सेहत – व्याख्याकार: सामा के चावल या सामक चावल क्या हैं, व्रत में कौन से खाते हैं? ये किस जंगली उपाय से बनता है

इन दिनों नववर्ष चल रहा है। व्रत या उपवास रखने वाले लोग कुट्टू के आटे से लेकर साबूदाना और सांवा या सामक के चावल जैसी चीजें आहार में लेते हैं। सामक के चावल की खेड से लेकर उपमा, पोहा जैसी तरह-तरह की चीजें बनाई जाती हैं। सामक या सांवा का चावल छोटे-छोटे गोल मोती जैसा दिखता है और स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है। क्या आप जानते हैं कि सामक का चावल क्या है? आइए आपको नियुक्त करते हैं

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सामक का चावल क्या होता है?
सामक या सावा, बाजरा (बाजरा) यानी बाजरे की फसल की खेती है। अंग्रेजी में ‘बार्नयार्ड मिलेट’ (बार्नयार्ड मिलेट) कहते हैं। इसके वैज्ञानिक का नाम इचिनोक्लोआ कोलोनम (Echinochloa Colonum) है। इसे जंगली चावल भी कहते हैं. बॉटनिकल गार्डन के पूर्व निदेशक डॉ. शिव हिंदी.न्यूज18.कॉम से कुछ दशक पहले मिलेट बोमडी कुमार के शिष्य थे, जो आपके साथ उग आए थे। फिर लोग मित्र सुखकर तरह-तरह से खाने के काम में लेते थे। धीरे-धीरे इसकी खेती होने लगी। गेहूं-चावल जैसे अनाज के वोग से पहले लोग अनाज के अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, कोदो जैसी सब्जियां निकालते थे और इसी की खेती करते थे। तब सावा भी बहुत शानदार था.

कैसी होती है इसकी खेती
सामक या सांवा के चावल की खेती के रूप में उगाई जाती है। यह समुद्री तल से लेकर हिमालय की ढलानों पर 2000 मीटर की पाइपलाइन तक ले जाया जाता है। गर्म और मध्यम जलवायु वाले बार्नयार्ड बाजरे की फसल अच्छी होती है। यह कठोर मौसम भी सहन कर सकता है। सामक की फली जब तैयार हो जाती है तो उसमें निहित ड्राईथ के बाद मशीन के माध्यम से उसका छिलका निकाला जाता है और सफेद मोती जैसा दिखता है।

डॉ. कुमार कहते हैं कि रिफाइन करने के बाद ये सफेद रंग का दिखता है और चावल सेरिखा नजर आती है, सावित: इसीलिये इसके नाम के साथ ‘चावल’ जुड़ गया।

कहाँ से आया सामक का चावल
सामक के चावल की उत्पत्ति एशिया में हुई। निष्कर्ष से पता चलता है कि चीन में इसे पिछले 2000 से अधिक वर्षों तक बेचा जा रहा है। कुछ बेकार का फेला है कि बार्नयार्ड बाजारे की उत्पत्ति संभावना मध्य एशिया में हुई थी। फिर यह मध्य एशिया से यूरोप और अमेरिका तक पहुंचा। भारत के साहित्य में भी साँवा का ज़िक्र है।

सामा के चावल व्रत में बहुत कुछ मिलता है.

बिश्नोई में इसके भालू प्रसिद्ध हैं
भारत से लेकर नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका के देशों में सामक के चावल या सांवा की खेती होती है। भारत में यह ठीक-ठाक मात्रा में होता है। कई देशों में समक या साँवा के चावल के भालू भी बहुत लोकप्रिय हैं।

भारत के अलग-अलग नामों से जानते हैं अलग-अलग नाम। जैसे समक, समक, संवा, समो, भागर, वारि, कोदरी, कोदो और समवत्। गुजराती में इसे ‘मोरियो’ कहा जाता है तो दक्षिण के राज्यों में इसे ‘चामी’ या ‘सामै’ के नाम से जाना जाता है।

सामक के चावल को सुपर भोजन क्यों कहा जाता है?
सामक के चावल को सुपर फूड भी कहा जाता है. यह दस्तावेज़ में शर्ते होती है। सामक में मैग्नीशियम नहीं होता है. इसमें कैलोरी कम होती है और शुगर की मात्रा भी कम होती है। इसमें कैल्शियम, पोटैशियम, फास्फोरस, आयरन और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें चारे की मात्रा अधिक होती है। सामक चावल खाने से वजन गणना में मदद मिलती है। यह मेटाबॉलिक रेटिंग बढ़ाने में मदद करता है।

बार्नयार्ड बाजरा चावल: 1 किलो - जैविक और बिना पॉलिश किया हुआ - देशी स्वाद

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें मौजूद कब्ज, अपच, गैस और ब्लोटिंग जैसी समस्याएं शामिल हैं। सामक चावल में फाइटिक एसिड कम होता है। एक अध्ययन में पाया गया है कि बिना छिलके वाले बर्नयार्ड मिलेट टाइप II को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, साँवा का ग्लाइसेमिक रसायन कम होता है और इसमें मौजूद पॉलीफेनॉल्स शुगर को नहीं बढ़ता है। इसीलिये विपक्ष के लिए यह कमाल है.


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