यूपी- UP उपचुनाव: मीरापुर में खतौली जैसा प्रयोग, क्या नतीजें कर पाएंगे तब्दील? – INA

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सभी की निगाहें पश्चिम यूपी की मीरापुर सीट पर लगी हैं. सीट शेयरिंग में आरएलडी के खाते में आई मीरापुर सीट पर केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी ने खतौली उपचुनाव जैसा ही सियासी प्रयोग किया है. मुस्लिम-जाट-गुर्जर बहुल माने जाने वाली मीरापुर सीट पर जयंत ने मिथलेश पाल को प्रत्याशी बनाया है. इसी तरह खतौली में जाट-सैनी बहुल माने जाने वाली सीट गुर्जर समाज से आने वाले मदन भैया को उतारकर बीजेपी से सीट छीन ली और अब मीरापुर में पाल समाज पर दांव खेलकर क्या वैसे ही नतीजे दोहरा पाएंगे?

2022 में मीरापुर विधानसभा सीट आरएलडी सपा के समर्थन से जीतने में कामयाब रही थी. गुर्जर समाज से आने वाले चंदन चौहान आरएलडी से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2014 में बिजनौर से लोकसभा सांसद बन जाने के चलते यह सीट खाली हो गई है. आरएलडी अब बीजेपी के साथ है. चंदन चौहान और मलूक नागर जैसे गुर्जर नेता मीरापुर विधानसभा सीट से अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे थे, लेकिन जयंत चौधरी ने पाल (गड़रिया) समाज से आने वाली मिथलेश पाल को टिकट देकर एक नया सियासी प्रयोग किया है.

मीरापुर का समीकरण और जयंत का दांव

मीरापुर विधानसभा सीट पर करीब सवा तीन लाख मतदाता हैं, जिसमें सवा लाख के करीब मुस्लिम वोटर हैं. जातीय समीकरण के तौर पर इस सीट पर मुस्लिम के बाद दलित करीब 57 हजार वोटर हैं. इसके अलावा 28 हजार जाट, 22 हजार गुर्जर, 18 हजार प्रजापति, 15 हजार पाल, वोटर हैं. इसके अलावा सैनी सहित अन्य ओबीसी जातियां है. फीसदी के लिहाज से देखें तो 38 फीसदी ओबीसी, 37 फीसदी मुस्लिम, 20 फीसदी दलित और पांच फीसदी सवर्ण जातियों का वोट है.

RLD-मुस्लिम-जाट-गुर्जर समीकरण

2022 में सपा ने चुनाव नहीं लड़ा था और आरएलडी के लिए यह सीट छोड़ दी थी. आरएलडी मुस्लिम-जाट-गुर्जर समीकरण के सहारे जीत दर्ज करने में कामयाब रही, लेकिन जयंत चौधरी अब बीजेपी के साथ हैं. ऐसे में मुस्लिमों का वोट मिलना उन्हें मुश्किल ही दिख रहा है, जिसके चलते आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने पाल समाज से आने वाली मिथलेश पाल को प्रत्याशी बनाया है. इस तरह जयंत की रणनीति जाट-पाल और गुर्जर के साथ बहुसंख्यकों एकजुट कर जीतने की स्ट्रैटेजी छिपी
है.

जयंत का खतौली में प्रयोग हिट रहा

जयंत चौधरी ने खतौली सीट पर उपचुनाव में एक नया सियासी प्रयोग किया था. जयंत ने जाट-सैनी-मुस्लिम बहुल खतौली विधानसभा सीट पर गुर्जर प्रत्याशी पर दांव खेलकर बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया था. अब उसी विनिंग फॉर्मूले पर मीरापुर में सियासी बिसात बिछाई है और जाट बहुल सीट पर पाल समुदाय को प्रत्याशी बनाकर सियासी दांव चला है. जयंत चौधरी ने अपनी पूरी टीम को मीरापुर सीट पर लगा रखा है. उन्होंने खुद जाट बहुल गांव में दौरा करने की रूपरेखा बनाई है और गुर्जर वोटों को साधने का जिम्मा चंदन चौहान को दे रखा है.

जाटों की नारजगी महंगी न पड़े जाए

मीरापुर सीट जीतने की हरसंभव कोशिश में जुटी आरएलडी के लिए जाट समुदाय की नाराजगी टेंशन बढ़ा रही है. जाट समुदाय के लोगों ने दो दिन पहले मीरापुर में एक पंचायत की थी. जिसको सर्वेंद्र राठी के द्वारा बुलाया गया था. इस बैठक में जाट प्रत्याशी न बनाए जाने का मुद्दा उठा. सर्वेंद्र राठी ने कहा कि चौधरी चरण सिंह ने जाट, अहीर, गुर्जर और मुस्लिम समाज का समीकरण बनाया था. सपा पार्टी किसी सूरत में भी मुस्लिम खोना नहीं चाहती, जबकि जयंत जाट समाज की कुर्बानी देने से नहीं चूकते हैं. आरएलडी सिर्फ जाट समाज का इस्तेमाल कर रही है. आरएलजडी ने बीजेपी से गठबंधन कर अपने अधिकार खो दिए. जाट समाज की राजनीति खत्म की जा रही है, जिसका हिसाब मीरापुर करना होगा.

गुर्जर वोटों में भी बिखराव का खतरा

आरएलडी के द्वारा जाट समाज से प्रत्याशी न उतराने की नाराजगी है तो दूसरी तरफ गुर्जर वोटों में भी बिखराव का खतरा बन गया है. दलित और मुस्लिम पहले से ही उनसे दूरी बनाए हुए हैं. सपा से लेकर बसपा, आजाद समाज पार्टी और AIMIM तक ने मुस्लिम कैंडिडेट उतार रखे हैं. ऐसे में मुस्लिम वोटों के बिखराव पर जयंत चौधरी का प्रयोग सफल हो सकता है और अगर मुस्लिमों ने एकजुट कर किसी एक पार्टी के साथ चले गए तो फिर आरएलडी के लिए अपना सियासी दबदबा बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.


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