Delhi-Ncr Delhi Election Result 2025: कभी यूथ आइकॉन अब धूल धूसरित! अरविंद केजरीवाल ने अपने पैरों में कुल्हाड़ी खुद मारी- #INA

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने अपनी आभा को एकदम मटियामेट कर दिया है. जो केजरीवाल 12 साल पहले यूथ आइकॉन बनकर उभरे थे, वे अब धूल में लथपथ पड़े हैं. दिल्ली जैसे आधे-अधूरे राज्य का मुख्यमंत्री रहने के बाद वे प्रधानमंत्री का ख्वाब देखने लगे थे मगर अब वे विधायकी भी गंवा बैठे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि अरविंद जिस तेजी से राजनीति में चमके थे उसी त्वरा से औंधे मुंह जा गिरे. अब उनका कोई भविष्य नहीं है और इसकी वजह है उनका बड़बोलापन और भरोसे की राजनीति न करना एवं उनकी अवसरवादिता.
- सपोर्ट करने वाली कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा
- अरविंद की हर बात झूठी निकली
- अब केजरीवाल का उबरना असंभव
- कांग्रेस के सूनेपन का लाभ AAP को मिला
- मोदी ने AAP की झाड़ू को उल्टा फेर दिया
- ठुल्ला और मुल्ला कहना भारी पड़ा
- AAP की हार से कांग्रेस भी खुश
- बीजेपी अब और ताकतवर हो कर उभरी
- अरविंद की हर बात झूठी निकली
- अब केजरीवाल का उबरना असंभव
- कांग्रेस के सूनेपन का लाभ AAP को मिला था
शायद एनजीओ वर्कर का उनका स्वभाव ही उनके लिए घातक बन गया. उन्होंने अपने साथियों से, अपने मेंटॉर अन्ना हजारे से और अपने गठबंधन से विश्वासघात किया. दिल्ली की जनता को झूठे सब्जबाग दिखाए, सादगी का दंभ भरते हुए करोड़ों का आशियाना बनाया. यही सब आदतें उन्हें ले डूबीं.
सपोर्ट करने वाली कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा
वे अपने अहंकार में इतना डूबे कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि सभी को अपने अर्दब में लेने की कोशिश करने लगे. वे अपनी मर्यादा भूल गए. यह कोई वे बीजेपी के साथ ही नहीं कर रहे थे बल्कि जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब जिस कांग्रेस ने उनकी सरकार बनाने के लिए सपोर्ट किया था उसी कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल दिया.
केजरीवाल चाहते थे कि दिल्ली पुलिस उनके अधीन की जाए. नहीं किया गया तो उन्होंने कहा, दिल्ली की जमीन पर केंद्रीय गृह मंत्रालय का भवन कैसे बनेगा! और धरने पर बैठ गए थे. अरविंद पर बीजेपी ने जन लोकपाल बिल लाने का दबाव बनाया. बिल का प्रारूप उन्होंने तत्कालीन उप राज्यपाल नजीब जंग को भेजा पर उन्होंने मंजूर नहीं किया. 49 दिन बाद अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया. दिल्ली में 15 फरवरी 2014 को राष्ट्रपति शासन लग गया.
अरविंद की हर बात झूठी निकली
एक वर्ष बाद 2015 में जब दिल्ली में चुनाव हुए, तब दिल्ली के निवासियों को बिजली-पानी फ्री देने के उनके वायदे का असर यह हुआ कि दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 67 उन्हें मिलीं और मात्र तीन बीजेपी को, कांग्रेस का डिब्बा गुल. 2020 में उन्हें 62 सीटें मिलीं और आठ बीजेपी को तथा कांग्रेस फिर शून्य पर. लेकिन इन दस वर्षों के शासन में न वे पूरी तरह बिजली मुफ्त दे पाए न पानी. स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं का हाल यह था कि खुद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाया.
मोहल्ला क्लीनिक में न चिकित्सक बैठते न ही कंपाउंडर. दवाएं तक उपलब्ध नहीं रहतीं. जबकि दिल्ली सरकार के मंत्रियों के ठाठ हो गए. सरकारी गाड़ी और घर न लेने की घोषणा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने सरकारी गाड़ी भी ली और आवास भी. अपने आवास को हर तरह से सुसज्जित बनवाने के लिए करोड़ों रुपए सरकारी कोष से खर्च करवाए.
अब केजरीवाल का उबरना असंभव
भ्रष्टाचार का आलम यह था कि उनके कानून मंत्री सोमनाथ भारती पर उनकी कानून की डिग्री फर्जी होने का आरोप लगा. उन्हें जेल जाना पड़ा फिर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन जेल गए. शराब घोटाले में पहले उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और इसके बाद खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल गए. बीच में उनकी पार्टी के बड़बोले प्रवक्ता संजय सिंह भी जेल में रह आए. शायद ही किसी सरकार के इतने मंत्री जेल गए हों.
