यूपी- टेक्नोलॉजी से जुड़ेंगे अखाड़े, तैयार कर रहे हैं अपने-अपने डाटा बेस… रिकॉर्ड में क्या-क्या होगा? – INA

प्रयागराज महाकुंभ में जन-आस्था का सबसे बड़ा आकर्षण होता है यहां बसने वाले साधु संतों के 13 अखाड़े और उनकी परंपराएं, जिनमें अखाड़ों की पेशवाई और शाही स्नान भी शामिल है. अखाड़ों और परंपरा का अटूट नाता है.लेकिन परंपराओं को संरक्षित रखते हुए भी ये अखाड़े अब डिजिटलाइजेशन की ओर बढ़ रहे हैं. सनातन धर्म के ध्वज वाहक 13 अखाड़े अपनी-अपनी समृद्ध धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखते हुए समय के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहे हैं.

मौजूदा दौर में अखाड़े अपना-अपना डाटा बेस तैयार कर रहे हैं. श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी के सचिव महंत जमुना पुरी कहते हैं, “हमारे अखाड़े में कंप्यूटर और बही-खाता दोनों का इस्तेमाल हो रहा है. अखाड़े की ऑडिट में इससे बहुत मदद मिलती है. इनकम टैक्स दाखिले के लिए जो भी रिकॉर्ड रखना होता है, वह इसी डाटा बेस में रहता है.

श्री पंच अग्नि अखाड़े के महामंत्री सोमेश्वरानंद ब्रह्मचारी बताते हैं, “महाकुंभ में हमारे अखाड़ों के ऑडिट होते हैं. एक दौर था जब हम बही खाते से इसकी जानकारी ऑडिट के लिए देते थे, लेकिन अब हम सबके पास गैजेट हैं.”

डाटा बेस से समय बचा और पारदर्शिता आई

आवाहन अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरी जी का कहना है, “धर्म के साथ मानवता बचाने के लिए भी संत कार्य कर रहे हैं. इसी के अंतर्गत वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए वह वृक्षों को रोपित करने का अभियान चला रहे हैं, जिसका डाटा बेस भी वह बनवा रहे हैं. इससे उनका समय बचता है, पारदर्शिता स्थापित होती है.”

सनातन की जड़े मजबूत करने में उपयोगी

श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी के महा मंडलेश्वर स्वामी प्रणवानंद सरस्वती जी कहते हैं, ”आदिवासी और वंचित समाज को जागृत कर उन्हें सनातन धर्म की परंपरा से जोड़ने की उनकी आदिवासी विकास यात्राओं का उनका अनुभव भी यही है कि उनकी जानकारी एकत्र कर उसका डाटा बेस तैयार करना एक आवश्यकता है.”

वैष्णव अखाड़े भी बनायेंगे अपना डाटा बेस

वैष्णव अखाड़ों में भी डाटा बेस बनाने पर सहमति है, लेकिन कुछ तकनीकी समस्याएं होने की वजह से इसे आने वाले समय में अमल में लाने की बात कह रहे हैं. अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अणि अखाड़े के श्री महंत राम जी दास का कहना है, “संन्यासी सम्प्रदाय के अखाड़ों की तरह वैष्णव अखाड़ों के पास अपने ट्रस्ट नहीं हैं. इसलिए ऑडिट की आवश्यकता उन्हें नहीं पड़ती.”

यह डिजिटल कदम अखाड़ों के कार्यों में पारदर्शिता, समय की बचत और बेहतर प्रबंधन में मददगार साबित हो रहे हैं.


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