बेतिया राज जिसकी बिहार-यूपी में फैली अरबों की रियासत, जाने इतिहास:  आखिर कैसे IAS केके पाठक की एंट्री हुई?

संवाददाता-राजेन्द्र कुमार

बेतिया: मुगल शासक अकबर के समय से एक महत्वपूर्ण रियासत बेतिया राज का इतिहास उतार-चढ़ाव और दिलचस्प घटनाओं से भरा है। मौजूदा समय में यूपी के आठ और बिहार के पांच जिलों में बेतिया राज की रियासत फैली है। मगर, इस राज परिवार का वारिस कोई नहीं है। हजारों एक जमीन और अरबों की संपत्ति ने लूट-खसोट और साजिश को जन्म दे गई। अब IAS अधिकारी केके पाठक की वजह से चर्चा में है।

अकबर ने शुरू किया बिहार में ‘बेतिया राज’
मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में बिहार को प्रशासनिक सुविधा के लिए छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित किया गया था, जिन्हें ‘सरकार’ कहा जाता था। चंपारण इनमें से एक था। 1579 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा में विद्रोह की आग भड़क उठी। सम्राट अकबर की कमजोरी का फायदा उठाकर अफगान पठानों और बंजारों ने भी विद्रोह कर दिया। बंजारों के उत्पात से पूरा इलाका अशांत हो गया।

सम्राट ने अपने एक योग्य सेनापति उदय करण सिंह को इस विद्रोह को कुचलने का महत्वपूर्ण कार्य सौंपा। उदय करण सिंह ने अपनी वीरता और रणनीति से विद्रोहियों को परास्त कर शांति स्थापित की। इस जीत से प्रसन्न होकर सम्राट अकबर ने उदय करण सिंह को चंपारण सरकार का शासक नियुक्त किया।

ध्रुव सिंह बेतिया राज के सबसे लोकप्रिय राजा
उदय करण सिंह और उनके पुत्र जदु सिंह ने अपने शासनकाल में चंपारण की समृद्धि और खुशहाली के लिए अथक प्रयास किए। जदु सिंह के पुत्र उग्रसेन सिंह को मुगल बादशाह शाहजहां ने 1629 ईस्वी में ‘राजा’ की उपाधि से सम्मानित किया। इस तरह उग्रसेन सिंह बेतिया राज के पहले राजा बने।

उग्रसेन सिंह के बाद उनके पुत्र गज सिंह और फिर दिलीप सिंह बेतिया की गद्दी पर बैठे। 1715 ईस्वी में दिलीप सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र ध्रुव सिंह राजा बने। ध्रुव सिंह को बेतिया राज के सबसे सफल और लोकप्रिय शासकों में गिना जाता है। उन्होंने अपनी राजधानी सुगांव से बेतिया स्थानांतरित की, जिससे बेतिया शहर का महत्व और भी बढ़ गया।

बेतिया राज में शुरू हुआ साजिशों का दौर
ध्रुव सिंह के कोई बेटा नहीं था, केवल दो बोटियां थीं। उन्हें डर था कि उनके बाद उनका राज्य उनके भाइयों के हाथों में चला जाएगा। इसलिए उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले ही अपनी बेटी के बेटे युगलकिशोर सिंह को राजा घोषित कर दिया। हालांकि, इससे रियासत तो सुरक्षित रही, लेकिन पारिवारिक कलह का बीज भी बोया गया।

1762 ईस्वी में ध्रुव सिंह की मृत्यु के बाद युगलकिशोर सिंह को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। एक ओर उनके नाना के भाई राजगद्दी हथियाने की फिराक में थे, तो दूसरी ओर ईस्ट इंडिया कंपनी का बढ़ता प्रभाव एक बड़ा खतरा बनता जा रहा था। हालात से घिरे युगलकिशोर सिंह ने 1766 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

