दुनियां – नेपाल के सेना प्रमुख भारत दौरे पर, गोरखा रेजिमेंट में नेपाली सैनिकों की भर्ती पर होगी बात! – #INA

नेपाल के सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल भारत दौरे पर हैं. वे 14 दिसंबर तक भारत में रहेंगे. उनका भारत दौरा काफी अहम है. क्योंकि इससे पहले भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी नेपाल दौरे पर आए थे. दोनों देशों के सेना प्रमुखों का एक-दूसरे के यहां आधिकारिक दौरा दोनों देशों के लिए काफी अहम होता है. वहीं, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नेपाल के सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिगडेल को मानद जनरल की उपाधि भी प्रदान की.
यह सम्मान उन्हें भारतीय सेना और नेपाल के बीच दीर्घकालिक संबंधों को बढ़ावा देने के लिए दिया गया है. 1950 से नेपाल और भारत के सेना प्रमुखों को मानद जनरल की उपाधि प्रदान करने की परंपरा रही है. नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने कुछ दिन पहले काठमांडू में भारतीय सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी को नेपाल सेना के जनरल की मानद रैंक भी प्रदान की थी.
गोरखा रेजिमेंट में नेपाली सैनिकों की भर्ती पर हो सकती है बात
वहीं, आज नेपाल के सेना प्रमुख ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से औपचारिक मुलाकात भी की. सूत्रों के मुताबिक, नेपाल के सेना प्रमुख अपने दौरे के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, विदेश सचिव विक्रम मिस्री, रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह से भी मुलाकात कर सकते हैं.
वहीं, नेपाल के सेनाध्यक्ष का भारत आगमन इस बात की ओर भी इशारा करता है कि गोरखा रेजिमेंट में फिर से नेपाली सैनिकों की भर्ती का रास्ता खुलने की संभावना हो सकती है. गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना की एक महत्वपूर्ण पैदल सेना रेजिमेंट है. इसमें नेपाल के गोरखा क्षेत्र और भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों से आने वाले सैनिक शामिल होते हैं. लेकिन कोरोना काल और अग्निपथ योजना के बाद से गोरखा रेजिमेंट में एक भी नेपाली गोरखा की भर्ती नहीं हुई है.
गोरखा रेजिमेंट का गौरवशाली इतिहास
गोरखा सैनिक अपनी बहादुरी, अनुशासन और युद्ध कौशल के लिए दुनियाभर में पहचाने जाते हैं. गोरखाओं की पहचान खुखरी से होती है. युद्ध के दौरान गोरखा दुश्मन का सिर काटने के लिए खुखरी का इस्तेमाल करते हैं. गोरखा रेजिमेंट की बहादुरी को भारतीय सेना में एक अलग ही खासियत माना जाता है. इनके बारे में फील्ड मार्शल सैम बहादुर मानेकशॉ ने कहा था कि अगर कोई कहता है कि उसे मौत से डर नहीं लगता तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर वह गोरखा है.
गोरखा रेजिमेंट का गठन 24 अप्रैल 1915 को हुआ था. गोरखा समुदाय के लोग हिमालय की पहाड़ियों, खासकर नेपाल और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं और इन्हें बहुत बहादुर माना जाता है. भारत में भी कई जगहों पर गोरखाओं को बहादुर कहा जाता है. गोरखा रेजिमेंट की वजह से ही अंग्रेज भारत और उसके आसपास के इलाकों में कई युद्ध जीतने और अपने इलाके का विस्तार करने में सफल रहे. कहा जाता है कि गोरखा रेजिमेंट ने गोरखा सिख युद्ध, प्रथम और द्वितीय सिख-एंग्लो युद्ध, अफगान युद्ध के साथ-साथ 1857 के विद्रोह को दबाने में अहम भूमिका निभाई थी.
खुद अंग्रेज भी गोरखाओं की बहादुरी के कायल थे. 1815 में जब ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल राजशाही के बीच युद्ध में नेपाल की हार हुई तो सर डेविड ऑक्टरलोनी गोरखाओं की बहादुरी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गोरखाओं के लिए एक अलग रेजिमेंट बनाने का फैसला किया. इसके बाद गोरखाओं की भर्ती होती रही और गोरखा रेजिमेंट की संख्या भी बढ़ती रही. आज भी गोरखा रेजिमेंट ब्रिटिश सेना का अहम हिस्सा है. ईस्ट इंडिया कंपनी से पहले महाराजा रणजीत सिंह ने गोरखाओं की एक बटालियन बनाई थी जो 1809 से 1814 तक सिख सेना का हिस्सा रही.
क्या 200 साल पुरानी रेजिमेंट में नेपाली गोरखा नहीं होंगे?
कोरोना काल और अग्निपथ योजना के आने के बाद से गोरखा रेजिमेंट में एक भी नेपाली गोरखा की भर्ती नहीं हुई है. ऐसे में क्या 200 साल पुरानी गोरखा रेजिमेंट से नेपाली गोरखाओं की संख्या कम होकर अंततः खत्म हो जाएगी? यह एक बड़ा सवाल है. क्योंकि आजादी से पहले गोरखा रेजिमेंट में करीब 90 फीसदी गोरखा सैनिक नेपाल से थे और 10 फीसदी भारतीय गोरखा सैनिक थे. इसके बाद करीब 80 फीसदी नेपाली गोरखा और 20 फीसदी भारतीय थे.
अब ये संख्या घटकर 60 फीसदी और 40 फीसदी के अंतर पर आ गई है. यानी अब भारतीय सेना को गोरखा रेजिमेंट में नेपाली सैनिक नहीं मिल पा रहे हैं. जब से भारतीय सेना ने अग्निपथ योजना के तहत सैनिकों की भर्ती शुरू की है, तब से अब तक एक भी नेपाली गोरखा भारतीय गोरखा रेजिमेंट में शामिल नहीं हुआ है. दरअसल ये भी कहा जा सकता है कि नेपाल ने भारतीय सेना को एक भी भर्ती रैली आयोजित करने की अनुमति नहीं दी. और हर साल गोरखा सैनिक रिटायर हो रहे हैं.

Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use.

Table of Contents

सौजन्य से टीवी9 हिंदी डॉट कॉम

Source link

Back to top button
Close
Crime
Social/Other
Business
Political
Editorials
Entertainment
Festival
Health
International
Opinion
Sports
Tach-Science
Eng News