बीजेपी ने उन्हें घेरने के लिए हर तरह की रणनीति अपनाई. उन्हें न सिर्फ घेरा बल्कि उनकी सादगी और वायदों की पोल खोल दी. इसके अलावा कांग्रेस भी अपने साथ किये गए विश्वासघात का बदला उनसे लेना चाहती थी. कांग्रेस ने सारी सीटों पर उन्हें घेरा. नतीजा यह निकला कि अरविंद केजरीवाल कुछ सीटें बचा भले ले गए लेकिन अब उनका उबरना मुश्किल है.
कांग्रेस के सूनेपन का लाभ AAP को मिला
इसके अतिरिक्त अरविंद केजरीवाल ने अपने प्रचार-प्रसार में इतना पैसा खर्च किया कि दिल्ली जैसे सरसब्ज राज्य का पूरा खजाना खाली कर दिया. योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास और आशुतोष जैसे राजनीतिक चिंतकों को भी बाहर का रास्ता दिखाया. निश्चित तौर पर अपने 15 वर्षों के राज में शीला दीक्षित ने दिल्ली का कोष भर दिया था. उन्होंने दिल्ली को हर तरह से सुंदर बनाने के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ी. परंतु उनके जाते ही दिल्ली में कांग्रेस का कोई ऐसा नेता न बचा जो दिल्ली के लिए निष्ठापूर्वक कुछ करता.
कांग्रेस के इस शून्य का फायदा बीजेपी को मिलता रहा. तीन, आठ के बाद वह सीधे 48 तक पहुंच गई और कांग्रेस 2015 से आज तक उसी शून्य के आंकड़े पर खड़ी है.
मोदी ने AAP की झाड़ू को उल्टा फेर दिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में मिली की चोट का बदला हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में बंपर जीत से निकाल लिया. उन्होंने बता दिया कि बीजेपी अब पूरे देश में स्थापित हो चुकी है, उसे अपदस्थ करना दूर की कौड़ी है. बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश तक उसका परचम अकेले मोदी के बूते आगे भी फहराएगा. जून में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कुछ लोग मानने लगे थे कि मोदी 3.0 सरकार लंबा नहीं खिंच पाएगी. उनको दिल्ली विधान सभा चुनाव के नतीजे करारा जवाब है.
साल 2013 के बाद से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की झाड़ू ऐसी चली कि दिल्ली राज्य की सरकार में बीजेपी का आना लगभग असंभव हो गया था. मगर नरेंद्र मोदी ने वह करिश्मा कर दिखाया कि बीजेपी ने दिल्ली में न सिर्फ सरकार बना ली बल्कि आप के सभी बड़बोले नेताओं को धूल चटा दी.
ठुल्ला और मुल्ला कहना भारी पड़ा
अपनी इस दुर्गति के लिए खुद अरविंद केजरीवाल हैं. दिल्ली की जनता उनकी वास्तविकता समझ गई थी. जो आदमी किसी भी सांवैधानिक मर्यादा का पालन नहीं करता. हर उप राज्यपाल को उन्होंने निशाने पर रखा. किसी के बारे में कुछ भी बोल देने से सब समझ गये, कि यह एक ऐसा राजनेता है जो किसी भी संस्था का सम्मान नहीं करता. बिना सबूत जुटाये आरोप लगाने की परंपरा अरविंद केजरीवाल ने शुरू की.
पुलिस कांस्टेबल को ठुल्ला बताना और अफसरशाही में अपनी पसंद चला कर उन्होंने एक ऐसी अफसरशाही की फ़ौज खड़ी की जो उनके अनुरूप ही काम करती. उन्हें सुझाव देने का काम उनके सचिवों ने नहीं किया. नतीजा यह हुआ कि अरविंद केजरीवाल जनता की नजरों से उतरे और बीजेपी के संगठन ने उन्हें सरे बाजार निर्वस्त्र कर दिया. अब अरविंद केजरीवाल न घर के रहे न घाट के.
AAP की हार से कांग्रेस भी खुश
संभव है कि अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध तमाम फ़ाइलें खुल जाएं. नतीजों का रुझान आते ही दिल्ली सचिवालय में अधिकारी पहुंचने लगे थे. कई फाइलें इधर-उधर होने का अंदेशा भी है. जाहिर है इस बात को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी समझ रहे होंगे. वहां सरकार भले आम आदमी पार्टी की हो परंतु भगवंत मान यह कतई नहीं चाहेंगे कि उनके संबंध केंद्र सरकार से बिगड़ें. इसलिए अब वे अरविंद केजरीवाल के बयानों से दूर रहेंगे.
