बेतिया राज की स्थापना मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में हुई थी

संवाददाता-राजेन्द्र कुमार

बेतिया राज (बिहार) के महाराजा राजेंद्र किशोर सिंह 1855 से 1883 तक बेतिया के शासक रहे इनके बारे में बहादुर शाह ज़फ़र के सबसे बड़े बेटे मिर्ज़ा मोहम्मद दारा बख़्त के बेटे मिर्ज़ा मुहम्मद रईस बख़्त ज़ुबैरूद्दीन ‘गोरगान’ ने अपने ऑटोबायोग्राफ़ी ‘मौज-ए-सुल्तानी’ जो लखनऊ के मुंशी नवल किशोर प्रेस से 1884 में शाय हुई थी।

उसमें शहज़ादा गोरगान लिखते हैं कि 1881 में जब वो सेंट्रल इंडिया होते हुए पटना के रास्ते मुज़फ़्फ़रपुर के बाद बेतिया पहुँचे तो वहाँ के महाराज राजेंद्र किशोर सिंह ने उनके लिए एक बड़ा मकान रहने के लिए सही करवाया। और अगले दिन रात में पालकी, अरदली और मशाल भेजकर अपने महल में आने का न्योता दिया।

और जब शहज़ादा गोरगान महल पहुंचे, तब महाराज राजेंद्र किशोर सिंह उनका स्वागत करने ख़ुद बरामदे तक आए। और अपने शीशमहल में ले जाकर उन्हें बैठने के लिए प्रतिष्ठित जगह दिया और ख़ुद हाथ बांधे खड़े हो गए।

शहज़ादा गोरगान के लाख बोलने पर भी वो नहीं बैठे। क्योंकि उनकी नज़र में वो एक मुग़ल शहज़ादे थे। और पुरानी वफ़ादारी का परिचय देते हुए उन्होंने ऐसा किया। क्योंकि बेतिया राज की स्थापना मुग़ल बादशाह शाहजहां के दौर में हुई थी और शाहजहां ने ही वहाँ के शासक अग्रसेन सिंह को राजा के लक़ब से नवाज़ा था और इनकी सियासी हैसियत बढ़ाई थी।

जब शहज़ादा गोरगान बेतिया महल से जाने लगे तब महाराज ने उन्हें इतर, फूल और पान सहित ग्यारह थाल उपहार के साथ रुख़्सत किया। सुनने में ये बात एक गप लगेगा, लेकिन जो ख़ानदानी रईस हैं, वो अपना मिज़ाज नरम रखते हैं।

– शहज़ादा गोरगान पर एक लेख सीटू तिवारी ने लिख रखा है। पूरी किताब उर्दू और हिन्दी दोनों ज़ुबान में मौजूद है।

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