खबर शहर , UP: भारत-नेपाल सीमा पर नो मेंस लैंड को पाट कर बना दिया रास्ता, तस्करी रोकना बनी चुनौती; दोनों तरफ अतिक्रमण – INA

Table of Contents

बलरामपुर, बहराइच और श्रावस्ती से लगती नेपाल सीमा पर नो मेंस लैंड को कुछ जगहों पर समतल कर सड़क बना दी गई है। इससे बस एक छलांग में आसानी से सीमा पार हो जाती है। भारी वाहन भी इन चोर रास्तों से नेपाल पहुंच रहे हैं। 

इससे तस्कर आसानी से सीमा पार कर जाते हैं। वहीं इस्राइल और ईरान के मध्य बढ़े तनाव के बीच नेपाल की खुली सीमा और संवेदनशील हो गई हैं। हमने बलरामपुर-सिद्धार्थनगर के बीच पिलर संख्या 570/1 से अपनी यात्रा शुरू कर श्रावस्ती के पिलर 636 से होते हुए बहराइच के रुपइडिहा सीमा के पिलर 649/3 पर पूरी की। सीमा किनारे इस सफर में दिखे दृश्यों का सजीव चित्रण पेश है…

पुलिस की नजर, फिर भी चुनौती कम नहीं

देवीपाटन मंडल के डीआईजी अमरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि नेपाल सीमा को लेकर पुलिस संवेदनशील है। हम समय-समय पर सीमावर्ती गांवों में गश्त करते हैं। सत्यापन अभियान भी चलाते हैं।  

सीमा पर तस्करी रोकना मुश्किल

सीमा पर तैनात एसएसबी के एक अधिकारी ने बताया कि नेपाल सीमा पर तस्करी रोकना मुश्किल नहीं है। लेकिन यह सीमा खुली है। इस कारण चुनौती ज्यादा है। यहां बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) तो बना दी गई है। जवानों की संख्या भी बढ़ानी होगी। चुनाव के समय सीमा से हटाकर जवानों की ड्यूटी लगा दी जाती है। ऐसे में हमारी भी समस्या है। इसे जिम्मेदारों को समझना होगा। 

 


दोनों तरफ अतिक्रमण कर मदरसों और मस्जिदों का निर्माण
सफर की शुरुआत में बलरामपुर में नो मेंस लैंड के निर्धारित क्षेत्र में धान की फसल लहलहा रही है। यहां से करीब तीन किमी . रोशनपुरवा गांव में नो मेंस लैंड को पाटकर सड़क बना दी गई है। 

दोनों तरफ के लोगों के घरों के दरवाजे भी नो मेंस लैंड की तरफ खुलते हैं। सीमा से सटे मदरसे हैं, जिनमें नेपाली बच्चे भी पढ़ते हैं। यहां मस्जिद का निर्माण भी किया गया है, जिसे सुरक्षा एजेंसियां बॉर्डर क्षेत्र में अतिक्रमण बताती हैं। रिपोर्ट भी शासन को भेजी है।
 


मस्जिदों और मदरसों की संख्या में इजाफा
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार, बीते दस वर्षों में इन तीन जिलों की आबादी में तेजी से बदलाव हुआ है। एक समुदाय की संख्या तेजी से बढ़ी है। अक्तूबर के पहले सप्ताह में गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में यहां के प्रति चिंता जताई गई है। फरवरी 2018 में सीमावर्ती जिलों में मस्जिदों और मदरसों की कुल संख्या 1,349 थी, जो सितंबर 2024 में बढ़कर 1,540 के करीब हो गई है। 

रिपोर्ट में जनसांख्यिकी परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए मौजूदा इंटेलिजेंस व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत बताई गई है। यही कारण है कि अवैध मदरसों की जांच में एटीएस को शामिल किया गया है। एसएसबी को भी सीमा से 15 किमी भीतर के धर्मस्थलों की रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है। 


एसएसबी की चुनौती कम नहीं 
सीमा पर तैनात एसएसबी के एक अधिकारी ने बताया कि नेपाल सीमा पर तस्करी रोकना मुश्किल नहीं है। लेकिन यह सीमा खुली है। इस कारण चुनौती ज्यादा है। यहां बॉर्डर आउट पोस्ट (बीओपी) तो बना दी गई है। जवानों की संख्या भी बढ़ानी होगी। चुनाव के समय सीमा से हटाकर जवानों की ड्यूटी लगा दी जाती है। अभी महाराष्ट्र में भी जवान गए हैं। यूपी में होने वाले उपचुनाव में भी जवानों को भेजा जाएगा। ऐसे में हमारी भी समस्या है। इसे जिम्मेदारों को समझना होगा।
 


इस्राइल-ईरान तनाव के बीच सीमावर्ती गांवों की बढ़ी निगरानी
इस्राइल-ईरान तनाव के बीच नेपाल सीमा से लगे गांवों की निगरानी बढ़ाई गई है। श्रावस्ती जिले के 38, बहराइच के 23 और बलरामपुर के 36 गांव ऐसे हैं जो या तो नेपाल की सीमा से सटे हैं या फिर आधा गांव नेपाल और आधा भारत में है। 

यहां की बड़ी आबादी का नेपाल में रोजाना आवागमन होता है। इनकी रिश्तेदारी भी नेपाल में है। सामान्य दिनों में भी इन गांवों पर सुरक्षा एजेंसियों की नजर रहती है। पुलिस भी अभियान चलाती है। लेकिन अभी इस्राइल व ईरान के मध्य बढ़े तनाव के कारण यहां भी सतर्कता बढ़ा दी गई है। 

 


बढ़ती आबादी घुसपैठ का नया मॉडल तो नहीं 
सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार सीमावर्ती गांवों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन भी तेजी से हुआ है। एक समाज की संख्या तेजी से बढ़ी है। अधिकारी इसे सिर्फ आबादी बढ़ने का मामला नहीं, घुसपैठ का नया मॉडल भी बता रहे हैं। 

भारत-नेपाल संबंधों के जानकार यशोदा लाल बताते हैं कि नेपाल बॉर्डर का हाल जानने के लिए श्रावस्ती जिले के ककरदरी गांव ही पर्याप्त है। यहां मदरसा दारुल उलूम गुलशने रजा को नो मेंस लैंड से सटकर बनाया गया है। इसका मुख्य गेट पिलर नंबर 12/640 के सामने ही खुलता है। 
 


Credit By Amar Ujala

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News