देश- 15 हजार से 30 लाख तक का सफर, कनाडा तक फैला बिजनेस… जानें बैंबू प्रोडक्ट बेचने वाले सत्यम की सक्सेस स्टोरी- #NA

बांस से बिजनेस करने वाले सत्‍यम

क्या बांस भी आय का साधन हो सकता है? सवाल वाजिब है लेकिन सच यह है कि बांस न केवल आय का साधन हो सकता है बल्कि यह दूसरों के सपनों को भी पूरा करने में सक्षम है. कुछ ऐसी की कहानी है बिहार के पूर्णिया के रहने वाले सत्यमकी है. एमबीए करने के बाद पारंपरिक मार्केटिंग की जॉब करने वाले सत्यम ने बांस की मदद से अपनी सफलता की कहानी को कुछ इस कदर लिखा कि आज अपने देश से लेकर कनाडा तक इस बांस के प्रोडक्ट के कद्रदान हैं.

सत्यम बताते हैं कि जब पूरे देश में कोरोना की लहर थी, उन्होंने तब सरकारी नौकरी की कोशिश की थी लेकिन उसमें काफी वक्त लग रहा था. ऐसे में उन्होंने एमबीए करने के लिए सोचा और कोलकाता की एक संस्थान से एमबीए करने लगा. उन्होंने बताया, “जब मैं एमबीए कर रहा था तो उस दौरान मुझे देश की कई नामी गिरामी एफएमसीजी प्रोडक्ट वाली कंपनियों में प्लेसमेंट भी मिला. मैंने वहां पर पूरे मन से नौकरी भी की. जिसका नतीजा यह हुआ कि कई अन्य ब्रांडेड एफएमसीजी कंपनियों ने मुझे अपने यहां काम करने का मौका दिया.

सत्यम ने बताया, “जब जॉब कर रहा था तो मुझे एक्स्पोज़र बहुत मिला और साथ ही साथ मार्केट को समझने का भी अनुभव मिला. इससे मुझे एक फायदा यह भी हुआ कि लोगों से कैसे मिलना और बात करना है? यह झिझक मेरी इस जॉब के दौरान ही दूर हुई. जब मैं मार्केटिंग में था. तभी मेरे दिमाग में यह बात आई थी कि मैं क्या कुछ ऐसा लग करूं? जो बिहार के लिए नया हो और वह लोगों को पसंद भी आए. भले उसमें हमें तुरंत कमाई न हो लेकिन वह लॉन्ग लास्टिंग हो. मैं पर्यावरण को लेकर के बहुत सचेत रहता हूं. ऐसे में तभी मेरे दिमाग में बांस के प्रोडक्ट को लेकर के आइडिया आया, क्योंकि मेरी सोच यही थी कि जिस तरीके से लोग आज की तारीख में प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं. वह पर्यावरण के लिए कितना नुकसानदायक है. इसके बाद से मैंने अंतिम रूप से बांस के प्रोडक्ट को बनाने की ठानी।

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इलाके में बांस की बहुलता

सत्यम ने बताया कि उनका घर पूर्णिया में है. उन्होंने कहा, “पूर्णिया के साथ ही आसपास के किशनगंज, कटिहार, अररिया जैसे जिलों में बांस बहुतायत में मिलते हैं. खास बात यह कि इनमें कई प्रकार के बांस उपलब्ध हैं. इन इलाकों में उपलब्ध बांस को लेकर के हमने थोड़ा बहुत रिसर्च किया और फिर सामान बनाने के लिए अंतिम रूप से अपने काम को शुरू किया. इन बांस के प्रोडक्ट को बेचने के लिए मुझे शुरू में मेहनत करनी पड़ी. सबसे पहली बार मैंने बांस का बोतल बनाया था. मैं खुद उन सामान को लेकर के सड़क के किनारे खड़ा हो जाता था. पूर्णिया के कई चौक चौराहे पर खड़ा होकर के में अपने प्रोडक्ट के बारे में लोगों को बताता था. कुछ लोग देखते थे तो कुछ रुक कर सवाल जवाब भी पूछते थे. कुछ यहां तक कहते थे कि यह बांस के प्रोडक्ट बनाए हो. यह चलेगा? उनके पूछने का लहजा बिल्कुल सवाल करने के लहजे के जैसा होता था. हालांकि संतोषजनक बात यह रहती थी कि ज्यादातर लोग हमारे प्रोडक्ट की प्रशंसा ही करते थे.”

