सेहत – रोहतास के अस्पतालों में रात में नहीं हो रहे ऑपरेशन, पहली रेफरल यूनिट की सुविधा, स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे सवाल

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रोहतास. जिले में पाच फर्स्ट रेजिमेंटल यूनिट (एफआरयू) होने के बावजूद रात में सिजेरियन ऑपरेशन की स्थिति बनी हुई है। सासाराम के सदर अस्पताल में बाकी सभी यूनिटों का रात में ऑपरेशन ठीक है या तो बहुत कम है या बिल्कुल नहीं हो रहा है। पिछले छह माह के ग्राफ को देखा जाए तो जिले में कुल 362 साइज ऑपरेशन हुए, जिनमें से केवल 62 ही रात में हो पाया।

नौहटा और विक्रमगंज के प्रोजेक्ट में रात के ऑपरेशन का किरदार शून्य है, जबकि डेहरी और नासरीगंज की स्थिति भी बेहद खराब है। यह स्थिति ना केवल जिलों की स्वास्थ्य सेवाओं की है बल्कि मातृ-शिशु स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर चिंता का विषय है।

ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों को प्रेरित करेंगे

सिविल इंजीनियर डॉ. मणिराज रंजन ने बताया कि इस समस्या को लेकर वे पूरी तरह से परामर्श देते हैं। डेहरी अस्पताल में सिजेरियन ऑपरेशन कम होने का मुख्य कारण वहां के एनेस्थेटिस्ट हैं, जो इस काम में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने बताया कि हॉस्पिटल में आउटडोर महिला डॉक्टर की समस्या है, जिससे वे ज्यादातर समय बीमार रहती हैं। हालाँकि, जब वे स्वस्थ रहते हैं, तो ऑपरेशन करते हैं। इसके अतिरिक्त, एक अन्य महिला डॉक्टर जो छुट्टी पर थी, अब वापस लौट आई है। सिविल सर्जन ने दिया कि वे स्वयं अस्पताल के आकाओं को रात में ऑपरेशन के लिए प्रेरित करेंगे।

सिजेरियन में फंड की कमी नहीं हो रही थी

बिक्रमगंज त्रिशूल अस्पताल में रात के सिजेरियन ऑपरेशन नहीं होने के सवाल डॉ. रंजन ने बताया कि अब स्थिति में सुधार हो रहा है। पिछले महीने से ऑपरेशन ऑपरेशन शुरू हो गए हैं. हालांकि, बिक्रमगंज में सिर्फ एक महिला डॉक्टर हैं, जो सिजेरियन का ऑपरेशन करती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि पहले यहां एक एनजीओ की मदद से सिजेरियन ऑपरेशन हुआ था, लेकिन भुगतान की समस्या के कारण ऑपरेशन बंद हो गया। अब फंड की व्यवस्था की जा रही है और जल्द ही ऑपरेशन फिर से नियमित रूप से शुरू होगा।

प्रशासन के निर्देशों के बाद भी नहीं बदली स्थिति

जिला प्रशासन ने सभी एफआरयू में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने और रात के सिजेरियन ऑपरेशन की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए हैं। हालाँकि, स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। जिले में इस स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर स्थानीय प्रशासन को ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सके और लोगों का विश्वास बढ़ाया जा सके।


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