यूपी- यूपी में जब चुनाव से पहले हुए दंगे, तब किसे मिला सियासी फायदा? हाशिमपुरा से कासगंज तक की कहानी – INA

बहराइच के जलने की तपिश दिल्ली से लेकर लखनऊ तक महसूस की जा रही है. नेता और पार्टियां अपने-अपने फायदे के हिसाब से बयान दे रहे हैं. सियासी फैसले ले रहे हैं. कहा जा रहा है कि उपचुनाव से पहले बहराइच दंगे को लेकर कोई भी पार्टी सियासी रिस्क लेने को तैयार नहीं है. वजह है दंगे का चुनावी कनेक्शन.

यूपी में जब भी दंगे हुए हैं, तब-तब उसका सीधा असर राजनीतिक दलों पर पड़ा है. चुनाव से पहले हुए दंगे की वजह से कांग्रेस यूपी की सियासत से साफ हो गई, तो 2 बार समाजवादी पार्टी को भी इसका नुकसान उठाना पड़ा.

बहराइच की इस हिंसा के बाद यूपी की 9 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव होने हैं, इसलिए भी पार्टियां फूंक-फूंक कर कदम रख रही है.

चुनाव से पहले दंगा, किसे नफा-किसे नुकसान?

1. हाशिमपुरा के बाद साफ हो गई कांग्रेस- 1987 में उत्तर प्रदेश के मेरठ और उसके आसपास सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई. घटना धीरे-धीरे दंगे में तब्दील हो गया. यह दंगा करीब 3 महीने तक चला. उस वक्त केंद्र और यूपी की सत्ता में कांग्रेस की सरकार थी. दंगे तब और भयावह हो गए, जब यहां तैनात सेंट्रल फोर्स पर 75 मुस्लिम युवकों की हत्या का आरोप लगा.

इसे हाशिमपुरा नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है. इस घटना ने तत्कालीन वीर बहादुर सिंह की सरकार को बैकफुट पर धकेल दिया. कांग्रेस ने इस मामले में बचाव की कई कवायद की, लेकिन सब ढाक के तीन पात साबित हुए.

1989 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली. पार्टी 70 के करीब ही सीट जीत पाई. मुलायम और चौधरी अजित सिंह के नेतृत्व में जनता दल ने 208 सीटों पर बड़ी जीत दर्ज की.

इस हार के बाद कांग्रेस यूपी की सत्ता में कभी वापस नहीं आ पाई. वर्तमान में कांग्रेस के पास यूपी में सिर्फ 2 ही विधायक हैं.

2. अलीगढ़ दंगे से मुलायम को नुकसान- 90 के दशक में मुसलमान और यादव समीकरण के बूते यूपी की सियासत में धाक जमाने वाले मुलायम सिंह यादव को 2006 के अलीगढ़ दंगे ने काफी नुकसान पहुंचाया. 2006 में अलीगढ़ में दो समुदायों के बीच हिंसा भड़क गई. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मुलायम पर निशाना साधा.

सपा मुखिया भी इस मामले को लेकर बैकफुट पर चले आए. 2007 के विधानसभा चुनाव में सपा को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. इस चुनाव में 143 सीटों से सपा 97 पर आ गई. सपा की सहयोगी आरएलडी 15 से 10 पर पहुंच गई.

बहुजन समाज पार्टी मुसलमान, दलित और ब्राह्मण समीकरण के जरिए अकेले दम पर यूपी की सत्ता में आ गई. मुलायम ने हार के लिए मुस्लिमों को ही जिम्मेदार माना. वजह मुस्लिम इलाकों की अधिकांश सीटों पर मायावती की पार्टी का जीतना था.

3. मुजफ्फरनगर से बीजेपी को हुआ फायदा- 2013 में मुजफ्फरनगर के कवाल गांव में दो समुदायों के बीच झगड़ा हो गया. धीरे-धीरे प्रशासन की विफलता की वजह से यह दंगा में तब्दील हो गया. दावे के मुताबिक मुजफ्फरनगर दंगे में करीब 280 लोग मारे गए, जिसमें जाट और मुस्लिम समुदाय के लोग थे.

इस दंगे के एक साल बाद 2014 में लोकसभा चुनाव कराए गए. इस चुनाव में पश्चिमी यूपी की सभी सीटों पर बीजेपी अकेले जीत गई. 2009 में पश्चिमी यूपी की 3 सीटों पर सपा, 5 पर आरएलडी, 7 पर बीएसपी और 2 पर कांग्रेस को जीत मिली थी.

2017 के विधानसभा चुनाव में भी मुजफ्फरनगर दंगे का असर देखने को मिला. सपा पश्चिमी यूपी में पूरी तरह साफ हो गई. पश्चिमी यूपी की क्षेत्रीय पार्टी आरएलडी भी एक सीट पर सिमट गई.

4. कासगंज में दंगा, बीजेपी को नुकसान- 2018 में यूपी के कासगंज में प्रतिमा विसर्जन के दिन दो गुटों में लड़ाई हो गई. लड़ाई में तेजी तब आई, जब चंदन नाम के एक शख्स की हत्या कर दी गई. इसके बाद पूरे इलाके में तनाव फैल गया. दंगे के बाद योगी सरकार बैकफुट पर आ गई.

इस घटना के 3 साल बाद यूपी विधानसभा के चुनाव हुए. 2017 में कासगंज और फिरोजाबाद के इलाके में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन कासगंज दंगे के बाद हुए सामाजिक गोलबंदी से बीजेपी को नुकसान हुआ.

कासगंज की 3 में से 2 सीटों पर ही बीजेपी जीत पाई. 2017 में उसे तीनों पर जीत मिली थी. इसी तरह फिरोजाबाद की 5 में से 3 पर ही पार्टी जीत पाई. यहां भी 2017 में उसका रिकॉर्ड बेहतरीन था.


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