फिर लेना पड़ा लोन

सत्यम ने बताया, “धीरे धीरे हमारे प्रोडक्ट को लोग पसंद करने लगे. लोगों के जुड़ने का सिलसिला शुरू हो गया. अब हमारे पास सबसे बड़ी परेशानी पैसों की थी, क्योंकि अब लोग हमारे प्रोडक्ट को पसंद कर रहे थे तो हमारी भी जिम्मेदारी अब बढ़ती जा रही थी. ऐसे में हमने लोन के लिए आवेदन किया और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत 10 लाख रुपए का लोन भी लिया. मैंने तब तक अपनी नौकरी को छोड़ दिया था. लोन मिलने के बाद हमने ने छोटे स्तर पर ही सही एक फैक्ट्री का सेटअप भी तैयार किया. इस फैक्ट्री में आज 12 मजदूर सैलरी पर काम करते हैं जबकि कई अन्य लोग कमीशन के हिसाब से जुड़े हुए हैं.”

10 दिनों में प्रोडक्ट बनकर के होते हैं तैयार

सत्यम कहते हैं, आज देश के तकरीबन 29 राज्यों में हमारे प्रोडक्ट जा रहे हैं। इसके अलावा बांस के बने इन प्रोडक्ट को कनाडा भी भेजा गया है, जहां उसे काफी पसंद किया गया है. सत्यम बताते हैं कि अमूमन एक बांस में 10 से 11 बोतल बन जाते हैं, यह बांस 100 से लेकर के डेढ़ सौ रुपए तक में मिल जाते हैं. बांस को बेचने वाले किसान से कभी भी हम मोलभाव नहीं करते हैं क्योंकि वह उसके लिए एक आर्थिक साधन होता है. एक बांस से तैयार होने वाले बोतल की कीमत हमने मात्र डेढ़ सौ रुपए तय करके रखी है, जबकि अन्य कमर्शियल वेबसाइट पर इसकी कीमत 400 से 500 रूपये तक होती है. सबसे बड़ी बात यह कि बांस से जो प्रोडक्ट बनाए जाते हैं इनमें वक्त लगता है. कम से कम आठ से 10 दिनों में प्रोडक्ट बनकर के तैयार होते हैं. इतनी कम दर पर देश के वैसे राज्य भी बांस के प्रोडक्ट को नहीं बनाते हैं जहां पर बांस बहुतायत में मिलते हैं.

हजार से लाखों में पहुंचा टर्नओवर

सत्यम ने बताया, “जब मैंने इस बिजनेस को शुरू किया तो मेरा टोटल इन्वेस्ट करीब 15 हजार रुपए थे. आज की तारीख में हमारा टर्नओवर तकरीबन 30 लाख रुपए हो चुका है.” सत्यम अब बांस से न केवल बोतल और कान के झुमके बनाते हैं बल्कि वह श्री राम की आकृति से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आकृति, डेकोरेटिव आइटम और लैंप तक भी बनाते हैं यानी आज की तारीख में सत्यम तकरीबन 250 बस के प्रोडक्ट बनाते हैं. वह बांस के बोतल, ब्रश, कंघी, टंग क्लीनर, कॉरपोरेट गिफ्टिंग के लिए कलम की स्टैंड को भी बनाते हैं. इसके अलावा सत्यम के प्रोडक्ट कनाडा भी भेजे जाते हैं. बांस के बोतल दो तीन तरीके से बनाए जाते हैं. काम और बेहतर तरीके से कैसे हो? इसके लिए सत्यम ने हाल ही में नागपुर से एक मशीन की भी खरीदारी की है.

मां का अहम योगदान

सत्यम ने बताया, “मेरी इस सफलता में मेरी मां आशा अनुरागिनी का बहुत बड़ा योगदान है. जिस तरीके से मैं पर्यावरण को लेकर के सोचता हूं उसी प्रकार से मेरी मां भी पर्यावरण को लेकर के बहुत सचेत रहती है. जब हम लोग ने इस काम की शुरुआत की थी, मैंने तभी अपनी मां से कहा था कि यह हमें अभी तुरंत पैसा नहीं देगा, लेकिन एक वक्त ऐसा जरूर आएगा जब यह हमारे लिए आय का बहुत बड़ा साधन बन जाएगा. कच्चे माल से लेकर के उसे तैयार करना और जगह तक पहुंचाने की जिम्मेदारी मेरी होती है, जबकि मां एग्जिबिशन और मेलों में लगाने वाले स्टॉल की जिम्मेदारी संभालती है.”

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