चंद्रशेखर आजाद का 94 वां शहादत दिवस टांगा स्टैंड राज देवड़ी में मनाया गया

संवाददाता-राजेन्द्र कुमार

बेतिया। पश्चिम चम्पारण जिला क्षेत्रीय ग्रामीण टांगा चालक कल्याण संघ द्वारा अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद का 94 वां शहादत दिवस मनाया गया। इस अवसर पर उनके आदमकद प्रतिमा पर माकपा के बिहार राज्य सचिव मण्डल सदस्य प्रभुराज नारायण राव ने माल्यार्पण किया।

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इस अवसर पर उन्होंने बताया कि अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 तथा शहादत 27 फरवरी 1931 को हुई था। उनका जन्म मध्य भारत के झबुआ तहसील के भंवरा ग्राम में हुआ था।उनके पिता का नाम पंडित सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जगरानी देवी था।चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही आजादी के माहौल में जीना पसंद करते थे। बचपन में पिता द्वारा मार पड़ने के बाद अपने स्वाभिमान की आग में जलते हुए घर से निकल जाना उचित समझा । वह भाग कर काशी के विद्या केंद्र में पहुंच गए। वहां जाकर लघु कौमुदी और अमरकोष रट रहे थे ।इस समय कांग्रेस के सविनय कानून भंग आंदोलन ने उन्हें आकर्षित कर लिया। उस समय उनकी उम्र लगभग 14 साल की थी।

कांग्रेस के सविनय कानून भंग आंदोलन में आजाद गिरफ्तार कर लिए गए ।जब उन्हें अदालत में पेश किया गया तो ।अदालत में मजिस्ट्रेट ने उनकी अवज्ञा पर कहा कि अभी हाथ भर का है ही नहीं। चला है आंदोलन करने भाग जा।इस पर उल्टे आजाद ने ही मजिस्ट्रेट को फटकार लगा दी। कानूनन आजाद को इतने कम उम्र में जेल की सजा नहीं दी जा सकती थी ।इसलिए ब्रिटिश न्याय की रक्षा के लिए तैनात मजिस्ट्रेट ने उन्हें जेल से बाहर ले जाकर 12 बेंत पीट कर छोड़ देने की सजा दे दी। अदालत द्वारा मिली 12 बेंत की सजा के लिए उन्हें जेल में ले जाकर पूरे कपड़े उतार दिए गए। चौखट के साथ खड़ा कर हाथ पांव बांध दिए गए । कुल्हा और पीठ पर दवाई से भीगा मलमल का एक टुकड़ा डाल दिया गया। बेंत को पानी में भिगोकर एक अभ्यस्त भंगी द्वारा पिटाई किया गया ।

चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना के अध्यक्ष थे। सही मायने में स्कूल कॉलेज की शिक्षा का अवसर उन्हें मिला ही नहीं था ।प्रवृत्ति से सैनिक होने का मतलब यह नहीं कि वह यह भी नहीं समझते थे कि जीवन किस बात के लिए बलिदान करना है ।कोई भी क्रांतिकारी सैद्धांतिक सूत्र के बिना चल ही नहीं सकता। हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना का सैद्धांतिक सूत्र समाजवाद और प्रजातंत्र शब्दों से स्पष्ट हो जाता है। आजाद दल के इस सैद्धांतिक लक्ष्य से खूब परिचित थे।वे समाज में पनप रहे सांप्रदायिकता और रूढ़िवाद की कड़ियों को तोड़कर श्रेणीहीन समाज में श्रम करने वालों के प्रजातांत्रिक शासन को स्थापित करने के विचार प्रकट किए थे।आजाद समाजवाद की लक्ष्य को पूर्ण रूप से स्वीकार करते थे।इतना ही नहीं वैज्ञानिक मार्क्सवादी सिद्धांतों को मानने वाले लोगों की तरह वे निरीश्वरवादी भी थे।यानी वह कत्तई नहीं मानते थे कि व्यक्ति और समाज के जीवन का आधार ईश्वरीय निर्देश और न्याय है।

उनके दल की सैद्धांतिक दिशा क्या थी।इसका प्रत्यक्ष प्रमाण 1935–37 में अंडमान की जेल में मिल गया था।वहां आजाद के दल के बहुत सारे साथी अजय घोष,शिव वर्मा,विजय कुमार,जयदेव कपूर,महावीर, धनवंतरी आदि एक साथ जेल में थे।जेल में उन्हें अध्ययन और विचार का प्रयाप्त अवसर था।उस समय जेल में ही उन लोगों ने अपने को मार्क्सवादी घोषित कर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यक्रम को अपना लिया था।उन्होंने कहा अगर भगत सिंह और आजाद जिंदा होते ,तो न तो उनके लिए विधान सभा में कांग्रेस के दल में स्थान होता और नहीं वे किसी पूंजीवादी संस्था की संरक्षता में कोई स्थान स्वीकार करते।अपितु वे कम्युनिस्ट पार्टी के ही करीब होते।

चंद्रशेखर आजाद 27 फरवरी 1931 को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में एक मित्र से मुलाकात करते समय ब्रिटिश हुकूमत की पुलिस से घिर गए।उनके पिस्तौल में 16 गोलियां थी।15 गोली से अंग्रेजों का सामना किए और नहीं बच पाने की स्थिति में अंतिम गोली अपने कनपटी पर मार कर अंग्रेजों की गोली से नहीं मरने की प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए हमेशा के लिए शहीद हो गए।
इस अवसर पर टांगा चालक कल्याण संघ के महासचिव नीरज बरनवाल, अध्यक्ष प्रकाश कुमार वर्मा, ई रिक्शा चालक संघ के जिला संयोजक म. हनीफ,सीटू के जिला सचिव शंकर कुमार राव, मनोज कुशवाहा,राजदा बेगम आदि ने अपने विचारों को रखा।

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