सेहत – छोटे बच्चे हो सकते हैं कुपोषण का शिकार, 6 महीने बाद शुरू करें ऐसी चीज, तेजी से होगी बच्चों की ग्रोथ

बच्चों में कुपोषण के कारण: बच्चे के जन्म के बाद वैश्वीकरण शुरू करना जरूरी होता है। ऐसा माना जाता है कि बच्चे को 6 महीने से पहले सिर्फ मां का दूध पिलाना चाहिए, जिससे बच्चे का विकास बेहतर तरीके से हो सके। बच्चे को माँ का दूध मिलना बेहद जरूरी होता है, लेकिन 6 महीने के बाद बच्चे को धीरे-धीरे दूध पिलाने की व्यवस्था मिलनी चाहिए, अन्यथा वह भूख का शिकार हो सकती है। इसके कारण बच्चे की सेहत रुक सकती है और भविष्य में उसे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में बच्चों की बातों का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। आज डॉक्टर से जानेंगे कि किन कारणों से बच्चों के शरीर में पोषक तत्व की कमी हो सकती है और इस परेशानी से किस तरह बचा जा सकता है।

लखनऊ के केजीएमयू के बाल रोग विभाग के फॉर्मर एचओडी और बोधिसत्व विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर डॉ. स्टाइल आर्किटेक्चर ने News18 को बताया 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कुपोषण का सबसे बड़ा खतरा होता है। जो बच्चे जन्म से अपरिभाषित होते हैं और जिनमें 6 महीने तक मां का दूध नहीं होता, वे बच्चे का शिकार हो जाते हैं। कई बार बच्चों को मां का दूध तो प्रोपर्टी होता है, लेकिन 6 महीने के बाद उन्हें ऊपर का खाना यानी कॉम्पिलेमेंट्री प्रोडक्शन नहीं दिया जाता है या गलत तरीके से खाना बना दिया जाता है। बच्चों के शरीर में विटामिन, विटामिन, प्रोटीन और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी हो जाती है। कई बार बच्चों का खाना बनाना शुरू कर दिया जाता है, जिससे बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।

डॉक्टर की राय तो 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के उत्तर प्रदेश में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण (ग्रोथ में कमी) और वेस्टिंग (वजन कम होना) और अंडरवेट का कारण बन रहा है। पिछले सर्वेक्षण यानी एनएफएचएस-4 के कॉलेज इन सवालों में कमी आई है। स्ट्रीमिंग 46% से वोटिंग 40%, अंडरवेट बच्चों की संख्या 40% से वोटिंग 32% हुई है, जबकि वेस्टिंग में कोई खास बदलाव नहीं आया है। उत्तर प्रदेश में 23% बच्चों का जन्म कम वजन के साथ होता है, जो मोटापे से ग्रस्त होता है। सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि ग्रामीण इलाकों में बच्चों और छात्रों की समस्या सबसे ज्यादा सामने आई है। कई अन्य राज्यों का हाल भी कुछ ऐसा ही है.

बच्चों में पोषण की पहचान कैसे करें?

डॉ. स्टाइलिस्टों ने बताया कि जब बच्चा लालच का शिकार हो जाता है, तब उसके गोल-गोल गाल पिचकने लगते हैं और उसका हाथ-पैर बहुत अच्छा होता है। बच्चा अपनी उम्र के बच्चों के प्रति सामान्य स्वभाव वाला दिखता है। बच्चे की हाइट कम रह जाती है या हाइट रुक जाती है। इसके अलावा बच्चे का पेट निकलना और आयरन की कमी भी बच्चे में हो सकता है। विटामिन ए की कमी से रात में बच्चे का काम शुरू हो जाता है। इसके अलावा अगर बच्चे के एक ही कपड़े कई महीने चल रहे हैं, तब भी यह बच्ची का संकेत हो सकता है। बच्चे की पत्नी से उसकी इमोशनलिटी ख़त्म हो जाती है और बच्चे पर बार-बार प्रभाव पड़ता है। अगर आपके बच्चे में ये लक्षण नजर आते हैं, तो डॉक्टर से मिलकर सलाह लें।

6 महीने के बाद क्या होना चाहिए?

6 महीने के बाद बच्चों के स्वास्थ्य के आधार पर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में तरल पदार्थ की मात्रा होनी चाहिए। हरी सब्जी की खुराक और दाल की खुराक लेनी चाहिए। ऐसे दिन में 6-7 बार ऐसा करना चाहिए और प्रोपर स्टॉकफीडिंग भी चुरा लेनी चाहिए। जब बच्चा एक साल से बड़ा हो जाए, तो उसे 4-5 बार पौष्टिक, फल और अन्य चीजें खिलाएं। धीरे-धीरे बड़े बच्चों को अवशेषों से सेमी ठोस और फिर ठोस पदार्थों पर लेप करना चाहिए। जब बच्चा 3-4 साल का हो जाए, तो पारिवारिक सामग्री पर लाना चाहिए और उसे ब्रेकफ़ास्ट, ज़ूम और डिनर देना चाहिए। अगर बच्चों को जरूरी पोषक तत्व न मिल पा रहे हों, तो डॉक्टर की सलाह लेकर आयरन, विटामिन और स्मारकों के बारे में जानकारी देनी चाहिए। सबसे जरूरी बात यह है कि बच्चों को फास्ट फूड और शुगरी ड्रिंक से बचना चाहिए। इनमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी होती है और शुगर व सोडियम की मात्रा बहुत अधिक होती है। ऐसे में बच्चों को बाजार के सामान से जरूर बचाएं।

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