देश – हरियाणा में जीत भाजपा के लिए कितनी खास, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी उड़ान से पहले 'लांच पैड' तैयार – #INA

हरिणाया में हैट्रिक लगातार भाजपा के हौसले आने वाले आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर बुलंद हैं। अगला विधानसभा चुनाव महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में होना है, ऐसे में हरियाणा में पार्टी की जीत के कई मायने हैं। हरियाणा में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके भाजपा ने आगामी चुनावों में जीत की उड़ान भरने के लिए ‘लांच पैड’ भी तैयार कर लिया। भाजपा ने हरियाणा में 48 सीट पर जीत दर्ज की। इससे पहले, 2014 में 47 सीट जीतकर पहली बार अपने बूते हरियाणा में सरकार बनाई थी। साल 2019 के चुनाव में उसे 40 सीट मिली थीं।

इसी प्रकार, भाजपा ने जम्मू-कश्मीर में अब तक का अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 29 सीट जीत ली हैं। इससे पहले, साल 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की 90 में से 25 सीट जीतकर अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था।

किसानों और बेरोजगारी पर कांग्रेस की रणनीति धराशायी

हरियाणा में भाजपा का यह प्रदर्शन इसलिए और खास बन जाता है क्योंकि विगत 10 सालों से सत्ता में बने रहने और किसानों, बेरोजगारों तथा पहलवानों के मुद्दों पर कांग्रेस के पक्ष में एक प्रकार का माहौल खड़ा करने के प्रयासों के बावजूद उसने जीत हासिल की। राज्य में कांग्रेस की वापसी का विमर्श जोर पकड़ने के खिलाफ भाजपा की यह जीत एक ऐसी उपलब्धि है जो सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं को फिर से बल देगी जबकि लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद आगे बढ़ने की तलाश में जुटी कांग्रेस को झटका लगा है।

महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली से पहले जीत के मायने

इसके साथ ही यह जीत सत्तारूढ़ पार्टी के विरोधियों को उनके इस दावे को कुंद करने के लिए बाध्य करेगी कि भाजपा की पकड़ उसके समर्थकों पर ढीली पड़ रही है। यह जीत भाजपा की संगठनात्मक दक्षता और बदलते जमीनी परिदृश्य के अनुरूप रणनीति को फिर से तैयार करने की उसके नेतृत्व की गहरी क्षमता को भी दर्शाती है। आने वाले कुछ महीनों के भीतर महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली जैसे प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि हरियाणा की जीत और कश्मीर में उसके प्रदर्शन से आगामी चुनावों में भाजपा को गति मिलेगी। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव को भाजपा और सहयोगी दलों के लिए चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इस पश्चिमी राज्य में लोकसभा चुनाव में ‘इंडिया’ गठबंधन ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को काफी पीछे छोड़ दिया था।

हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की खास बात

हरियाणा और कश्मीर के चुनाव में एक बात और खास रही कि इसमें भाजपा ने अपने वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ तालमेल के साथ काम किया। संघ के बारे में कहा जाता है कि उसके पदाधिकारियों ने संसदीय चुनावों के दौरान प्रचार अभियान से दूरी बना ली थी लेकिन मौजूदा चुनावों में उन्होंने उत्सुकता से भाग लिया।

स्थानीय मुद्दों और जातिगत मुद्दों पर अक्सर रक्षात्मक रुख अपनाने वाले भाजपा नेताओं ने कहा कि पार्टी ने हरियाणा में बाजी पलटने में इसलिए सफलता हासिल की क्योंकि उसने चुनावों को 2004-14 के बीच भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली ‘पर्ची और खरची’ सरकार तथा 2014 से उसके ‘साफ-सुथरे’ प्रशासन के बीच मुकाबले के तौर पर पेश किया। भाजपा के एक नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, ‘‘हमारी एक सफलता यह रही कि हम लोकसभा चुनाव के बाद हुए इन चुनावों में लोगों की सोच को बदलने में सफल रहे।’’

हुड्डा और कुमार सैलजा की रणनीति फेल

राज्य कांग्रेस में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के प्रभाव और कुमारी सैलजा जैसे पार्टी के अन्य क्षत्रपों के पार्श्व में जाने के साथ ही भाजपा ने जमीनी स्तर पर अपने प्रयासों को और तेज किया। इसके तहत चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सहित पार्टी के नेताओं ने विभिन्न समुदायों के साथ बैठकें कीं और राज्य की जाट बनाम गैर-जाट राजनीति की पारंपरिक राजनीति का अपने पक्ष में सफलतापूर्वक उपयोग किया।

कैसे पार हुई जीत की नैय्या

चुनाव अभियान के दौरान मुखर जाट समुदाय और दलितों के एक वर्ग की भाजपा के साथ नाराजगी की बातें हावी रहीं लेकिन परिणामों ने प्रदर्शित किया कि ‘उच्च जातियों’ के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग और दलितों व गरीबों का एक बड़ा वर्ग अपेक्षाकृत मौन रहा और सत्तारूढ़ पार्टी के पीछे खड़ा रहा। मनोहर लाल खट्टर की जगह ओबीसी नेता और अधिक मिलनसार नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने का पार्टी का फैसला भी रंग लेकर आया। चुनावी अभियान में शामिल भाजपा नेताओं ने कहा कि उन्होंने दलितों के उस वर्ग को सफलतापूर्वक भाजपा के पक्ष में किया जिसने लोकसभा चुनाव में पार्टी के खिलाफ वोट दिया था।

पीएम मोदी का नेतृत्व

इस विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने केवल चार रैलियां कीं लेकिन उन्होंने कांग्रेस के शासन के दौरान ‘दामाद’ (रॉबर्ट वाद्रा) से जुड़े विवादास्पद भूमि सौदों और ‘बापू-बेटे’ की राजनीति के आरोपों के साथ ही कांग्रेस के तहत भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जातिवाद के आरोपों पर ध्यान केंद्रित किया। भाजपा के एक अन्य नेता ने कहा कि इस जीत से लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन के बाद गिरते राजनीतिक जनाधार को लेकर चल रही बयानबाजी पर भी विराम लग जाएगा।

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