Political – दिल्ली की कास्ट पॉलिटिक्स, पूर्वांचली-पंजाबी-जाट और वैश्य के हाथ होगी सत्ता की चाबी- #INA

अरविंद केजरीवाल, देवेंद्र यादव, वीरेंद्र सचदेवा

दिल्ली विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा शुरू कर दी है तो बीजेपी और कांग्रेस सत्ता में वापसी का तानाबाना बुन रही है. सियासी पार्टियां भले ही कहें कि वे जातिगत आधार पर चुनाव ना लड़ रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि टिकटों के बंटवारे से लेकर वोट मांगने तक में जातियों के समीकरण बेहद मजबूत माने जाते हैं. ऐसे में दिल्ली के कास्ट पॉलिटिक्स से ही सत्ता की दशा और दिशा तय होती है. जिसके लिए बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने-अपने सियासी समीकरण सेट करने में जुटी है.

दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों का सियासी मिजाज एक तरह से नहीं है बल्कि हर सीट का अपना सियासी समीकरण है. सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने के लिए पार्टियां अपनी रणनीति तैयार कर चुकी है. इसी तैयारी का अहम हिस्सा है मतदाताओं का जातीय समीकरण. पिछले तीन विधानसभा चुनावों के परिणामों पर गौर करें तो पता चलता है कि पूर्वांचली, पंजाबी, वैश्य और जाट मतदाताओं के हाथ सत्ता की चाबी है तो उत्तराखंडी, ब्राह्मण और दलित वोटर भी अहम भूमिका में है.

दिल्ली की धार्मिक-कास्ट पॉलिटिक्स

दिल्ली के जातीय समीकरण और धार्मिक समीकरण की अपनी सियासी अहमियत है. धार्मिक आधार पर देखें तो कुल 81 फीसदी हिंदू समुदाय के वोटर हैं. इसके अलावा 12 फीसदी मुस्लिम, 5 फीसदी सिख और करीबन एक-एक फीसदी ईसाई व जैन समुदाय के मतदाता हैं. वहीं, जातीय और क्षेत्रीय आधार पर देखें तो दिल्ली में 25 फीसदी वोटर पूर्वांचली हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के लोग दिल्ली में रहते हैं तो 22 फीसदी के करीब पंजाबी वोटर हैं, जिसमें 10 फीसदी पंजाबी खत्री वोटर भी शामिल हैं. जाट और वैश्य 8-8 फीसदी हैं तो ब्राह्मण 10 फीसदी और दलित वोटर 17 फीसदी के करीब है. इसके अलावा गुर्जर 3 फीसदी, यादव 2 फीसदी और राजपूत एक फीसदी. उत्तराखंडी वोटर करीब 6 फीसदी हैं.

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दिल्ली में पूर्वांचली वोटर कितने अहम

दिल्ली की सत्ता की दशा और दिशा अब पूर्वांचली वोटर तय करते हैं, जिनकी आबादी करीब 25 फीसदी है. पूर्वांचली वोटों में सभी जातियां और धर्म के लोग शामिल हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से आए प्रवासी लोगों को यह नाम दिया गया है. दिल्ली में करीब 17 से 18 सीटों पर पूर्वांचली मतदाता अहम रोल में है. किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार, बादली, गोकलपुर, जनकपुरी, मटियाला, द्वारका, नांगलोई, करावल नगर, विकासपुरी, सीमापुरी जैसी विधानसभा सीटों पर पूर्वांचली मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं.

किराड़ी, बुराड़ी, उत्तम नगर, संगम विहार और बादली सीट पर 40 फीसदी से ज्यादा पूर्वांचली हैं. गोकुलपुरी, मटियाला, द्वारका और नांगलोई सीट पर 30 से 40 फीसदी के बीच पूर्वांचली वोटर हैं. इनके अलावा करावल नगर, विकासपुरी, सीमापुरी जैसे सीट पर पूर्वांचली वोटर 25 फीसदी के करीब हैं.

मौजूदा दौर में पूर्वांचली वोटर बड़ी संख्या में आम आदमी पार्टी के साथ जुड़ा है तो कुछ हिस्सा बीजेपी के साथ भी है. इस बार दोनों ही दलों की नजर पूर्वांचली वोटों पर टिका हुआ है.

पंजाबी वोट दिल्ली की किंगमेकर

दिल्ली की सत्ता की असल चाबी पंजाबी समुदाय के हाथों में है. राजधानी में 30 फीसदी आबादी पंजाबी समुदाय की है. जिसमें 10 फीसदी पंजाबी खत्री की है और पांच फीसदी सिख वोटर हैं. दिल्ली की विकासपुरी, राजौरी गार्डन, हरी नगर, तिलक नगर, जनकपुरी, मोती नगर, राजेंद्र नगर, ग्रेटर कैलाश, जंगपुरा, कालका जी, गांधी नगर, मॉडल टाऊन और रोहिणी विधानसभा सीट पर पंजाबी समुदाय जीत हार तय करते हैं. कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी पंजाबी वोटों के लुभाने में जुटी है.

