देश – 3 माह में तीन चरण में बनी न्याय की देवी की मूर्ति, शिल्पकार विनोद ने बताया- CJI ने दिए थे क्या निर्देश – #INA

सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में बुधवार (16 अक्तूबर) को न्याय की देवी की नई प्रतिमा स्थापित की गई है। इस नई प्रतिमा में न्याय की देवी की आंखों से पट्टी हटा दी गई है और एक हाथ में तलवार की जगह संविधान थमा दिया गया है। एक हाथ में पहले की ही तरह तराजू रखा गया है। इसके अलावा प्रतिमा का वस्त्र भी बदला गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के निर्देश पर इसे शिल्पकार विनोद गोस्वामी ने बनाया है। उन्होंने बताया कि तीन महीने की मेहनत के बाद इस प्रतिमा को तैयार किया गया है। गोस्वामी ने कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि मुझे इस प्रतिमा को बनाने का अवसर मिला।

तीन चरणों से गुजरी प्रतिमा निर्माण का प्रक्रिया

NDTV से बातचीत में विनोद गोस्वामी ने बताया कि इस प्रतिमा को बनाने में तीन महीने के दौरान तीन प्रक्रियाओं से गुजरनी पड़ी है। उन्होंने इसकी प्रकिया के बारे में बताया कि सबसे पहले एक ड्राइंग बनाई, इसके बाद एक छोटी प्रतिमा बनाई गई। जब मुख्य न्यायाधीश को वह प्रतिमा पसंद आ गई, तब बाद में छह फीट ऊंची दूसरी बड़ी प्रतिमा बनाई गई। नई प्रतिमा का वजन सवा सौ किलो है।

उन्होंने बताया कि चीफ जस्टिस के मार्गदर्शन और दिशा निर्देश के अनुसार ही न्याय की नई मूर्ति बनाई गई है। उन्होंने बताया कि चीफ जस्टिस ने कहा था कि नई प्रतिमा कुछ ऐसी हो जो हमारे देश की धरोहर, संविधान और प्रतीक से जुड़ी हुई हो। गोस्वामी ने कहा कि इसी को ध्यान में रखते हुए गाउन की जगह प्रतिमा को साड़ी पहनाई गई है। ये नई प्रतिमा फाइबर ग्लास से बनाई गई है।

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कौन हैं विनोद गोस्वामी?

विनोद गोस्वामी दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट में चित्रकला के प्रोफेसर हैं। वह उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं। उनका जन्म ब्रजमंडल के नंदगांव में हुआ है। वह अपनी कलाओं में राजस्थानी और ब्रज परंपराओं के विलय को दर्शाने वाले अपने सुंदर भित्ति चित्रों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान के सीमावर्ती कस्बे में पूरी की। इसके बाद उन्होंने जयपुर के राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने नई दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट्स से मास्टर डिग्री हासिल की। ​​

मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1997 में अपने करियर की शुरुआत जयपुर में की, फिर दिल्ली चले आए, जहां उनकी मुलाकात सुरेंद्र पाल से हुई, जो उनके गुरु थे। गोस्वामी ने सुरेंद्र पाल से ही बाद में पेंटिंग की बारीकियां सीखीं। गोस्वामी रेखाचित्र, भित्तिचित्र, मूर्तिकला और पेंटिंग में निपुण हैं।

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