्मकता को बिल्कुल नहीं खोती. बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में यही मूल अंतर है. बॉलीवुड साउथ के मुकाबले अक्सर बहुत ज़्यादा पॉलिश्ड लगता है. हीरो असंभव लगते हैं. उनका संघर्ष अतिरंजित होता है. वे इस अतिरंजना के आगे जिसे दिखाने में भूल जाते हैं, वह है कहानी. यहां ऐसा लगता है तमाशा बनाना जरूरी है. इसी के चक्कर में फिल्म की आत्मा कहीं पीछे छूट जाती है. आदिपुरुष जैसी फ़िल्में भी सफल नहीं होतीं क्योंकि उनमें सांस्कृतिक और भावनात्मक गहराई का अभाव होता है जो आर आर आर या कंतारा जैसी फिल्मों में दिखाई देता है.
जोखिम लेने से नहीं डरते साउथ वाले
दक्षिण भारतीय सिनेमा वाले जोखिम लेने से नहीं डरते, पटकथा के स्तर पर वे साहसी और निडर होते हैं. वे फिल्म निर्माता केवल नियमों से नहीं चलते- वे अपना नियम बना लेते हैं. वे प्रयोग करते हैं, वे सीमाओं को लांघते हैं, और दर्शकों को फिर भी प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए कैथी को ही लें . यह एक तमिल थ्रिलर है जो समय बर्बाद नहीं करती. पूरी फिल्म एक ही रात में सामने आती है- कोई गाना नहीं, कोई रोमांस नहीं, बस दिल धड़काने वाला तनाव.
बॉलीवुड क्यों इतिहास को रिपीट कर रहा?
इस बीच बॉलीवुड बहुत ही नया खेल खेल रहा है. यहां अतीत को दोहराया जा रहा है. कबीर सिंह या दृश्यम 2 जैसी रीमेक बनाकर पुरानी सफलताओं को फिर से बनाने की कोशिश करता है. लेकिन समस्या क्या है? ये कहानियां अब शायद ही कभी चौंकाती या उत्साहित करती हैं. यहां कोई रहस्य बाकी नहीं रह गया. बॉलीवुड वाले ये भूल रहे हैं कि अब दर्शकों की अपेक्षाएं बदल रही हैं.
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