देश- लॉरेंस बिश्नोई की धमकी ही नहीं, इन मौकों पर भी अपने ही जाल में फंस चुके हैं पप्पू यादव- #NA
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पूर्णिया सांसद पप्पू यादव और लॉरेंस बिश्नोई
मुंबई के कद्दावर नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई पर टिप्पणी करने वाले पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव मुश्किलों में फंस गए हैं. गैंग से मिली धमकी के बाद पप्पू यादव अब गृह मंत्री अमित शाह और नीतीश कुमार से सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं. पप्पू यादव ने यहां तक कहा है कि नीतीश उनसे मिलने का वक्त ही नहीं दे रहे हैं.
हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब पप्पू यादव अपने ही बयानों की वजह से सियासी टेंशन में आ गए हैं. 2014 और 2024 में भी पप्पू अपने ही बुने जाल में फंस चुके हैं.
लॉरेंस पर बोलकर पप्पू कैसे फंस गए?
बाबा सिद्दीकी की हत्या पर केंद्र सरकार को घेरते हुए पप्पू यादव ने कहा कि दो टके के अपराधियों को तरजीह क्यों दिया जा रहा है. पप्पू ने यहां तक कह दिया कि मेरे हवाले कर दो, उसे सबक सिखा दूंगा. गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई अभी गुजरात की साबरमती जेल में बंद है.
लॉरेंस पर बयान देकर पप्पू इसके बाद मुंबई गए और बाबा के बेटे जिशान से मिले. जिशान से मुलाकात के एक दिन बाद ही पप्पू को दुबई से मारने की धमकी मिली. पप्पू ने केंद्र को जेड प्लस सिक्योरिटी के लिए पत्र लिखा है.
लालू की विरासत पर दावा ठोक दर-बदर हुए
मई 2013 में अजीत सरकार हत्याकांड में बरी होने के बाद पप्पू यादव पटना के बेऊर जेल से बाहर आए. पप्पू के पास उस वक्त न तो सत्ता थी और न ही शक्ति. 2009 में पटना हाईकोर्ट ने पप्पू के चुनाव लड़ने पर ही रोक लगा दिया था. जब पप्पू जेल से आए, लालू ने उन्हें अपने साथ लिया.
2014 के चुनाव में लालू ने आरजेडी के सिंबल पर पप्पू को मैदान में उतारा. पप्पू मधेपुरा से लालू के उम्मीदवार बने. सीट पर शरद यादव पहले से सांसद थे, जिन्हें नीतीश ने फिर से जेडीयू का सिंबल सौंपा था.
यहां से बीजेपी ने भी उम्मीदवार उतार दिया. मधेपुरा की त्रिकोणीय लड़ाई में पप्पू यादव चुनाव जीत गए. 2014 में आरजेडी को 4 सीटों पर जीत मिली. उनमें एक सीट मधेपुरा की थी. जीत के बाद पप्पू यादव का सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 2015 में पप्पू ने लालू की विरासत पर ही दावा ठोक दिया.
दरअसल, लालू प्रसाद यादव 2013 में एक सुप्रीम फैसले की वजह से चुनावी राजनीति से दूर हो गए, जिसके बाद पप्पू को लगा कि उनकी विरासत पर दावा ठोका जा सकता है. कहा जाता है कि सांसद बनने के बाद पप्पू मुख्यमंत्री की रेस में आना चाहते थे.
2015 में पटना में एक बैठक के दौरान पप्पू ने कहा कि मैं लालू का उत्तराधिकारी हूं. यह सुनते ही लालू ने उन्हें फटकार लगाई और मीटिंग से आउट कर दिया. आरजेडी से निकालने जाने के बाद पप्पू ने खुद की पार्टी बनाई. हालांकि, पार्टी बिहार के दंगल में करामात नहीं कर पाई.
2019 के लोकसभा चुनाव में मधेपुरा सीट से पप्पू यादव की जमानत जब्त हो गई. 2015 और 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी पप्पू की पार्टी परफॉर्म नहीं कर पाई. दोनों ही चुनाव में पार्टी शून्य सीट पर सिमट गई.
पार्टी विलय किया लेकिन सिंबल नहीं ले पाए
2024 में पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया. कांग्रेस में विलय करने से पहले पप्पू यादव लालू यादव से मिलने पहुंचे थे. लालू ने उनसे मधेपुरा सीट पर लड़ने का ऑफर दिया था, लेकिन पप्पू पूर्णिया सीट के लिए अड़ गए. लालू और पप्पू में जब तक बात चल रही थी, तब तक उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया.
इससे नाराज लालू ने पूर्णिया सीट पर वीटो लगा दिया. लालू की वीटो की वजह से पप्पू यादव को टिकट नहीं मिल पाया. पप्पू को आखिर में पूर्णिया से निर्दलीय ही चुनाव लड़ना पड़ा.
पप्पू सांसद तो बन गए हैं, लेकिन सियासत में अब भी दर-बदर हैं. आगे उनका भविष्य क्या होगा, इस पर भी सस्पेंस है. पप्पू के साथ-साथ उनके बेटे सार्थक रंजन की सियासत भी मंझधार में फंस गई है.
पप्पू यादव और उनकी सियासत
जमींदार परिवार से आने वाले पप्पू यादव 1990 के दशक में पहली बार चुनावी मैदान में उतरे. 1991 के चुनाव में पूर्णिया सीट से पप्पू निर्दलीय ही सांसदी जीतकर देश भर में सुर्खियों में आए. 1996 में वे समाजवादी पार्टी के सिंबल से चुनाव जीते. 1998 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
1999 में पप्पू फिर निर्दलीय मैदान में उतरे और जीतकर संसद पहुंच गए. 2004 में लोजपा के टिकट पर पप्पू हार गए. 2009 में वे चुनाव ही नहीं लड़ पाए. 2014 में मधेपुरा से जीते लेकिन 2019 में यहां से जमानत जब्त करवा लिए. पप्पू ने इसके बाद मधेपुरा छोड़ दिया.
2024 के चुनाव में पप्पू यादव पूर्णिया से जीतकर संसद पहुंच गए हैं.
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