ध्रुपद गायन को मिला विशेष प्रोत्साहन
ईस्ट इंडिया कंपनी ने कर्नल बार्कर के नेतृत्व में एक विशाल सेना भेजी जिसने बेतिया पर कब्जा कर लिया। युगलकिशोर सिंह को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा और चंपारण पर कंपनी का अधिकार हो गया। बाद में 25 मई 1771 को युगलकिशोर सिंह ने पटना राजस्व परिषद के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद अगस्त 1771 में परगना मझौआ और सिमरौन के लिए एक समझौता हुआ।

युगलकिशोर सिंह की मृत्यु 1784 ईस्वी में हो गई। उनके बाद उनके पुत्र बृजकिशोर सिंह को बेतिया की जागीर मिली। 1816 ईस्वी में बृजकिशोर सिंह की मृत्यु के बाद उनके बेटे आनंद किशोर सिंह ने सारण के कलेक्टर के सामने औपचारिक रूप से बेतिया का शासक बनने की घोषणा की। उन्हें ‘महाराजा’ की उपाधि दी गई। आनंद किशोर सिंह कला और संस्कृति के प्रेमी थे। उनके शासनकाल में बेतिया में ध्रुपद गायन को विशेष प्रोत्साहन मिला।

बेतिया राज के अंतिम राजा राजेंद्र किशोर सिंह नि:संतान
महाराजा आनंद किशोर सिंह का निधन 29 जनवरी 1838 ईस्वी को हो गया। उनकी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उनके भाई नवल किशोर सिंह राजा बने। नवल किशोर सिंह ने बेतिया राज्य का विस्तार किया और कई विकास कार्य किए। 25 सितंबर 1855 ईस्वी को नवल किशोर सिंह का निधन हो गया। उनके बाद उनके पुत्र राजेंद्र किशोर सिंह गद्दी पर बैठे। उनके शासनकाल में बेतिया में रेलवे लाइन बिछाई गई और पहली ट्रेन चली। उन्होंने बेतिया में एक तारघर भी बनवाया।

राजेंद्र किशोर सिंह का निधन 28 दिसंबर 1883 ईस्वी को हुआ। उनके बाद महाराजा हरेंद्र किशोर सिंह बेतिया के शासक बने। वे बेतिया राज के अंतिम महाराजा थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। 24 मार्च 1893 ईस्वी को उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद ब्रिटिश सरकार ने बेतिया राज की संपत्ति की बिक्री पर रोक लगा दी। उनकी दूसरी पत्नी 27 नवंबर 1954 तक बेतिया राजघराने में रहीं। उसके बाद से बेतिया राज का अस्तित्व समाप्त हो गया

फिर हुई IAS अधिकारी केके पाठक की एंट्री
उतार-चढ़ावके बीच मुगल काल से लेकर ब्रिटिश राज तक बेतिया राज बना रहा। इस दौरान इस रियासत ने कई उतार-चढ़ाव देखे। मगर, महारानी जानकी कुंवर की 1954 में मृत्यु के बाद बेतिया राज की बिहार-यूपी में फैली हजारों एक जमीन और सैकड़ों एकड़ में फैले महल आधिकारिक तौर पर सरकार के अधीन आ गए। इन जमीन पर सालों से अवैध कब्जा है। बेतिया राज के महलों में सरकारी दफ्तरें हैं। मगर, बिहार भूमि सर्वे ने एक बार फिर पिंडौरा बक्स को खोल दिया है।

फिलहाल, बेतिया राज की सभी तरह की संपत्ति बिहार सरकार के अधीन हैं। मगर, अधिकतर पर अतिक्रमण है। बिहार राजस्व पर्षद इन जमीनों को अतिक्रमण मुक्त कराने में जुटी है और राजस्व पर्षद के अध्यक्ष IAS केके पाठक हैं। जो अपने कड़क मिजाज और कायदे-कानून के लिए जाने जाते हैं। बेतिया राज की हजारों एकड़ जमीन पर से अवैध कब्जे हटाने के लिए केके पाठक ने पांच अधिकारियों की नियुक्ति की है। इसी के बाद से बेतिया राज फिर से चर्चा में है। किसी दिन बिहार सरकार के अफसर बुलडोजर लेकर बेतिया में उतर जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

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