ऐसे शोध का कोई अर्थ नहीं, जिसका समाज पर सीधा असर न पड़े। लैब की बातें लोगों की भाषा पहुंचे और उसका बड़ा प्रभाव हो। ये बातें उत्तर प्रदेश फॉरेंसिक साइंस संस्थान के निदेशक और एडीजी डॉ. जी के गोस्वामी ने की। बीएचयू के जंतु विज्ञान विभाग में बृहस्पतिवार को एडनेट 2024 का उद्घाटन हुआ। महामना हॉल में देश विदेश के 300 से ज्यादा जेनेटिक साइंटिस्ट मौजूद थे। आईपीएस गोस्वामी ने कहा कि अब पांच साल में लोकल पुलिस को भी फॉरेंसिक के काम सिखाए जाएंगे, जिससे घटनास्थल पर साक्ष्य के साथ खिलवाड़ न हो।
वहीं, अब तो ये व्यवस्था आ गई है कि जिन अपराधों में सात साल या इससे ऊपर कैद की सजा है तो फिर वहां पर फॉरेंसिक एक्सपर्ट को पहुंचना ही है। जब तक फॉरेंसिक वैन आकर अपनी जांच पूरी न कर ले, कोई भी साक्ष्यों को नहीं हटाएगा। पुलिस को ट्रेनिंग देकर किसी भी अपराध के तह तक पहुंचा जा सकता है। कहा कि जब वो वाराणसी के एसपी थे तो 2006 के बम धमाकों में हुई तबाही को देखा। विज्ञान में नौकरी की संभावनाएं, कानून के कई कार्यों में विज्ञान का प्रयोग हो रहा है। समाज में विज्ञान के सही और सटीक उपयोग हो।
हड़प्पा सभ्यता की खोज के 100 वर्ष पूरे होने की उपलब्धि को लेकर व्याख्यान हुआ। विशिष्ट अतिथि भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण के निदेशक प्रो. भल्लमूडी वी. शर्मा ने “एएनएसआई और पुरावनस्पतिक अनुसंधान: उपलब्धियां और वर्तमान प्रयास” विषय पर अपना विचार रखा। प्रो. शर्मा ने कहा कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खोज में अभी कई रहस्यों का पता चलना बाकी है। उन्होंने बताया कि भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने प्राचीन मानवों और उनके मध्य आपसी संबंधों की जानकारी दी।
इसमें जीवाश्म अवशेषों, पुरातात्विक खोजों और अन्य साक्ष्यों को इकट्ठा किया गया। मानव विकास और मानव समाजों के विकास को समझने के लिए पुरातात्विक, आनुवांशिकी और विकासात्मक जीव विज्ञान की जानकारियों को एक मंच पर लेकर आया। उन्होंने नर्मदा घाटी से प्राप्त पाषाण कालीन अस्थियों की चर्चा की।
भाषा और आनुवांशिकी में है खास संबंध
एडनेट का शुभारंभ विज्ञान संस्थान के संकाय प्रमुख प्रो. एसएम सिंह, और विभागाध्यक्ष अरविंद आचार्य ने किया। इस दौरान ई-अभिलेख पुस्तिका का उद्घाटन किया गया। कार्यक्रम में यूरोप से पहुंचे भाषा विज्ञान के एक्सपर्ट प्रो. जॉर्ज वैन ड्रिम ने कहा कि भाषा और आनुवंशिकी के बीच दिलचस्प कनेक्शन है। डीएनए एक हो लेकिन भाषाएं अलग। प्रो. तन्मय भट्टाचार्य ने ताई-कदाई समेत पूर्वोत्तर भाषा की बात की। कार्यक्रम में जीन वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे, प्रो. मधु जी तापड़िया और देश विदेश से आए 300 युवा वैज्ञानिक मौजूद थे।