देश- एक हाथ में तलवार, एक में भाला… इसी के दम पर इजराइल के शहरों को भारतीय मेजर ने आजाद करवाया, कहानी ‘हाइफा’ के हीरो दलपत सिंह की- #NA

राजस्थान को ऐसे ही वीर जवानों का देश नहीं कहा जाता है. यहां के एक वीर सपूत मेजर दलपत सिंह शेखावत की बहादुरी और साहस के सामने प्रथम विश्व युद्ध जर्मन और तुर्की सेना के तिरपन कांप उठे थे. हाइफा विजय इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. इस विजय के बाद मेजर दलपत सिंह को हीरो ऑफ हाइफा कहा गया. यहीं नहीं, उनकी बहादुरी को नमन करते हुए अंग्रेज सरकार ने उन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस मेडल व मिलिट्री क्रॉस से भी सम्मानित किया.

26 जनवरी 1982 को पाली जिले के देवली गांव में पैदा हुए मेजर दलपत सिंह 1910 में ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हुए थे. रावणा राजपूत समाज के मेजर दलपत सिंह शेखावत का जोधपुर में स्मारक बना है. 23 सितंबर 1918 को हाइफा में शहीद हुए मेजर दलपत सिंह की याद में हर साल 23 सितंबर को हाइफा हीरो दिवस मनाया जाता है. इस मौके पर इजराइल दूतावास की ओर से पुष्प चक्र चढ़ाया जाता है. इजराइल के हाइफा शहर में हाइफ़ा चौक पर आज भी एक शिलालेख मौजूद है, जिसमें मेजर दलपत सिंह की बहादुरी के किस्से लिखे हैं.

मेजर दलपत सिंह ने किया था पलटन का नेतृत्व

महज 26 वर्ष की उम्र में शहादत देने वाले मेजर दलपत सिंह के प्रति वहां के लोग कृतज्ञता का भाव रखते हैं. इसके अलावा लंदन की रॉयल गैलरी में भी उनकी मूर्ति लगी है. दरअसल साल 1914 से 18 के बीच इजराइल के हाइफा शहर पर तुर्की और जर्मन सैनिकों का कब्जा था. उस समय भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को हाइफा शहर को आजाद करने का जिम्मा सौंपा गया. मैसूर और जोधपुर के घुड़सवार सैनिकों की इस टुकड़ी का नेतृत्व जोधपुर लांसर के मेजर दलपत सिंह कर रहे थे. इस टुकड़ी ने तुर्की और जर्मन की बंदूकों व गोला बारूद का मुकाबला तलवार और भाले से करते हुए इस शहर को आजाद करा लिया.

महज डेढ़ घंटे में जीत लिया युद्ध

इस लड़ाई में मेजर दलपत सिंह ने पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू की तो जर्मन सेना ने गोलाबारी शुरू कर दी. ऐसे में दलपत सिंह ने दिमाग लगाया और जर्मन सेना पहाड़ी के आगे गोलाबारी करती रही और उन्होंने अपनी टुकड़ी को पीछे से चढ़ा दिया. इसके बाद तलवार और भाले से हमला कर महज डेढ़ घंटे में उस सेना को परास्त कर दिया. हालांकि इस लड़ाई में वह खुद घायल हो गए और वहीं उनकी मौत हो गई थी. इस युद्ध में कुल 44 सैनिक शहीद हुए थे. इस लड़ाई में तोप और बंदूक का मुकाबला तलवार से करते देख अंग्रेज भी हैरान रह गए थे.

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