यूपी- 115 साल पहले ही तय हो गया था… गाजीपुर में किस रूट से गुजरेगी झांकी, कहां से निकलेगा ताजिया? देखें समझौता पत्र – INA

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर की रामलीला को करीब 450 साल पुराना बताया जाता है. पुरखों के जमाने से चली आ रही इस रामलीला की कहानियां आज भी गाजीपुर के गलियारों में घूमती हैं, लेकिन अब इस रामलीला से संबंधित एक समझौता पत्र सामने आया है जिसने इसके इतने प्राचीन होने की तस्दीक कर दी है. ये समझौता पत्र, ताजियादार कमेटी और रामलीला कमेटी के बीच हुआ था. यह समझौता पत्र 1909 का बताया जाता है, जिसमें तत्कालीन कलेक्टर बारलूम और एसपी के साथ ही स्थानीय ताजीयादरा कमेटी और रामलीला कमेटी के बीच ताजिया और रामलीला के झांकी निकालने के रास्ते को तय किया गया है.

इस पत्र में यह भी जानकारी दी गई है कि गाजीपुर की रामलीला अवध काल में 1780 के आसपास शुरू की गई थी. इस लेटर के हिसाब से ताजिया तार कमेटी के 12 मुस्लिम लोग और रामलीला कमेटी के 12 हिंदू लोग इस समझौते में शामिल हुए थे. वहीं रामलीला और दशहरे से संबंधित दुर्लभ दस्तावेज बलवंत नामा में कैद हैं. ये फारसी भाषा में लिखे हैं. इस दस्तावेज में नवाब फजल अली गाजीपुर में कैसे दशहरा उत्सव मनाते थे उसका जिक्र किया गया है.

18 सितंबर 1909 का समझौता पत्र

साहित्यकार और इतिहासकार ओबेदुर रहमान ने बताया कि यह समझौता पत्र 18 सितंबर 1909 का है जिसमें लिखा गया है कि रामलीला की सभी झांकियां, मकबरा पहाड़ खान महुआबाग से उठकर डाक्टर मुख़्तार अहमद अंसारी मार्ग जिसे आज नेवील रोड कहा जाता है से होकर झूंन्नू लाल चौराहा, महाजन टोली, सैयद वाड़ा होकर स्टीमार घाट जाया करेंगी. साथ ही जो मुख्य मार्ग मिश्र बाजार, लाल दरवाजा, टाउन हाल, स्टीमर घाट है उसको रामलीला कमेटी और ताजियादरान किसी भी तरह से प्रयोग में नहीं लाएंगे. अगर इस समझौते की कोई अवहेलना करता है तो उसके खिलाफ करवाई होगी. इस समझौता पत्र को जो तत्कालीन कलक्टर के बंगले पर तैयार किया गया था, रामलीला कमेटी के पक्षकारों की तरफ से 12 और तजियादारान पक्षकारों की तरफ से 12 लोगों के नाम थे. इनके नामों के दस्तखत भी इसमें मौजूद हैं और ये सभी 24 लोग जनपद के जानें-मानें जमींदार थे.

ब्रिटिश रिकार्ड्स में मिले निशान

तत्कालीन 1909 के इन ब्रिटिश रिकार्ड्स में जनपद के अलग-अलग स्थानों पर जो रामलीला का मंचन किया जाता था और दशहरा उत्सव स्थानीय रामलीला कमेटीयों द्वारा होता था. इस त्यौहार की तैयारियां बड़े जोर-शोर से कई दिनों पहले से होने लगती थीं. शहर के लंका मैदान में दशहरे के त्योहार का आयोजन किया जाता था. अश्विन शुक्ल की 10 तारीख को ये आयोजन होता था जिसमें करीब 15,000 श्रद्धालू शामिल होते थे. उसी दिन गांव पलिया में दशहरा मनता था जिसमें लगभग 3,000 श्रद्धालू शामिल होते थे. सैदपुर की रामलीला मंचन पूर्वांचल में लोकप्रिय थी जो अश्विन शुक्ल की 10 तारीख को मनाई जाती थीं जिसमें 20,000 लोग आते थे. जखनिया गोविन्द की रामलीला में भी लगभग 5,000 श्रद्धालू शरीख होते थे साथ ही जलालाबाद में भी इतने ही श्रद्धालू रामलीला के जश्न में शरीख होते थे.

दशहरा का भव्य स्वरूप

गाज़ीपुर के दशहरा को भव्य रूप देने में, रामनगर के राजा बलवंत सिंह और राजा चेत सिंह का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है. अवधकाल में रामलीला की झांकियां लोटन इमली से निकला करती थीं और लंका के मैदान में आकर रावण का वध होता था. राजा बलवंत सिंह के तत्कालीन स्थानीय प्रशासक बल्लम दास थे जिनके नेतृत्व में धार्मिक अनुष्ठान अदा किये जाते थे. इसके लिए अलग से एक सरकारी कोष नियुक्त था. इस शोभा यात्रा में हर बार काशी की रामलीला की तरह यहां भी हर-हर महादेव के उद्घोष सुनाई देते थे.


Source link

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News