खबर फिली – Kanguva: वो 5 कारण, जो साबित करते हैं ‘कल्कि’ और ‘देवरा’ से बेहतर है सूर्या-बॉबी देओल की फिल्म – #iNA @INA

तमिल सुपरस्टार सूर्या की फिल्म कंगूवा पैन इंडिया रिलीज हो चुकी है. ये सूर्या की पहली पैन इंडिया फिल्म है. दो टाइमलाइन के बीच घूम रही इस फिल्म में सूर्या दो अलग-अलग रूप में नजर आ रहे हैं. पैन इंडिया में रिलीज होने वाली साउथ की अन्य फिल्मों से तुलना की जाए तो कंगूवा और इन फिल्मों में कई समानताएं नजर आ सकती हैं. इंडियन 2, कल्कि, सलार और देवरा की तरह सूर्या की ये ‘कंगूवा’ भी दो पार्ट में रिलीज होने वाली फिल्म है. लेकिन फिर भी सूर्या की ये फिल्म इन फिल्मों से बेहतर हैं.

1. कैरेक्टराइजेशन

फिल्मों में शामिल किरदारों पर किए गए काम को कैरेक्टराइजेशन कहते हैं. अक्सर साउथ के फिल्म मेकर्स एक्टर्स की स्टार पावर का इस्तेमाल करने में इतने खो जाते हैं कि कैरेक्टराइजेशन पर काम करना वो भूल जाते हैं. कंगूवा में निर्देशक सिवा ने कैरेक्टराइजेशन पर बहुत मेहनत की है. यानी की कंगूवा और फ्रांसिस को दिखाते हुए न सिर्फ उनका लुक बल्कि उनके लुक के पीछे की सोच, दोनों के पास नजर आने वाले हथियार, लोगों के साथ पेश आने का दोनों का अंदाज, दोनों की पूरी तरह से अलग पर्सनालिटी सब पर मेकर्स ने मेहनत की है. कल्कि 2898 एडी के भैरव की तरह कंगूवा के किरदार हम पर एहसान कर रहे हैं, इस हिसाब से एक्शन नहीं करते. वो परफॉर्म करते हुए हमसे कनेक्शन बना लेते हैं.

2. ताकतवर महिला किरदार

‘अब संग्राम का समय हो गया है, औरतें यहां से चले जाए’ इस ‘देवरा’ के डायलॉग ने मुझे काफी गुस्सा दिलाया था. आज भी ज्यादातर साउथ की फिल्मों में महिला किरदारों को कमजोर दिखाया जाता है. अपने हीरो के चक्कर में अक्सर महिला किरदारों पर साउथ में ज्यादा मेहनत नहीं की जाती. बाहुबली इसके लिए अपवाद थी. कंगूवा में भले ही दिशा पाटनी के किरदार पर ज्यादा फोकस नहीं किया गया हो. लेकिन इसमें कंगूवा के गांव का महिलाओं को कंगूवा के तरह ही शक्तिशाली दिखाया है.

फिल्म के एक सीन की बात करे तो अपने गांव से बाहर निकली हुईं इन महिलाओं पर दुश्मन गांव के राजा का बेटा हमला करता है और फिर वो उन्हें कैदी बना लेता है. इन महिलाओं से वो कहता है कि जाओ अब अपने कंगूवा को बुलाओ, तब ‘हमें अपनी सुरक्षा के लिए कंगूवा की जरूरत नहीं है, हम अपने आप में कंगूवा हैं’- कहते हुए ये सभी महिलाएं उस राजा के बेटे और उसकी सेना को रौंद डालती हैं.

3. सिनेमेटोग्राफी और स्पेशल इफेक्ट्स

वेत्री पलानीसामी ने अपने कैमरा के लेंस से कंगूवा को बेहद खूबसूरत रूप से हमारे सामने पेश किया है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी के साथ-साथ फिल्मों में इस्तेमाल हुए स्पेशल इफेक्ट्स भी कमाल के हैं. मगरमच्छ के साथ फाइट हो या फिर आसमान पर मंडरा रहे कौओं का राजा के कहने पर शव को नोचने नीचे आना, हर जगह सोच समझकर वीएफएक्स और सीजीआई का सटीक इस्तेमाल किया गया है.

4. सूर्या की एक्टिंग

सूर्या की एक्टिंग ‘कंगूवा’ का सबसे बड़ा हाई पॉइंट है और सूर्या एक ऐसे एक्टर हैं, जिनका नाम देखकर लोग थिएटर में जाते हैं. सूर्या की नेशनल अवार्ड फिल्म ‘सोरारई पोटरु’ हो या फिर ‘जय भीम’ सूर्या की हर फिल्म में उनका लुक अलग होता है, उनके बाल अलग होते हैं, उनकी फिजिक अलग होती है. अपनी हर फिल्म पर वो पिछली फिल्म से ज्यादा मेहनत करते हैं और यही सूर्या की ‘कंगूवा’ देखने का सबसे बड़ा कारण है.

कंगूवा और फ्रांसिस दोनों किरदारों के लिए सूर्या ने खूब मेहनत की है. लेकिन कंगूवा का किरदार लाउड होने की वजह से वो उभरकर नजर आता है. उन्होंने सलार या कल्कि वाले प्रभास की तरह बिना एक्सप्रेशन वीडियो गेम वाले रॉबर्ट की तरह एक्टिंग करने की कोशिश नहीं की है. उनके एक्सप्रेशन और उनका परफॉर्मेंस इस फिल्म को ‘पैसा वसूल’ बनाता है.

5. एक्शन और इमोशंस

हर साउथ की फिल्म की तरह सूर्या की कंगूवा में भी एक्शन है. लेकिन नानी की दसरा या प्रभास की सलार की तरह इस एक्शन को देख हमें घिन नहीं आती, हम अपनी आंखें बंद नहीं करते. सूर्या का एक्शन वीभत्स नहीं है, वो सीन को इंटरेस्टिंग बनाता है. एक्शन के साथ इमोशंस को होना इस फिल्म को ज्यादातर पैन इंडिया फिल्मों से अलग बनाते हैं.


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