यह पहली बार हुआ है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के हारने से सबसे अधिक खुश इंडिया गठबंधन की सिरमौर कांग्रेस है. कांग्रेस ने यह भी बता दिया कि वह भले जीते न जीते लेकिन किसी भी क्षेत्रीय दल को धूल चटाने की औक़ात उसकी है और रहेगी.
बीजेपी अब और ताकतवर हो कर उभरी
उधर बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने अपनी सत्ता को और पुख़्ता कर लिया है. केंद्र में मोदी को सहयोग करने वाली नीतीश और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम भी अब केंद्र को चुनौती नहीं दे सकते. जो मोदी विरोधी रोज-रोज घोषणाएं करते थे कि मोदी सरकार अब जाने वाली है, उनके मुंह पर तमाचा पड़ा है. निश्चय ही हार से सबक लेने में बीजेपी का आज भी कोई जोड़ नहीं है.
हारने के बाद नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी और भी बड़ी ताकत से लड़ती है. चुनाव आयोग या EVM को कठघरे में खड़ा करने वालों का भी मुंह बंद हो जाना चाहिए. यह नरेंद्र मोदी और उनकी रणनीतियों की जीत है. साथ ही बीजेपी की धुरी RSS के चातुर्य का. आने वाले समय में बीजेपी का रथ रोकने की हिम्मत करने के लिए परंपरागत राजनीति के धुर्रे बिखर गए हैं.
अरविंद की हर बात झूठी निकली
2015 में दिल्ली के निवासियों को बिजली-पानी फ्री देने के उनके वायदे का असर यह हुआ कि दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से 67 उन्हें मिलीं और मात्र तीन बीजेपी को, कांग्रेस का डिब्बा गुल. 2020 में उन्हें 62 सीटें मिलीं और आठ बीजेपी को तथा कांग्रेस फिर शून्य पर. लेकिन इन दस वर्षों के शासन में न वे पूरी तरह बिजली मुफ़्त दे पाए न पानी. स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं का हाल यह था कि खुद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाया.
मोहल्ला क्लीनिक में न चिकित्सक बैठते न कम्पाउण्डर. दवाएं तक उपलब्ध नहीं रहतीं. जबकि दिल्ली सरकार के मंत्रियों के ठाठ हो गए. सरकारी गाड़ी और घर न लेने की घोषणा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने सरकारी गाड़ी भी ली और आवास भी. अपने आवास को हर तरह से सुसज्जित बनवाने के लिए करोड़ों रुपए सरकारी कोष से खर्च करवाए.
अब केजरीवाल का उबरना असंभव
भ्रष्टाचार का आलम यह था कि उनके क़ानून मंत्री सोमनाथ भारती पर उनकी कानून की डिग्री फर्जी होने का आरोप लगा. उन्हें जेल जाना पड़ा फिर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन जेल गए. शराब घोटाले में पहले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और इसके बाद खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी जेल गए. बीच में उनकी पार्टी के बड़बोले प्रवक्ता संजय सिंह भी जेल में रह आए. शायद ही किसी सरकार के इतने मंत्री जेल गए हों.
बीजेपी ने उन्हें घेरने के लिए हर तरह की रणनीति अपनाई. उन्हें न सिर्फ़ घेरा बल्कि उनकी सादगी और वायदों की पोल खुल दी. इसके अलावा कांग्रेस भी अपने साथ किये गए विश्वासघात का बदला उनसे लेना चाहती थी. कांग्रेस ने सारी सीटों पर उन्हें घेरा. नतीजा यह निकला कि अरविंद केजरीवाल कुछ सीटें बचा भले ले गए लेकिन अब उनका उबरना मुश्किल है.
कांग्रेस के सूनेपन का लाभ AAP को मिला था
इसके अतिरिक्त अरविंद केजरीवाल ने अपने प्रचार-प्रसार में इतना पैसा खर्च किया कि दिल्ली जैसे सरसब्ज राज्य का पूरा खजाना खाली कर दिया. योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास और आशुतोष जैसे राजनीतिक चिंतकों को भी बाहर का रास्ता दिखाया. निश्चित तौर पर अपने 15 वर्षों के राज में शीला दीक्षित ने दिल्ली का कोष भर दिया था. उन्होंने दिल्ली को हर तरह से सुंदर बनाने के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ी.
परंतु उनके जाते ही दिल्ली में कांग्रेस का कोई ऐसा नेता न बचा जो दिल्ली के लिए निष्ठापूर्वक कुछ करता. कांग्रेस के इस शून्य का फ़ायदा बीजेपी को मिलता रहा. तीन, आठ के बाद वह सीधे 48 तक पहुंच गई और कांग्रेस 2015 से आज तक उसी शून्य के आंकड़े पर खड़ी है.
Delhi Election Result 2025: कभी यूथ आइकॉन अब धूल धूसरित! अरविंद केजरीवाल ने अपने पैरों में कुल्हाड़ी खुद मारी
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