हालांकि, एक दौर में पंजाबी वोटर बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक माने जाते थे. मदनलाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा और केदारनाथ साहनी की तिकड़ी को बीजेपी का पंजाबी चेहरा माना जाता था. पंजाबी वोटरों के सहारे ही बीजेपी 1993 में सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होने में कामयाब भी रही थी.

बीजेपी इस बार पंजाबी वोटों के सहारे ही सत्ता में वापसी करना चाहती है, जिसके लिए पंजाबी समाज से आने वाले वीरेंद्र सचदेवा को बीजेपी ने पार्टी की कमान सौंप रखी है तो आप ने पंजाबी समुदाय से आने वाली अतिशी को सत्ता की बागडोर सौंप रखी हैं.

बाहरी दिल्ली में जाट समाज निर्णायक

दिल्ली के 364 में से 225 गांव जाट बहुल हैं और विधानसभा चुनावों में करीब 20 फीसदी हिस्सेदारी जाट मतदाताओं की रहती है. राज्य में करीब आठ फीसदी जाट समुदाय के वोट हैं. बाहरी दिल्ली के तहत आने वाली विधानसभा सीट पर जीत हार का फैसला जाट समुदाय के मतदाता करते हैं. दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री स्व.साहेब सिंह वर्मा एक दौर में बीजेपी का जाट चेहरा हुआ करते थे. मौजूदा समय में साहेब सिंह वर्मा के बेटे और प्रवेश सिंह वर्मा दिल्ली से सांसद हैं और पार्टी के जाट चेहरा माने जाते हैं.

दलित वोटर तय करेंगे सत्ता का भविष्य

दिल्ली में सबसे ज्यादा अहम वोटर दलित समुदाय का है. दलित में जाटव, बाल्मीकि, रैगर सहित कई और अन्य जातियां शामिल हैं, जिन्हें एससी का दर्जा प्राप्त है. दिल्ली में दलित आबादी 17 फीसदी हैं, जिनमें के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं. करोल बाग में 38 फीसदी, पटेल नगर में 23 फीसदी, मोती नगर में 11 फीसदी, दिल्ली कैंट में 16 फीसदी, राजेंद्र नगर में 22 फीसदी, कस्तूरबा नगर में 11 फीसदी, मालवीय नगर में 10 फीसदी,आरके पुरम में 15 और ग्रेटर कैलाश में 10 फीसदी आबादी दलित समुदाय की है. उत्तर पश्चिमी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र के सातों विधानसभा सीट पर दलित मतदाता बड़ी संख्या में हैं.

वैश्य-ब्राह्मण समाज की सियासी ताकत

राजधानी में ब्राह्मणों की संख्या 10 फीसदी के आसपास बताई जाती है. दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियों की नजर ब्राह्मण वोटों पर है, जिसे अपने पाले में करने के लिए हरसंभव कोशिश कर की जा रही हैं. इसी तरह वैश्य समुदाय करीब आठ फीसदी हैं, जिसमें कुछ मारवाड़ी और पंजाबी खत्री, सिंधी भी शामिल हैं. वैश्य समाज के लोग 8 फीसदी के आसपास हैं, जो दिल्ली की कई एक दर्जन सीटों पर अहम रोल में है. वैश्य समुदाय के वोटों को लुभाने के लिए सभी पार्टियां लगी हुई हैं, लेकिन फिलहाल यह वोट आम आदमी पार्टी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है.

दिल्ली में मुस्लिम वोटर कितने अहम

दिल्ली में 12 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जो एक दर्जन सीटों पर अहम रोल अदा करते हैं. दिल्ली में मुस्लिम बहुल बल्लीमारान, चांदनी चौक, मटिया महल, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, ओखला, त्रिलोकपुरी, जंगपुरा सीटें है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दोनों का फोकस मुस्लिम वोट बैंक पर है, जिसके चलते चार से पांच सीटों पर दोनों ही पार्टियां मुस्लिम प्रत्याशी उतारती रही हैं. बीजेपी भी मुस्लिम वोट साधने की कवायद में है और पहले भी मुस्लिम प्रत्याशी दिल्ली में चुनाव लड़ाती रही है.

दिल्ली में उत्तराखंडी सियासत

दिल्ली की आबादी में बड़ी हिस्सेदारी उत्तराखंड से आए लोगों की भी है. उत्तराखंड के करीब 35 लाख लोग दिल्ली में रहते हैं. इसलिए बीते कुछ चुनावों से लगभग सभी पार्टियां उत्तराखंड के लोगों पर दांव लगात रही हैं. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और आदमी पार्टी तक उत्तराखंड के प्रवासियों को साधने के लिए कोर कसर नहीं छोड़ रही. इसके अलावा राजधानी में 6 फीसदी ऐसी आबादी है,जिसमें तमाम तरह की जातियां आती हैं. इनमें कायस्थ, मराठा, साउथ इंडियन सहित तमाम वर्ग के लोग हैं. गुर्जर और यादव वोटर भी काफी अहम माने जाते हैं.

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