Entertainment: 300 फिल्में, लाखों रोजगार, अरबों की कमाई, बजट में मनोरंजन के ‘महाकुंभ’ बॉलीवुड को क्यों किया जाता है इग्नोर? – #iNA

वो घड़ी आ गई जिसके इंतजार में सभी देशवासी सालभर अपनी सांसें थामें रहते हैं. 01 फरवरी को देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 की घोषणा कर दी. इसी के साथ अलग-अलग सैक्टर्स के आंकड़े भी आ गए. लेकिन हर बार की तरह इस बार भी जनता के मनोरंजन का मूल श्रोत यानी की फिल्म इंडस्ट्री को फिर से इग्नोर कर दिया गया. एक बार फिर से कला के महाकुंभ की अनदेखी हो गई. पिछले कुछ समय से खासकर कोरोना के बाद से मनोरंजन जगत के कई सारे कलाकारों ने इस बात की सिफारिश की है कि बॉलीवुड और फिल्म इंडस्ट्री को बजट में कब शामिल किया जाएगा जो दशकों से देश की जनता तक मनोरंजन पहुंचाने का एक रोचक जरिया बना हुआ है.

हर साल 300 फिल्में, अरबों का बजट

यूं तो भारत देश में कई सारी छोटी-बड़ी फिल्म इंडस्ट्रीज हैं जहां हर साल ढेर सारी फिल्में बनती हैं. लाखों की संख्या में लोग फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा हैं. लेकिन उनमें से पिछले कई सालों से सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री रही है बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री. हालिया आंकड़ों की मानें तो कुछ सालों से तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री का दबदबा बढ़ा है और इस इंडस्ट्री ने बॉलीवुड को पीछे भी छोड़ा है लेकिन अब तक के इतिहास को उठाकर देखें तो हमेशा से इंडियन सिनेमा में बॉलवुड का राज रहा है.

इसलिए सैंपल के तौर पर अगर सिर्फ बॉलीवुड को ही लें लें तो रिपोर्ट्स के मुताबिक औसतन 300 बॉलीवुड की फिल्में हर साल बनती हैं. इनमें कई सारी छोटे-बड़े बजट की फिल्में होती हैं. इन फिल्मों की खास बात ये होती है कि इन्हें अलग-अलग जगहों पर शूट किया जाता है. एक्टर की फीस होती है, सिंगर, कोरियोग्राफर, क्रू मेंबर्स के अलावा और भी हेल्पर्स हैं जिनके बलबूते पर ये फिल्में बनती हैं. ऐसे में इस इंडस्ट्री के पास लाखों लोगों के रोजगार का भार है. अगर बार-बार इंडस्ट्री के दिग्गज इस बात को दोहरा रहे हैं कि बजट में फिल्म इंडस्ट्री के लिए भी रेगुलेशन्स और रिलीफ्स होने चाहिए तो इसके पीछे उनकी भी मजबूरी और बेबसी नजर आती है.

क्यों यूनियन बजट में फिल्म इंडस्ट्री को मिलनी चाहिए जगह?

फिल्म इंडस्ट्री हमेशा से अपने ग्लैमर के लिए जानी जाती है. लेकिन कभी भी उस ग्लैमर के पीछे की सच्चाई का एहसास जनता को नहीं होता. ये मुस्कुराहट जो पर्दे के आगे है वो पर्दे के पीछे किसी शख्स की विभत्स मजबूरी भी हो सकती है. जो एक सीन आपकी आंखों के सामने आ रहा है उसे मुकम्मल करने में कई सारे लोगों के अपने-अपने हिस्से के सामर्थ्य लगे हुए हैं. और वो सामर्थ्य भी अपना सरोकार मांग रहे हैं.

अब बात आम जनता ही करते हैं. ये आम जनता भी यही उम्मीद रखती है कि जब महंगाई वक्त के साथ बढ़ती जा रही है तो ऐसे में आम जनता को कम से कम मनोरंजन तो सस्ते में मिले. आम जनता ही है जो थिएटर्स में किसी कम बजट की फिल्म को ब्लॉकबस्टर बनाने का माद्दा रखती है और ये जनता ही है जो बॉक्स ऑफिस पर फिल्मों को धड़ाम से गिरा भी सकती है. ऐसे में बजट में अगर भारतीय सिनेमा की जरूरतों और आम जानता की सुविधा को ध्यान में रखा जाएगा तो ये बड़ी सहूलियत होगी.

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इंडस्ट्री के दिग्गजों की क्या है मांग?

