मैथिली कलाकारों – गायकों व कवियों की होती अनदेखी, स्वनाम धन्य कवियों से सजता मंच!

रिपोर्ट अमरदीप नारायण प्रसाद

विद्यापतिनगर (समस्तीपुर)। राजकीय महोत्सव का स्वरूप भी कवि कोकिल विद्यापति जी की रचनात्मक भव्यता और मिथिला की गौरवशाली अतीत को जीवंत करने में अब कोसों दूर रहा है। नतीजतन महाकवि की श्रद्धांजलि सभा में उनकी रचनाओं की व्यापकता विमुख होती जा रही है। स्थानीय लोगों के प्रयास से सन 1952 ई. से ही लगातार मनाएं जाने वाले कार्यक्रम में पूर्व की भांति उच्च स्तरीय कलाकारों व गायकों को आमंत्रित नहीं किए जाने खासकर मैथिली जगत के कलाकारों – गायकों व कवियों की अनदेखी होती रही हैं। कार्यक्रम के स्तर में भारी गिरावट की वजह से पहले की तरह अब श्रोता दर्शकों की उपस्थिति नहीं रहती। अपनी काव्य रचनाओं से मिथिला का नाम देश दुनिया में दिव्यमान पुंज की तरह स्थापित करने वाले कवि कोकिल विद्यापति जी की स्मृति में आयोजित इस महोत्सव के दरम्यान आयोजित कवि सम्मेलन में आज तक स्थापित कवियों की बजाय स्वनाम धन्य कवियों की काव्य प्रस्तुति श्रोताओं को अंतर्मन को सालती रही हैं। गत कई वर्षों से एक ही स्वनाम धन्य कवियों की सूची व उनकी रचनाओं को सुनते सुनते श्रोता दर्शक ऊब चुके हैं। हाल के दिनों में श्रोता दर्शकों की नगण्य उपस्थिति बतौर इसकी प्रामाणिकता के रूप में देखा जा सकता हैं। धार्मिक मान्यताओं में ईश्वरीयता को प्राप्त हो चुके भक्त कवि के प्रति आदरभाव, स्नेह, प्रेम की विशालता का परोक्ष प्रमाण मिथिला के कण- कण में सुवासित है। ऐसे में महाकवि के नाम पर होने पर महोत्सव में कवि विद्यापति जी की विशालता को परोक्ष रूप में श्रद्धालुओं के समुख परोसने में विफल रहा है। अब चाहे कम बजट में ही कवि सम्मेलन का आयोजन करने की प्रशासनिक मजबूरी हो या फिर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर किसी तरह आयोजन कर लेने की कवायद। कुल मिलाकर कवि कोकिल विद्यापति जी के प्रति ये स्वनाम धन्य कवि कोविद अपनी अटपटी व रटाऊ कविताओं की प्रस्तुति से भक्ति भाव के धनी महाकवि विद्यापति जी के प्रति न्याय स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। बताते हैं कि भक्ति-भाव के प्रणेता महाकवि विद्यापति सांस्कृतिक चेतना और सामाजिक एकता के प्रतीक माने जाते हैं। उनके नाम पर आयोजित राजकीय महोत्सव में कतिपय राजनेताओं व पदाधिकारियों के विचार जहां अब तक सांस्कृतिक चेतना को गति देने में विफल रहे हैं। वहीं सामाजिक एकता को भी बल प्रदान करने में ऐसे लोग अब तक फिसड्डी ही साबित होते रहे हैं। भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से मैथिली भाषा के सर्वोपरी कवि के रुप में महाकवि विद्यापति जी की पहचान रही है। राजकीय महोत्सव अधिकारियों और स्थानीय छूटभैये नेताओं के तथाकथित बड़बोलेपन से फीका होता आया है। मैथिली साहित्य के सर्वोपरि कवि के नाम पर आयोजित कवि सम्मेलन नामचीन कवियों की उपस्थिति से अछूता होता है। जहां मैथिल भाषा श्रोताओं के कानों तक नहीं पहुंच पाती हैं। मैथिली भाषा के कवि का मंच पर न होना जहां विद्यापति जी के प्रति भेदभाव को प्रतिबिंबित करता है। वहीं निम्न स्तरीय सामाजिक पहुंच का लाभ उठाकर रातों रात स्व को कवि के रुप में सामने आने वाले साहित्य के सुरों से बेसुरों लोग अब तक कवि सम्मेलन की गरिमा को तार-तार करने का प्रयास ही किया है। ऐसे कवि महोत्सव की तैयारी बैठकों में शामिल होने को भी शुरू से ही व्याकुल रहते हैं। कवि सम्मेलन में शामिल होने वाले कवियों की सूची तय करने के दौरान अपने परिवार, रिश्तेदारों और कतिपय नामों को सुची में शामिल करने में व्याकुल दिखने से महोत्सव में दुसरे दिन होने वाले कवि सम्मेलन की सफलता पर प्रश्न चिन्ह लगना तय होता आया है।

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