दुनियां – अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से रूस-यूक्रेन और इजराइल की जंग पर क्या होगा असर? – #INA

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं, लेकिन इस चुनाव के नतीजों का असर सिर्फ अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया पर होने वाला है. खास कर उन क्षेत्रों पर जो लंबे समय से युद्ध झेल रहे हैं. एक ओर 32 महीने से रूस और यूक्रेन की जंग जारी है तो वहीं दूसरी ओर गाज़ा में भी बीते एक साल से इजराइली हमले जारी हैं.
सितंबर के आखिरी हफ्ते से इजराइल ने लेबनान पर भी आक्रमण कर दिया जिसके चलते अरब-अमेरिकी वोट डेमोक्रेटिक पार्टी के पाले से खिसकने लगे. वैसे तो गाजा युद्ध को लेकर अमेरिकी मुस्लिम बाइडेन और हैरिस प्रशासन से खासे नाराज़ थे लेकिन लेबनान युद्ध ने उनके गुस्से को और भड़का दिया है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि ट्रंप या हैरिस की जीत से क्या युद्ध खत्म होने की संभावना होगी या फिर ये जंग और विकराल रूप ले लेगी?
गाजा और लेबनान युद्ध पर क्या होगा असर?
व्हाइट हाउस की रेस में शामिल दोनों ही प्रमुख उम्मीदवार इजराइल के प्रति पुरजोर समर्थन जताते रहे हैं. कमला हैरिस या डोनाल्ड ट्रंप दोनों में से किसी भी उम्मीदवार के जीतने पर युद्ध के खत्म होने की संभावना बेहद कम है.
ट्रंप ने मुसलमानों से किया शांति का वादा
डोनाल्ड ट्रंप 7 अक्टूबर को इजराइल पर हुए हमास के हमले की खुलकर आलोचना करते रहे हैं इस हमले में करीब 1200 इजराइली मारे गए और 251 लोगों को हमास के लड़ाकों ने बंधक बना लिया था. उन्होंने गाजा के लोगों के प्रति बेहद कम सहानुभूति जाहिर की है, जबकि इजराइली हमले में 43 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है.
जुलाई ने इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से मुलाकात के दौरान ट्रंप ने हमास पर पूर्ण विजय हासिल करने को कहा था. हालांकि उन्होंने गाजा को लेकर कहा था कि फिलिस्तीनियों की हत्या बंद होनी चाहिए लेकिन ट्रंप ने इसके साथ यह भी जोड़ा कि नेतन्याहू जानते हैं कि वह क्या कर रहे हैं.
डोनाल्ड ट्रंप वही व्यक्ति हैं जिन्होंने राष्ट्रपति पद पर रहते हुए दुनियाभर के विरोध के बावजूद विवादित जेरूशलम क्षेत्र को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता दी, जबकि दुनिया के कई देश आज भी तेल अवीव को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देते हैं. इसके अलावा ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में कई अरब देशों और इजराइल के बीच अब्राहम अकॉर्ड के जरिए सामान्य संबंध स्थापित करवाए. साथ ही ट्रंप ने ओबामा के कार्यकाल में ईरान के साथ की गई न्यूक्लियर डील से भी अमेरिका को अलग कर लिया था, खास बात ये है कि इजराइल भी इस डील का विरोध कर रहा था.
अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर. (Social Media/Anadolu via Getty Images)
हालांकि 2020 में ट्रंप के ‘पीस प्लान’ की वजह से नेतन्याहू के साथ उनके रिश्ते थोड़े तल्ख हो गए. इस प्लान के मुताबिक दो राष्ट्र समाधान के साथ ईस्ट जेरूशलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाया जाना था. लेकिन ट्रंप के इस प्रस्ताव का फिलिस्तीनियों ने कड़ा विरोध जताया क्योंकि इसमें फिलिस्तीन का एक बड़ा हिस्सा इजराइल को देने की बात थी. वहीं नेतन्याहू ने इस प्लान का फायदा उठाने की कोशिश करते हुए फिलिस्तीन के वेस्ट बैंक को इजराइल में शामिल करने की घोषणा कर दी जिसके बाद ट्रंप का पीस प्लान फेल हो गया. ट्रंप, नेतन्याहू के इस कदम से सहमत नहीं थे, उन्होंने अमेरिकी पब्लिकेशन Axios से कहा था कि, ‘मैं बहुत गुस्से में था, यह बहुत ज्यादा हो रहा था.’
