Delhi-Ncr पूर्वांचलियों पर फोकस-उत्तराखंडी एजेंडे से आउट…पहाड़ियों को नजरअंदाज करना क्या AAP को पड़ेगा भारी?- #INA
पहाड़ियों को नजरअंदाज करना AAP को पड़ेगा भारी?
दिल्ली विधानसभा चुनाव की लड़ाई हर दिन रोचक होती जा रही है. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच मुकाबला सीधा होने के बजाय कांग्रेस उसे त्रिकोणीय बनाने में जुटी है. बीजेपी हिंदुत्व एजेंडा सेट कर रही है तो कांग्रेस का फोकस दलित-मुस्लिम पर है. ऐसे में आम आदमी पार्टी दिल्ली के सियासी नब्ज को समझते हुए दलित,वैश्य पंजाबी और पूर्वांचली वोटों पर खास फोकस कर रखा है, जिसके चलते उत्तराखंड सियासी सीन से आउट हो गए हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार 9 उत्तराखंडी किस्मत आजमा रहे हैं. बीजेपी ने दो उत्तराखंडी को उम्मीदवार बना रखा है तो कांग्रेस ने भी एक और बसपा ने एक उत्तराखंडी को प्रत्याशी बनाया है. दिल्ली में रह रहे पांच उत्तराखंडी निर्दलीय चुनावी मैदान में है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने किसी भी उत्तराखंडी को टिकट नहीं दिया है. जिसके चलते सवाल उठ रहा है कि पहाड़ियों को नजर अंदाज करना AAP के लिए कहीं महंगा न पड़ जाए?
किस सीट पर लड़ रहे चुनाव
बीजेपी ने जिन दो उत्तराखंड के रहने वालों को दिल्ली में टिकट दिया है, उसमें करावल नगर से पांच के बार विधायक रहे मोहन सिंह बिष्ट को इस बार मुस्तफाबाद सीट से उतारा है. बीजेपी ने करावल नगर से कपिल मिश्रा को प्रत्याशी बनाया है. जिसके चलते उनकी सीट को बदलना पड़ा. मुस्तफाबाद सीट पर कांग्रेस के अली मेंहदी, आम आदमी पार्टी के आदिल खान और AIMIM के ताहिर हुसैन से है.
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बीजेपी ने पटपड़गंज से रवींद्र सिंह नेगी को फिर उतारा है, जो विनोद नगर से पार्षद हैं. नेगी 2020 में पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को कड़ी टक्कर देने के बाद चर्चा में आए थे. इस बार कांग्रेस के अनिल चौधरी और आम आदमी पार्टी के अवध ओझा से फाइट है. ऐसे में देखना है कि बीजेपी को दोनों उत्तराखंडी नेता क्या अपनी सियासी नैया पार लगा पाएंगे.
कांग्रेस ने हरि नगर सीट से प्रेम बल्लभ (प्रेम शर्मा) को उतारा है, जिनका बैकग्राउंड उत्तराखंड का है. इस सीट पर उनका मुकाबला बीजेपी के बदल सुरेंद्र सेतिया और आम आदमी पार्टी के विधायक राजकुमारी से है. महरौली सीट पर बीजेपी के बागी योगेश्वर सिंह बिष्ट बसपा के टिकट पर उतरे हैं. इसके अलावा अलावा बुराड़ी से प्रेमा रावत, करावल नगर से अजय सिंह नेगी, संगम विहार से सुधीर नेगी और देवली (सुरक्षित) से बचन राम निर्दलीय चुनावी मैदान में उतरे हैं.
दिल्ली में उत्तराखंडी वोटर का रोल
दिल्ली की आबादी में बड़ी हिस्सेदारी उत्तराखंड से आए लोगों की भी है. उत्तराखंड के करीब 35 लाख लोग दिल्ली में रहते हैं, जिनमें से लगभग 18 लाख वोटर होने का दावा किया जाता है. दिल्ली में भले ही उत्तराखंडी वोटर 2 फीसदी से भी कम हो, लेकिन वो 8 से 10 सीटों पर अपना प्रभाव रखते हैं.
