यूपी- DP यादव को किससे जान का खतरा? दिल्ली क्राइम ब्रांच का मिला इनपुट; बाहुबली ने लगाई सुरक्षा की गुहार – INA

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबली नेता डीपी यादव को जान का खतरा है. उन्हें डर है कि कोई बड़ा गैंगस्टर उनकी हत्या की साजिश रच रहा है. उन्होंने दावा किया है कि यह जानकारी उन्हें दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में तैनात एक एसीपी ने दी है. कहा कि उस पुलिस अफसर ने उन्हें इस खतरे से आगाह करते हुए बताया है कि इस साजिश में शामिल तीन लोगों को नोएडा से अरेस्ट किया गया है. दिल्ली पुलिस की ओर से मिले इस इनपुट का हवाला देते हुए बाहुबली नेता डीपी यादव ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और उत्तर प्रदेश सरकार से सुरक्षा की गुहार की है. मूल रूप से नोएडा में सर्फाबाद गांव के रहने वाले डीपी यादव बुजुर्ग हो चुके हैं और इस समय गाजियाबाद के राजनगर में रहते हैं.

वह बचपन से ही पहलवानी करते थे. बाद में अपने पिता के साथ दिल्ली में दूध का कारोबार करने लगे. इन्हीं दिनों वह एक शराब माफिया के संपर्क में आए और फिर शराब के धंधे में उतरकर कुछ ही दिनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली के बड़े शराब माफिया बन गए थे. शराब के धंधे से ही उन्होंने राजनीति में अपनी पहचान बनाई और विधायक बनकर उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के ओहदे तक पहुंचे. 90 के दशक में जब पूर्वी उत्तर प्रदेश में श्रीप्रकाश शुक्ला, हरिशंकर तिवारी, वीरेंद्र शाही और उसके बाद अतीक अहमद, बृजेश सिंह आदि का जलजला था, इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में धर्मपाल उर्फ डीपी यादव की तूती बोलती थी.

90 के दशक में डीपी यादव की तूती बोलती थी

आलम यह था कि लोग अपने विरोधियों को धमकाने के लिए भी इनके नाम का इस्तेमाल करते थे और किसी भी मामले में इनका नाम सामने आने के बाद जवाब देने की हिम्मत किसी में नहीं होती थी. डीपी यादव वैसे तो अपराध और राजनीति दोनों ही छोड़ चुके हैं, लेकिन उनके खिलाफ पहले से दर्ज मामलों को देखते हुए उनका नाम गाजियाबाद के कविनगर थाने में बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर के रूप में दर्ज है. आईजी रेंज मेरठ द्वारा उनकी हिस्ट्रीशीट खुली हुई है. इस व्यवस्था के तहत वह अपने जीवन भर पुलिस की निगरानी में रहेंगे.

महेंद्र भाटी की हत्या में आया था नाम

डीपी यादव के राजनीतिक गुरु दादरी के महेंद्र भाटी थे. 13 नवंबर 1992 को दादरी में ही उनकी हत्या हो गई थी. इस वारदात का आरोप डीपी यादव पर था. पहली बार डीपी यादव इसी घटना से सुर्खियों में भी आए थे. इस मामले की जांच सीबीआई ने की और इसी मामले में उन्हें गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा भी सुनाई थी. हालांकि लोवर कोर्ट के फैसले के खिलाफ डीपी यादव हाईकोर्ट गए और वहां से उन्हें इस मामले में क्लीनचिट मिल गई. इसके बाद अजय कटारा मामले में भी डीपी यादव काफी चर्चा में रहे थे. हालांकि इस मामले में वह सबूतों के अभाव में बरी हो चुके हैं.

कौन हैं डीपी यादव?

शराब के कारोबार में कुख्याति हासिल करने के बाद 80 के दशक में डीपी यादव महेंद्र भाटी के संपर्क में आए और उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना. संयोग से 1992 में महेंद्र सिंह भाटी की हत्या का आरोप होने के बाद भी सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने उन्हें 1993 के चुनाव में बुलंदशहर से टिकट दिया. इसमें वह जीत कर विधायक तो बन गए, लेकिन सपा छोड़ कर बाद में वह मायावती की छत्र-छाया में बसपा में शामिल हो गए. उस समय मायावती ने उन्हें राज्यसभा भेजा. यहां भी वह टिक नहीं पाए और बसपा छोड़ कर अपनी पार्टी बना ली. हालांकि दो चुनावों में हार के बाद उन्होंने सन्यास ले लिया.


Source link

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News