Delhi-Ncr दिल्ली की असली बाजीगर बनी कांग्रेस! सब कुछ गंवाया, फिर भी गुड न्यूज- #INA

दिल्ली चुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है

दिल्ली के सत्ता की तस्वीर अब पूरी तरह साफ हो चुकी है. बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली की सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही तो आम आदमी पार्टी का सफाया हो गया है. कांग्रेस एक बार फिर से दिल्ली की सियासत में अपना खाता नहीं खोल सकी है. इस तरह कांग्रेस को चौथी बार दिल्ली में करारी मात खानी पड़ी है. इसके बाद भी कांग्रेस आखिर क्यों खुश है और केजरीवाल की हार में अपने लिए क्यों गुड न्यूज मान रही है.

दिल्ली में 15 साल तक सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस तीसरी बार एक भी सीट नहीं जी सकी है. कांग्रेस के ज्यादातर उम्मीदवार अपनी जमानत तक नहीं बचा सके हैं. दिल्ली में हार के बाद भी कांग्रेस बाजीगर बनकर उभर रही है, इस बात को अलका लांबा से लेकर संदीप दीक्षित खुले तौर पर इजहार कर रहे हैं. सवाल ये उठता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस क्यों अपनी जीत देख रही है.

कांग्रेस के चलते क्या चुनाव हारी AAP

कांग्रेस के चलते आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेताओं को चुनावी शिकस्त खानी पड़ी है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को अपनी सीट पर जितने वोटों से हार मिली है, उससे ज्यादा वोट कांग्रेस के उम्मीदवार पाने में सफल रहे. ये सिर्फ दो सीटों पर नहीं हुआ है बल्कि एक दर्जन से भी भी ज्यादा सीटों पर AAP की हार की वजह कांग्रेस बनी है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिलकर लड़ती तो दिल्ली की तस्वीर दूसरी होती. आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच सिर्फ दो फीसदी वोटों का ही अंतर है जबकि कांग्रेस का वोट छह फीसदी से भी ज्यादा है.

AAP की हार कांग्रेस के लिए गुड न्यूज

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार में कांग्रेस अपनी जीत देख रही है. दिल्ली में कांग्रेस के वोट प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है. 2020 में कांग्रेस को साढ़े चार फीसदी वोट मिले थे, लेकिन 2025 में उसे 6.38 फीसदी वोट मिले. दिल्ली में कांग्रेस का वोट दो फीसदी बढ़ा है, इसी दो फीसदी के अंतर से आम आदमी पार्टी कई सीटें गंवा दी है. दिल्ली में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर आम आदमी पार्टी ने 2013 में अपनी जड़े जमाई थी और 11 साल तक राज किया. कांग्रेस की जमीन पर आम आदमी पार्टी सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि पंजाब और गुजरात में खड़ी हुई.

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आम आदमी पार्टी के सियासी उभार के बाद से कांग्रेस दिल्ली की सियासत में कमजोर पड़ती गई, लेकिन केजरीवाल के सत्ता से बाहर होने के बाद कांग्रेस को दोबारा से अपने उभरने की संभावना जगा दी है. कांग्रेस नेताओं को यह लग रहा है कि विपक्ष में रहते हुए आम आदमी पार्टी कमजोर होगी, जिसका सीधा फायदा आने वाले समय में उसे होगा. दिल्ली में कांग्रेस का खिसका हुआ दलित और मुस्लिम वोट आम आदमी पार्टी के कमजोर होने के बाद फिर से वापसी करेंगे. मुस्लिम को पहली च्वाइस कांग्रेस रही है.

कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर बढ़ेगी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी एक साथ मिलकर उतरती तो फिर बीजेपी को सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाता. इसकी वजह यह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 43.58 फीसदी वोट मिले हैं जबकि बीजेपी को 45.95 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस को 6.38 फीसदी वोट मिले हैं. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मिले वोट शेयर को अगर जोड़ देते हैं को फिर यह आंकड़ा 49.96 फीसदी वोट हो रहा है. इस तरह बीजेपी से करीब 4 फीसदी वोट आम आदमी पार्टी का ज्यादा बन रहा, जिसके चलते सीटों पर भी असर पड़ता. इस तरह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करना आम आदमी पार्टी को महंगा पड़ा है.

कांग्रेस को इसका लाभ अब बिहार, उत्तर प्रदेश सहित दूसरे राज्यों में चुनाव होगा, जहां पर कांग्रेस कमजोर है और क्षेत्रीय पार्टियों की सहारे चुनाव लड़ती है. कांग्रेस को हल्के में न ही यूपी में सपा लेगी और न बिहार में आरजेडी लेगी. कांग्रेस अच्छे से सीटों की बार्गेनिंग करके चुनाव लड़ेगी, क्योंकि दोनों ही राज्यों में क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस के सहयोगी जरूरत है न की कांग्रेस को, जिस तरह दिल्ली में आम आदमी पार्टी को जरूरत है.

कांग्रेस को कैसे मिलेगा सियासी लाभ

आम आदमी पार्टी अपना सियासी विस्तार जिन-जिन राज्यों में किया है, उन राज्यों में कांग्रेस के वोट बैंक अपने साथ जोड़कर किया है. दिल्ली में AAP ने कांग्रेस की जमीन पर खड़ी हुई है तो पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया. इसके अलावा गुजरात और गोवा में कांग्रेस की जमीन आम आदमी पार्टी छीनी. हरियाणा में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. इस तरह कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी से दिल्ली में हराकर हिसाब बराबर किया है, जिसके केजरीवाल को राष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने की उम्मीदों पर झटका लगेगा.

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अरविंद केजरीवाल अपनी सीट हार गए हैं तो उनके मजबूत सारे सिपहसालार भी अपनी-अपनी सीट गंवा दी है, जिसके चलते आम आदमी पार्टी के लिए आगे की सियासी डगर काफी कठिन होने वाली है. केजरीवाल की क्लीन इमेज वाली छवि को डंक लगा है. भ्रष्टाचार के दाग अब उनके दामन पर लगे चुके हैं. जमानत पर जेल से बाहर हैं. ऐसे में केजरीवाल, सिसोदिया जैसे कई आम आदमी पार्टी के नेता हैं, जिन पर कानूनी शिकंजा फिर से कस कसता है.

केजरीवाल पर शिकंजा कसता है तो आम आदमी पार्टी के लिए अपनी जड़े मजबूती से बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा. इसके अलावा दिल्ली के विकास मॉडल को लेकर भी केजरीवाल देश भर में अपनी जड़ें जमाने में लगे हुए थे, दिल्ली के चुनावी हार से उसकी भी हवा निकल गई है. ऐसे में कांग्रेस को फिर से अपनी जड़े जमाने में लाभ मिल सकता है.

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