हालांकि अपने पहले कार्यकाल में मुसलमानों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध लगाने और नेशनल रजिस्टर बनाने की मांग करने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में अमेरिकी मुसलमानों को लुभाने की खूब कोशिश की है. उन्होंने अरब-अमेरिकियों की बड़ी आबादी वाले स्विंग स्टेट मिशिगन में जंग को खत्म करने की बात कही है. हालांकि ट्रंप ने अपने बयान में गाजा और इजराइल का जिक्र नहीं किया लेकिन उन्होंने कहा था कि, ‘लेबनान में आपके दोस्त और परिवार को अपने पड़ोसियों के साथ शांति, समृद्धि और सौहार्द से रहने का अधिकार है और यह केवल तभी संभव है जब मिडिल ईस्ट में शांति और स्थिरता आएगी.’
बिना कार्रवाई के हैरिस की कैसी सहानुभूति?
वहीं कमला हैरिस की बात करें तो वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में गाजा के पीड़ितों को लेकर ज्यादा मुखर रहीं हैं. उन्होंने लगातार इजराइल पर जंग खत्म करने और बंधकों की रिहाई के लिए डील को स्वीकार करने का दबाव डाला है, जुलाई में जब हैरिस नेतन्याहू से मिली थीं तो उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा था कि वह गाजा के लोगों के उत्पीड़न पर चुप नहीं रहेंगी. कमला हैरिस ने कहा था कि इजराइल को अपनी आत्मरक्षा का अधिकार है लेकिन उसका तरीका मायने रखता है. गाजा में बीते महीनों में जो कुछ हुआ वह दिल दहलाने वाला था.
कमला हैरिस और नेतन्याहू (Alex Wong/Getty Images)
कमला हैरिस ने लेबनान बॉर्डर पर शांति की इच्छा भी जताई है लेकिन इसे लेकर उन्होंने कोई प्लान पेश नहीं किया है. हालांकि बाइडेन प्रशासन लगातार इजराइल पर गाजा और लेबनान में युद्धविराम के लिए दबाव डाल रहा है लेकिन विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के 11 दौरों के बावजूद असफलता ही हाथ लगी है. बाइडेन प्रशासन इजराइल से अपनी बात मनवाने में नाकाम साबित हुआ है और माना जा रहा है कि कमला हैरिस भी बयानों के अलावा जमीनी स्तर पर युद्ध रुकवाने के लिए कुछ खास कदम हीं उठा पाएंगी. अमेरिकी अरब और मुस्लिम समुदाय के लोगों का मानना है कि इजराइल को हथियार सप्लाई रोके बिना यह मुमकिन नहीं है और हैरिस ने पहले ही इसे लेकर साफ कर दिया है कि वह इजराइल को हथियार देने पर प्रतिबंध का समर्थन नहीं करती हैं.
2020 के चुनाव में अरब अमेरिकी वोटर्स ने प्रमुख स्विंग स्टेट्स में से एक मिशिगन में बाइडेन की जीत में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन उनमें से ज्यादातर मतदाता अब डेमोक्रेटिक पार्टी पर भरोसा खो चुकें हैं, इनमें से कुछ रिपब्लिकन का सपोर्ट कर रहे हैं तो कुछ ने वोट न देने का फैसला किया है. वहीं मिशिगन में हैरिस के लिए प्रचार के दौरान पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने गाजा में इजराइली बमबारी को सही साबित करने की कोशिश की जिससे अमेरिका के अरब और मुस्लिम वोटर्स हैरिस से खासे नाराज हैं.
क्या थम जाएगा रूस-यूक्रेन युद्ध?
रूस और यूक्रेन के बीच करीब 32 महीनों से जंग जारी है. कीव की सेना ने रूस के कुर्स्क में घुसपैठ का साहस तो दिखा दिया लेकिन रूस के खिलाफ जंग में लंबे समय तक बने रहने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा सैन्य समर्थन की जरूरत है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन चाहते हैं कि यूक्रेनी जमीन पर कब्जे के साथ-साथ उसे NATO में शामिल होने से रोका जाए. वहीं अक्टूबर में यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने शांति प्रस्ताव में यूक्रेन को NATO में शामिल करने के निमंत्रण को जंग जीतने के लिए अहम कदम बताया था. हालांकि NATO में अमेरिका के सहयोगियों का मानना है कि वह रूस के साथ जंग खत्म होने पर ही यूक्रेन को आमंत्रित करेंगे.
