Entertainment: ‘बाबू राव’ जैसे टाइप्ड रोल तो बॉलीवुड का ट्रेड मार्क है… परेश रावल की असली परेशानी क्या है? – #iNA

दिग्गज फिल्म कलाकार परेश रावल ने हेरा फेरी के बाबू राव किरदार को गले का फांस कहकर नई बहस शुरू कर दी है. यह बहस फिल्म इंडस्ट्री में कलाकारों और निर्देशकों सभी से जुड़ी है. उनका सीधा निशाना टाइप्ड कैरेक्टर को लेकर था. हालांकि टाइप्ड किरदार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक ट्रेड मार्क की तरह हैं फिर भी उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि वो बाबू राव का किरदार नहीं निभाना चाहते. बाबू राव के किरदार ने उन्हें बड़ी पहचान जरूर दी है लेकिन अब उन्हें इससे बोरियत होती है. इस पहचान में उनका दम घुटता है. अब वो इस कैरेक्टर की लिबास और गेटअप से बाहर निकलना चाहते हैं. हेरा फेरी 3 छोड़ने के पीछे उन्होंने सबसे बड़ा कारण यही बताया है.
परेश रावल के इस बयान के दो अहम मायने निकलते हैं. एक तो इससे यह साफ होता है कि बाबूराव किरदार वाकई उनके सभी किरदारों पर सबसे ज्यादा हावी है. जबकि उनके अन्य किरदार भी उतने ही दमदार हैं. दूसरी बात ये कि परेश रावल ने अपने अनेक इंटरव्यूज़ में क्रिएटिविटी की बात कह कर नई पीढ़ी के फिल्मकारों को खास संदेश देने की कोशिश की है. उन्होंने टाइप्ड रोल या एक प्रचलित ढांचे की स्टोरी के इतर भी सोचने की सलाह दी है.
क्रिएटिविटी की तरफ हम नहीं सोचते
परेश रावल ने इस बात पर दुख जताया कि हमारी इंडस्ट्री में किसी भी फिल्म के क्रिएटिव साइड पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. रिपीटिशन या जो हालिया सबसे अधिक पॉपुलर है, उसे ही अधिक से अधिक फॉलो किया जाता है. उस खांचे से लोग बाहर नहीं निकलना चाहते हैं. यह एक प्रकार का शॉर्टकट है, जो सबसे अधिक बिक रहा है, उसे ही बेचो. लेकिन वे साहसी होते हैं जो इस फंदे से निकलते हैं और कई बार जंग जीत भी जाते हैं.
परेश रावल बताते हैं कि हेरा फेरी के डायरेक्टर प्रियदर्शन, एक्टर क्षय कुमार और सुनील शेट्टी सभी प्रतिभाशाली हैं और उनके अच्छे मित्र भी हैं. लेकिन प्रियदर्शन से बाबू राव किरदार को लेकर थोड़ी अलग अपेक्षा भी थी. उनका कहना था कि वो इसे रिपीट कास्ट जैसा ना करें बल्कि इसमें नया प्रयोग होना चाहिए. प्रयोग ऐसा जो दर्शकों को नवीनता का अहसास कराये. इसी दौरान उन्होंने सीक्वल को लेकर भी सवाल उठाए. मुन्ना भाई एमबीबीएस और लगे रहो मुन्ना की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि बहुत से सीक्वल की कहानी में भी अब अंतर नहीं दिखता. ऐसे किरदार गले की फांस हो जाते हैं.
अभिनय की विविधता का मुद्दा उठाया
देखा जाए तो परेश रावल की चिंता गैर-वाजिब नहीं. उन्होंने कला की विविधता की बात उठाई है. एकरसता किसी भी कला और प्रस्तुति के लिए घातक है. न्यायोचित विविधता जितनी अधिक होगी, कला उतनी प्रभावी होगी. अगर हेरा फेरी 3 छोड़ने के पीछे कोई और वजह नहीं है कि एक वरिष्ठ और ईमानदार कलाकार होने के नाते इसकी तरफ इशारा किया है. और यह विचारणीय भी है. संभव है परेश रावल इस बात की तरफ भी इशारा करना चाहते हों कि यह बाबू राव ऐसा किरदार है जो उनके बाकी फिल्मों के किरदारों को ओझल कर दे रहा है.