दिल्ली की करावल नगर, बुराड़ी, मुस्तफाबाद और गोकलपुरी सीट पर उत्तराखंडी वोटर हार जीत की भूमिका अदा करते हैं. ऐसे ही नई दिल्ली, आरके पुरम, दिल्ली कैंट, बुराड़ी, पटपड़गंज, बदरपुर, पालम और द्वारका ऐसी सीटें हैं, जहां पहाड़ का वोटर सबसे ज्यादा है. ऐसे में उत्तराखंडी वोटों की सियासी अहमियत का अंदाजा दिल्ली चुनाव में लगाया जा सकता है.
दिल्ली में उत्तराखंडी वोटों की सियासी ताकत को समझते हुए लगभग सभी पार्टियां उत्तराखंड के लोगों पर दांव लगा रही हैं. बीजेपी से लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तक उत्तराखंड के प्रवासियों को साधने के लिए कोर कसर नहीं छोड़ रही. इसीलिए बीजेपी ने मोहन सिंह बिष्ट के बगावती तेवर को देखते हुए मुस्तफाबाद सीट से उम्मीदवार बनाकर संभावित नुकसान से बचने की कोशिश की है. कांग्रेस से लेकर बसपा तक ने उत्तराखंडी को तवज्जो दी है, लेकिन आम आदमी पार्टी ने किसी भी उत्तराखंडी को टिकट नहीं दिया.
दिल्ली में चुने गए उत्तराखंडी विधायक
दिल्ली विधानसभा में अब उत्तराखंडी विधायक वही पहुंचे हैं, जो बीजेपी के टिकट पर जीते. मंडावली सीट से साल 1993 में पहली बार मुरारी सिंह पंवार विधानसभा पहुंचे थे, जिन्हें 1998 में हार का मुंह देखना पड़ा था. मुरारी पंवार 2008 में लक्ष्मी नगर से लड़े और हार गए थे. इसके अलावा करावल नगर सीट से मोहन सिंह बिष्ट 1998 से पांचवीं बार विधायक हैं, जिन्हें सिर्फ 2015 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा.
बीजेपी ने वीरेंद्र जुयाल को 2003 में मंडावली से लड़ाया था. इसके अलावा कांग्रेस ने 1993 में मंडावली से आशुतोष उप्रेती, 1998 में यमुना विहार से पुष्कर रावत, 2003 में यमुना विहार और 2008 में करावल नगर से दीवान सिंह नयाल, 2015 में आरके पुरम से लीलाधर भट्ट और 2020 में पटपड़गंज से लक्ष्मण रावत को टिकट दिया था. आम आदमी पार्टी ने 2013 में हरीश अवस्थी को रिठाला से उतारा था, ये सभी हार गए थे. इस बार किसी भी उत्तराखंडी को प्रत्याशी नहीं बनाया.
केजरीवाल के लिए महंगा न पड़ जाए
दिल्ली की करीब 8 से 10 विधानसभा सीटों पर उत्तराखंडी वोटर अहम रोल में है, जिसके बाद भी अरविंद केजरीवाल ने किसी भी सीट पर कोई भी उत्तराखंडी को प्रत्याशी नहीं बनाया है. केजरीवाल की कोशिश चौथी बार सत्ता हासिल करने की है, जिसके लिए तमाम दांव चल रहे हैं. आम आदमी पार्टी की तरफ से पंजाबी से लेकर पूर्वांचली वोटरों को साधने की कवायद की जा रही है, लेकिन उत्तराखंडी उनके फोकस से आउट हैं. ऐसे में उत्तराखंडी लोगों की नाराजगी कहीं महंगी न पड़ जाए, क्योंकि दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में उत्तराखंड के लोगों ने बैठक कर अपने राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग उठा चुके हैं.
पूर्वांचलियों पर फोकस-उत्तराखंडी एजेंडे से आउट…पहाड़ियों को नजरअंदाज करना क्या AAP को पड़ेगा भारी?
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