डोनाल्ड ट्रंप जीते तो बर्बाद हो जाएगा यूक्रेन?
विश्लेषकों के मुताबिक अगर ट्रंप चुनाव जीतते हैं तो यह यूक्रेन के लिए विनाशकारी साबित होगा. ट्रंप कई मौकों पर पुतिन की तारीफ कर चुके हैं, उन्होंने मॉस्को के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और 2016 चुनाव में उनकी जीत के लिए क्रेमलिन की ओर से की गई मदद के आरोपों का भी खंडन नहीं किया.
ट्रंप बार-बार कहते रहे हैं कि वह 24 घंटे के अंदर रूस-यूक्रेन युद्ध रुकवा सकते हैं और एक बेहतर शांति प्रस्ताव के लिए दोनों पक्षों को मना सकते हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक वह राष्ट्रपति बनते हैं तो रूस को इस बात की गारंटी दी जा सकती है कि यूक्रेन कभी नाटो में शामिल नहीं होगा, साथ ही जिन क्षेत्रों पर रूसी सेना का कब्जा है उस पर क्रेमलिन का नियंत्रण भी ट्रंप के प्रस्ताव में हो सकता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक ट्रंप इस डील के लिए रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को भी हटा सकते हैं. उन्होंने बाइडेन प्रशासन की ओर से यूक्रेन को मिलने वाली आर्थिक मदद की भी कई बार आलोचना की है. हालांकि विरोधियों का आरोप है कि ट्रंप अपने राजनीतिक लाभ के लिए यूक्रेन को बेच देंगे.
यूक्रेनी सैनिकों की ट्रेनिंग की तस्वीर. (Amos Ben-Gershom (GPO)/Handout/Anadolu via Getty Images)
कमला हैरिस जीतीं तो कीव को राहत!
उप-राष्ट्रपति और डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस ने जंग को खत्म करने के लिए कभी किसी योजना पर बात नहीं की है. लेकिन वह यूक्रेन को सैन्य सहायता प्रदान करने का समर्थन करती हैं. फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया तो इसके बाद से अब तक अमेरिका कीव को 64 बिलियन डॉलर की मदद और हथियार दे चुका है. सितंबर में प्रेसिडेंशियल डिबेट के दौरान कमला हैरिस ने कहा था कि अगर इस जंग में पुतिन जीतते हैं तो वह कीव में बैठे होंगे और उनकी नजर पूरे यूरोप पर होगी, जिसकी शुरुआत पोलैंड से होगी.
वहीं यूक्रेन के NATO में शामिल होने की बात करें तो बाइडेन प्रशासन ने अब तक इस पर अपना वीटो लगा रखा है, साथ ही अमेरिकी हथियारों के रूसी क्षेत्रों में इस्तेमाल पर भी पाबंदी लगा रखी है, जिससे जंग को और बढ़ने से रोका जा सके. वहीं अक्टूबर में राष्ट्रपति जेलेंस्की ने जब विक्ट्री प्लान पेश किया तो व्हाइट हाउस ने इसे लेकर किसी तरह की प्रतिबद्धता नहीं दिखाई. माना जा रहा है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव करीब था और ऐन वक्त पर किसी भी नीति में बदलाव कमला हैरिस की चुनावी जंग को प्रभावित कर सकता था.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर कमला हैरिस जीतती हैं तो बाइडेन प्रशासन जेलेंस्की के विक्ट्री प्लान पर आगे बढ़ने का रिस्क उठा सकता है. वह नाटो में यूक्रेन के शामिल होने पर लगी रोक को हटाने का फैसला कर सकते हैं और कमला हैरिस राष्ट्रपति के तौर पर इसे आगे बढ़ाती नज़र आएंगी. हैरिस के राष्ट्रपति बनने पर कीव को वॉशिंगटन से सैन्य और आर्थिक मदद जारी रहेगी, साथ ही वह अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इस जंग को खत्म करने को लिए रूस पर और दबाव डाल सकती हैं.

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सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

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