लेकिन इस बहस का दूसरा पहलू भी है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऑइकॉनिक स्टारडम की अपनी-सी पहचान रही है. हर हीरो या हीरोइन अपने मोस्ट पॉपुलर कैरेक्टर से पहचाने गए और उस कैरेक्टर का नाम उनके असली नाम के साथ चस्पां हो गया. अमजद खान ने अपने जीवन में कई बेहतरीन रोल निभाए लेकिन शोले के गब्बर सिंह का किरदार उनकी पर्सनाल्टी के साथ चस्पां हो गया. मुझे पूरा यकीन है कि उनके जीवन काल में अगर शोले का दूसरा भाग बनता और उन्हें फिर से गब्बर सिंह बनने को कहा जाता तो वो मना नहीं करते.
इस तरह के अनेक कैरेक्टर्स हैं. महबूब खान की मदर इंडिया के मुंशी लाला यानी कन्हैयालाल एक बेहतरीन अभिनेता रहे हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवन में जितनी भी फिल्में की, उनमें अधिकतम बार मुंशी लाला के किरदार के मिजाज से अलग नहीं. इफ्तेखार तो फिल्मी पर्दे के असली पुलिस इंस्पेक्टर ही बन गए लेकिन कभी बोर नहीं हुए. मुख्य अभिनेताओं की बात करें तो शम्मी कपूर अपनी एक ही डांसिंग स्टाइल को बार-बार दिखाते रहे, यही उनकी पहचान बनी, राजेश खन्ना के रोमांटिक रोल तकरीबन एक ही जैसे रहे, और तो और अमिताभ बच्चन अस्सी के दौर में बार-बार एंग्री मैन का रोल करके भी न थके, न रुके.
असली परेशानी क्या है?
फिल्म इंडस्ट्री में ऐसे अनेक उदाहरण होते हुए भी परेश रावल कह रहे हैं कि बाबू राव का किरदार उनके गले का फंदा बन गया है, वो इससे छुटकारा चाहते हैं. तो क्या वाकई बात इतनी सी है जो उन्होंने हेरा फेरी 3 छोड़ी है. किसी स्टार का फिल्में छोड़ना या फिल्मों से निकाला जाना बड़ी घटना नहीं है. लेकिन परेश रावल और अक्षय कुमार का मामला इसलिए तूल पकड़ने लगा क्योंकि एक तो उन्होंने क्रिएटिविटी की बात उठाई और दूसरे अक्षय कुमार की प्रोडक्शन कंपनी केप ऑफ गुड फिल्म्स की तरफ से 25 करोड़ का हर्जाना मांगा गया.
पूरे मामले में एक कलाकार के पेशेवर और गैर-पेशेवर व्यवहार भी बहस के केंद्र में है. इसी बीच सूत्रों के हवाले से न्यूज एजेंसी . की तरफ से यह भी बताया गया है कि परेश रावल ने अक्षय कुमार और प्रियदर्शन के इस प्रोजेक्ट से खुद को इसलिए अलग कर लिया क्योंकि उन्होंने अतिरिक्त भुगतान की मांग की थी. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं की जा सकी है. परेश रावल ने इस बात से भी इनकार किया है कि उन्होंने कोई तीन मिनट का प्रमोशनल वीडियो शूट किया था.
परेश रावल के विविध किरदार
गौरतलब है कि परेश रावल ने वेलकम में डॉ. घुंघरू सेठ, ओह माय गॉड में कांजी लालजी मेहता, हंगामा में बिजनेसमैन राधेश्याम तिवारी, मालामाल वीकली में लीलाराम, अतिथि तुम कब जाओगे में गांव के चाचा जी जैसे अनेक ऐसे कैरेक्टर निभाए हैं जो एक-दूसरे से बढ़कर हैं. हर किरदार यादगार हैं, जिसके अपने रंग और मिजाज हैं. हर रोल के फैन्स की कोई कमी नहीं. हर अदायगी उम्दा. परेश रावल ने हास्य प्रधान किरदारों से लेकर खलनायक तक के सभी तरह रोल निभाए हैं.
पूरे ह्यूमर और इमोशन के साथ वो किसी भी किरदार में किस भांति प्रवेश कर जाते हैं- उनकी हर फिल्म इसका उत्तम नजीर है. लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि हेरा फेरी और हेरा फेरी 2 के बाबू राव गणपत राव आप्टे लोकप्रिता के मामले में सबसे शिखर पर है. परेश रावल अगल तीसरा पार्ट नहीं भी करते हैं तो क्या बाबू राव की छवि से मुक्त हो जाएंगे?
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‘बाबू राव’ जैसे टाइप्ड रोल तो बॉलीवुड का ट्रेड मार्क है… परेश रावल की असली परेशानी क्या है?
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