यूपी- 42 साल से रेलवे ने नहीं चुकाए 12 करोड़, वसूली के लिए लखनऊ से पहुंच गए अधिकारी; क्या है पूरी कहानी? – INA

उत्तर प्रदेश के मेरठ में कैंट की जमीन का इनकम टैक्स, बीएसएनएल, सीजीएसटी समेत रेलवे इस्तेमाल करता है. जिसका कैंट की तरफ से सर्विस चार्ज के रूप में कर वसूला जाता है. इन कंपनियों पर करोड़ों रुप का सर्विस चार्ज बाकी है. इसी सिलसिले में कैंट बोर्ड के सर्विस चार्ज व अन्य कर वसूली के लिए मध्य कमान लखनऊ एन सत्यनारायण निदेशक प्रथम मेरठ पहुंचे. उन्होंने इनकम टैक्स, बीएसएनएल, सीजीएसटी समेत रेलवे के अधिकारियों से बात की. वहीं अधिकारियों ने निदेशक को बजट आने पर चार्ज जमा करने का आश्वासन दिया. बोर्ड के नामित सदस्य सतीश शर्मा ने भी आम जन की समस्या से निदेशक को अवगत कराया. उन्होंने कहां कि कैंट बोर्ड को नगर निगम में शामिल करने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है. लेकिन अभी तक प्रस्ताव पर काम नहीं हुआ. जिस वजह से जनता परेशान है.

निदेशक एन सत्यनारायण ने बताया कि इनकम टैक्स, बीएसएनएल, सीजीएसटी समेत रेलवे का कार्यालय कैंट की जमीन पर हैं. कैंट बोर्ड एक्ट के अनुसार संबंधित विभाग से सर्विस चार्ज के रूप में कर लिया जाता हैं, जो कैंट बोर्ड के निजी कार्य व सौंदर्यीकरण में उपयोग किया जाता है. लेकिन विभाग द्वारा कई सालों से टैक्स जमा नहीं किया गया. उन्होंने बताया कि इनकम टैक्स विभाग से 3 करोड़, रेलवे से 12 करोड़, सीजीएसटी से 12 करोड़ और बीएसएनएल से 17 लाख का सर्विस चार्ज लेना है.

कार्रवाई की कही बात

इस संबंध में कैंट बोर्ड के सीईओ जाकिर हुसैन ने विभाग को पत्र लिखकर जानकारी दी. लेकिन सर्विस चार्ज जमा नहीं किया गया. एन सत्यनारायण ने संबंधित विभाग के उच्च अधिकारियों से वार्तालाप कर सर्विस चार्ज जमा करने के लिए कहां है. उनका कहना है कि यदि इसके बावजूद भी विभाग चार्ज जमा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.

1982 से है बकाया

कैंट बोर्ड के नामित सदस्य सतीश शर्मा ने कहा कि बोर्ड द्वारा समय से सर्विस चार्ज की वसूली की जाती तो यह पैसा कर्मचारियों के वेतन और कैंट बोर्ड के सौंदर्यीकरण के लिए उपयोग होता. लेकिन करोड़ों की वसूली के लिए मध्य कमान का मेरठ आना हुआ. उन्होंने मध्य कमान को जनता की समस्या से अवगत कराते हुए कहा कि कैंट विधायक और उनके द्वारा बंगला एरिया को नगर निगम में शामिल करने का प्रस्ताव दिया है. शासन स्तर पर मंथन चल रहा है. मध्य कमान लखनऊ एन सत्यनारायण निदेशक प्रथम ने ये भी बताया कि रेलवे की तरफ से बकायाके लिए कई बार पत्र लिखे गए हैं और रेलवे का बकाया 1982 से है. लंबे समय से उनका बकाया नहीं आया है.


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