बसंतोत्सव यानी मनुष्य को मनुष्य बनाने का सांस्कृतिक पर्व
बीजिंग, 6 फरवरी (.)। दो फरवरी के दिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी की तिथि यानी पांचवें दिन ज्ञान और विद्या की देवी सरस्वती की पूजा हुई। उत्तर भारत में उसी दिन बसंतोत्सव के रूप में विख्यात होली के एक दिन पहले जलाई जाने वाली होलिका के लिए पहली लकड़ी आदि रखी जाती है। कुछ इसी बासंती मौसम में ही चीन का बसंत उत्सव होता है।
चीन के चंद्र कैलेंडर के पहले महीने में होने वाले इस त्योहार में चीन डूबा हुआ रहा। आर्थिक मोर्चे पर अपने तकनीकी कौशल और मानव श्रम के दम पर दुनिया में दूसरे नंबर पर आर्थिक महाशक्ति बन चुके चीन में छुट्टियों जैसा माहौल होना उस दुनिया के लिए प्रेरक हो सकता है, जो काम और काम को ही अपना सबकुछ मान रही है।
बसंत ऋतु में भारत में खेतों में हरे-पीले फूलों की जैसी कालीन बिछ जाती है। चीन में भी कुछ ऐसा ही माहौल है। इसी माहौल के बीच चीन के लोग खुशियां मना रहे हैं, अपने परिवारों के साथ विशेष भोजन का आनंद उठा रहे हैं। शायद बसंत का ही असर है कि भारत में बसंत पंचमी के दिन सब कुछ पीला करने की परंपरा है। भारत में बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा के लिए पीले वस्त्र पहनने, पीले रंग का भोजन करने, पीले रंगों के फूलों से घरों और मंदिरों को सजाने का रिवाज है। चीन में भी कुछ ऐसा ही माहौल होता है।
यूनेस्को के अनुसार, चीन में, वसंत उत्सव नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह चीनी कैलेंडर के पहले महीने के पहले दिन पड़ता है और इसमें नए साल की शुरुआत करने, अच्छे भाग्य के लिए प्रार्थना करने, पारिवारिक पुनर्मिलन का जश्न मनाने और सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की सामाजिक प्रथाएं शामिल होती हैं। भारत में भी विद्या की देवी यानी सरस्वती से बसंत पंचमी के दिन पूजा करके कुछ ऐसी ही आशाएं की जाती हैं, कुछ ऐसे ही आशीर्वाद मांगे जाते हैं। भारत में भी लोग देवी सरस्वती से विद्या, ज्ञान के साथ ही सुख-संपत्ति और खुशहाली का आशीर्वाद मांगते हैं।
भारतीय शास्त्रों में बसंत पंचमी और सरस्वती पूजा के संबंध में एक कथा कही जाती है। इसके अनुसार, भारतीय संस्कृति के आदि स्रष्टा ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की और उसके बाद दुनिया की ओर नजर उठाकर देखा तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जन ही दिखाई दिया, तब सारा माहौल जैसे उदासी से भरा था। कहीं से कोई बेहतर आवाज और धुन नहीं आ रही थी। इसे देखकर ब्रह्मा ने अपने कमंडल में से पृथ्वी पर जल छिड़का। उन जल कणों के जमीन पर गिरते ही पेड़ों से एक शक्ति उत्पन्न हुई, जो दोनों हाथों में वीणा लिए हुए बजा रही थी। उस देवी को सरस्वती कहा गया, इसलिए बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
भारत और चीन आदिकाल से एक-दूसरे के पड़ोसी हैं। शायद यही वजह है कि दोनों देशों की कुछ सांस्कृतिक परंपराएं एक हैं। भारतीय बसंतोत्सव के ही अंदाज में कह सकते हैं कि चीन में भी बसंत का त्योहार यहां के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। सैकड़ों वर्ष पूर्व चीन में बसंत को नियन कहा जाता था। उस समय नियन का अर्थ भरपूर फसल वाला साल था। जिस तरह भारतीय त्योहार भी बुनियादी रूप से कृषि पर्व हैं, चीन के भी त्योहार मूल रूप से कुछ ऐसे ही हैं। नियन भी एक तरह से कृषि पर्व भी है।
चीन में बसंतोत्सव की शुरूआत 29 जनवरी से हुई है। पूरे चीन में बसंतोत्सव के दौरान 28 जनवरी से 4 फरवरी तक सारे दफ्तर बंद रहे, सिवा आपातकालीन सेवाओं के। इस दौरान चीन में उत्सव हुए, लोग मस्ती में दिखे, अपने परिजनों से मिले, खरीददारी में जुटे रहे, जीवन का आनंद उठाया और इस तरह सांस्कृतिक रसगंध को खुद में समाहित किया। चीन की सरकार ने आठ दिनों के लिए दफ्तरों को बंद करके और अपने नागरिकों को आनंदोत्सव मनाने के लिए प्रेरित करके दुनिया को एक संदेश दिया है कि जिंदगी में काम जरूरी है। लेकिन, आनंद और सांस्कृतिक जुड़ाव भी उतना ही जरूरी है। चीन की यह पहल एक तरह से मनुष्य को मनुष्य समझने और बनाने की भी पहल कही जा सकती है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
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एबीएम/
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