डिजिटल अरेस्ट एक नवीनतम चुनौतीपूर्ण अवधारणा है:- निरंजन

डिजिटल युग में अपराधों का रूप तेजी से बदल रहा है। आजकल अपराध केवल भौतिक रूप में नहीं होते, बल्कि तकनीकी प्रगति के साथ साइबर अपराध भी तेजी से फैल रहे हैं। इंटरनेट और डिजिटल माध्यमों के व्यापक उपयोग ने अपराधियों को नए तरीके खोजने का अवसर दिया है, और इसी संदर्भ में “डिजिटल अरेस्ट” नामक एक नई अवधारणा उभर कर आई है। यह एक आधुनिक साइबर अपराध है, जिसमें अपराधी पारंपरिक गिरफ्तारी के बजाय डिजिटल तरीकों से लोगों को धमका कर उनसे धन वसूलते हैं। डिजिटल अरेस्ट एक ऐसी धोखाधड़ी है जिसमें ठग फर्जी वीडियो कॉल के माध्यम से सरकारी अधिकारी या पुलिसकर्मी का रूप धारण करते हैं। पीड़ित को यह बताया जाता है कि उसके पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, या सिम कार्ड का अवैध इस्तेमाल किया गया है। ऐसे में, व्यक्ति को गिरफ्तार करने की धमकी दी जाती है, जिससे वह मानसिक दबाव में आ जाता है। अपराधी पुलिस स्टेशन का नकली दृश्य दिखाते हुए व्यक्ति को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि उसकी गिरफ्तारी सुनिश्चित है। इस स्थिति में व्यक्ति घबरा जाता है, और अपराधी इसी डर का फायदा उठाकर जमानत के नाम पर उससे पैसे ऐंठने लगते हैं। साइबर अपराध के इस प्रकार में अपराधी पीड़ित को वीडियो कॉल पर लगातार बने रहने का दबाव डालते हैं, ताकि वह किसी से संपर्क न कर सके और वास्तविक जानकारी न प्राप्त कर पाए। इस प्रक्रिया के दौरान, वे पीड़ित के बैंक खाते की जानकारी हासिल कर उसका खाता पूरी तरह से खाली कर देते हैं। जब तक व्यक्ति को इस धोखाधड़ी का एहसास होता है, तब तक उसका सारा धन निकल चुका होता है।

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भारत में इस तरह के साइबर अपराधों से निपटने के लिए भारतीय कानून में कई प्रावधान हैं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 319(2), 318(4), और 336(3) जैसे प्रावधानों के तहत धोखाधड़ी और प्रतिरूपण से जुड़े अपराधों को कवर किया जाता है। इसके अलावा, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष प्रावधान बनाए गए हैं। यह अधिनियम डिजिटल धोखाधड़ी, डेटा चोरी, और ऑनलाइन अपराधों से निपटने के लिए विशेष रूप से प्रभावी है। डिजिटल अरेस्ट जैसी साइबर धोखाधड़ी से बचने के लिए नागरिकों को कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले, यह जान लेना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी या पुलिस वीडियो कॉल या फोन कॉल के माध्यम से धमकी नहीं देती है। अगर ऐसा कोई कॉल प्राप्त होता है, तो तुरंत सतर्क हो जाएं। कभी भी अनजान व्यक्तियों के साथ अपने बैंक खाते, आधार नंबर, पैन कार्ड, या अन्य संवेदनशील जानकारी साझा न करें। किसी भी सरकारी अधिकारी की पहचान की पुष्टि करने के लिए संबंधित सरकारी एजेंसी के आधिकारिक चैनल से संपर्क करें।

अगर आपको संदेहास्पद कॉल प्राप्त होती है, तो नेशनल साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर संपर्क कर साइबर अपराध की शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इसके अलावा, साइबर क्राइम की शिकायत cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से भी साइबर अपराधों की रिपोर्टिंग की जा सकती है। इसके लिए @Cyberdost पर संबंधित जानकारी साझा की जा सकती है। साइबर अपराध की रोकथाम के लिए भारत सरकार और कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ सक्रिय रूप से काम कर रही हैं। साइबर सुरक्षा के तहत कई नीतियाँ और नियम लागू किए गए हैं, जिनमें राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति प्रमुख है। इस नीति के तहत साइबर अपराधों की निगरानी और रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए जा रहे हैं। साइबर अपराधियों को पकड़ने और उन्हें न्याय के कटघरे में लाने के लिए भी लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट एक गंभीर और खतरनाक साइबर अपराध है जो सीधे तौर पर व्यक्ति की मानसिक और वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है। इस अपराध से बचने का सबसे प्रभावी उपाय है सतर्कता और जागरूकता। अगर समय रहते इन साइबर अपराधों की पहचान करें और सतर्क रहें, तो न केवल हम स्वयं को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि समाज में इस तरह के अपराधों पर भी रोक लगा सकते हैं। भारतीय कानून और साइबर सुरक्षा एजेंसियाँ इन अपराधों से निपटने के लिए पर्याप्त हैं, लेकिन जनता को भी अपने स्तर पर सतर्क रहना आवश्यक है। अंततः, डिजिटल अरेस्ट जैसी अवधारणाओं से बचाव के लिए जागरूकता और सतर्कता ही हमारी सबसे बड़ी ढाल है।

लेखक:- निरंजन कुमार
अधिवक्ता, पटना उच्च न्यायालय

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