साल 2025 के बजट की घोषणा के बाद फिल्म निर्देश और भट्ट फैमिली के सदस्य मुकेश भट्ट ने अपनी प्रतिक्रिया दी. वे काफी समय से फिल्मों से जुड़े हुए हैं और फिल्म इंडस्ट्री की जटिलताओं से भी अच्छी तरह से वाकिफ हैं. टीवी 9 द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में मुकेश भट्ट इस बार के बजट से जरा मायूस नजर आए और उन्होंने सरकार से कुछ अपील भी की. उन्होंने कहा कि- ”हमारी इंडस्ट्री में लाखों लोग काम कर रहे हैं, ये बात बॉलीवुड को अपने आप में एक बड़ी इंडस्ट्री बनाता है. ऐसे में सरकार हमारी भी सुनें और जानें की हमारी समस्या कितनी गंभीर है.” इसके अलावा कुछ समय पहले एक मीटिंग के दौरान जैकी श्रॉफ ने हल्के-फुल्के अंदाज में अपनी बात रखी थी और सिनेमा हॉल्स में पॉपकॉर्न के दामों को भी कम करने की ख्वाहिश जताई थी.

Anurag Dibekar

अनुराग कश्यप-दिबाकर बनर्जी की शिकायतें

फिल्म इंडस्ट्री में कई सारे ऐसे डायरेक्टर्स हैं जिन्हें की चीजों की प्रिवलेज है. या यूं कहें कि एक्सेस है. लेकिन इसी इंडस्ट्री में कुछ काबिल डायरेक्टर्स ऐसे भी हैं जिनके पास आर्ट तो है लेकिन इस फिल्म इंडस्ट्री में उस आर्ट को पोट्रे करने का बजट नहीं है. कई दफा दिग्गज फिल्ममेकर अनुराग कश्यप ने भी कई दफा इस बात की निराशा जताई है कि उनकी फिल्में इसलिए नहीं कमा पातीं क्योंकि उन्हें प्रोड्यूसर्स नहीं मिलते. या उतने थिएटर्स नहीं मिलते जिनपर उनकी फिल्मों को कमाने का स्कोप मिल सके. अंत में इन डायरेक्टर्स को ओटीटी की राह ही पकड़नी पड़ती है. वहीं एक और दिग्गज फिल्ममेकर दिबाकर बनर्जी ने भी कुछ समय पहले अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट को रिलीज करने के लिए प्रोड्यूसर्स ढूंढ़ते नजर आए थे. ये दोनों ही देश के ऐसे आर्ट डायरेक्टर्स हैं जिन्होंने अपने सिनेमा से समाज की एक सच्चाई बताई है. लेकिन अफसोस कि उन्हें ही अपनी फिल्में रिलीज करने तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है. ऑडियंस तो खैर आती रहेगी. लेकिन ऐसे काबिल डायरेक्टर्स और ऐसे और भी काबिल डायरेक्टर्स अपनी फिल्में बना सकें इसके लिए फिल्म इंडस्ट्री अपने-अपने स्तर पर मांगे करती रही है. ये कोई नई बात नहीं.

Karan Johar Bollywood

कोरोना के बाद बदले हालात

बॉलीवुड की ग्लैमर भरी दुनिया कभी भी ऐसी नहीं थी. ये चमक-धमक और चकाचौंध की दुनिया थी. लेकिन पिछले कुछ सालों में खासकर की कोरोना के बाद से बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री को कई सारे क्राइसेज से गुजरना पड़ा. कोरोना काल में कई सारे नामी एक्टर्स भी पैसी की तंगहाली का सामना करते नजर आए. खुद जब बड़े फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर करण जौहर ने इस बात को कुबूला की पोस्ट कोरोना उनकी फिल्में अच्छा रिस्पॉन्स नहीं कर पाईं और यही उनके मौजूदा फाइनेंसियल क्राइसेज की वजह बना है. कई सारे थिएटर्स ऐसे थे जो कोरोना काल में ऐसा ठप पड़े कि अब तक उनकी स्थिति में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. वहीं कई सारी फिल्में भी ऐसी थीं जिन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा. कई बड़े-बड़े प्रोड्यूसर्स ने अपने दुख बयां किए. जो सीधे तौर पर इस बात का संकेत देती है कि इंडस्ट्री इकनॉमिक क्राइजेस का शिकार हो सकती है.

इसके अलावा OTT प्लेटफॉर्म्स की बढ़ती उपयोगिता ने भी थिएटर्स को थोड़ा सा पीछे ढकेला है. अब नियम की मानें तो किसी भी फिल्म की रिलीज के 45 दिन के अंदर कोई फिल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर आ जाती हैं. ऐसे में ऑडियंस बंट रही है. वहीं फिल्में देखना अब पहले की तरह सस्ता नहीं रहा है. आम आदमी की जेब पर भी इसका असर पड़ता ही है. फिलहाल तो बजट आ चुका है. अब अगले साल एक बार फिर से सिनेमा जगत, बजट की ओर उम्मीद भरी नजरों से देखेगा.

300 फिल्में, लाखों रोजगार, अरबों की कमाई, बजट में मनोरंजन के ‘महाकुंभ’ बॉलीवुड को क्यों किया जाता है इग्नोर?


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