देश – 'सरकार की आलोचना पर गिरफ्तारी नहीं', पत्रकारों के अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त संदेश – #INA

उत्तर प्रदेश सरकार पर जातिगत पक्षपात का आरोप लगाने वाले एक लेख के बाद गिरफ्तारी की आशंका जताने वाले लखनऊ के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि एक पत्रकार की रचना को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए। उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा, “लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सुरक्षित हैं।”

अभिषेक उपाध्याय के वकील अनुप प्रकाश ने अदालत को बताया कि उनके मुवक्किल द्वारा “यादव राज बनाम ठाकुर राज” शीर्षक से लिखे गए लेख के बाद उन्हें धमकियों और अपशब्दों का सामना करना पड़ा है। इसके साथ ही एक शिकायत के आधार पर उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 353, 197(1)(सी), 302, 356 और आईटी एक्ट की धारा 66 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है। शिकायतकर्ता पंकज कुमार द्वारा यह आरोप लगाया गया कि उपाध्याय का लेख नफरत फैलाने वाला और देश की एकता के खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी याचिका में एक पक्षकार बनाया था, लेकिन अदालत की सलाह के बाद उनके वकील ने मुख्यमंत्री का नाम हटाने पर सहमति जताई। पीठ ने कहा कि यह याचिका एक लेख के कारण गिरफ्तारी की आशंका के चलते दायर की गई है, जिसमें राज्य में जिम्मेदार पदों पर तैनात अधिकारियों की जातिगत स्थिति पर टिप्पणी की गई है।

उपाध्याय ने अपने लेख में दावा किया था कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में ठाकुर (या सिंह) समुदाय के अधिकारियों का राज्य प्रशासन में वर्चस्व बढ़ रहा है। उन्होंने इस प्रवृत्ति की तुलना पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के कार्यकाल से की, जब यादव समुदाय के लोगों को सत्ता के उच्च पदों पर देखा जाता था।

अदालत में उपाध्याय की ओर से पेश वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में शामिल अपराधों को सिद्ध नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह लेख सिर्फ एक पत्रकार की सोच का प्रकटीकरण था। लेख में संबंधित अधिकारियों के नाम भी शामिल किए गए थे, जिनमें नौकरशाही, पुलिस, मुख्यमंत्री कार्यालय, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस प्रमुख और विभिन्न बोर्ड और आयोगों के अध्यक्ष शामिल थे। उपाध्याय ने इन सभी नियुक्तियों में एक विशेष जाति को प्राथमिकता दिए जाने पर सवाल उठाया था। इस पर अदालत ने आदेश दिया कि इस लेख के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा।

#INA #INA_NEWS #INANEWSAGENCY
डिस्क्लेमरः यह लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ आई एन ए टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम की ही होगी.

Back to top button
Close
Log In
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science