Entertainment: Black Warrant : जानें कौन थे रंगा-बिल्ला, जिनसे लोगों को हमदर्दी भी थी और नफरत भी – #iNA
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आज से 43 साल पहले यानी 31 जनवरी 1982 को गीता चोपड़ा के साथ दुष्कर्म करके उनकी बेरहमी से हत्या करने वाले रंगा यानी कुलजीत सिंह और बिल्ला यानी जसबीर सिंह को एक साथ फांसी पर लटकाया गया था. सालों पहले दिल्ली के तिहाड़ जेल में हुई 20वीं सदी की ये फांसी इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गई और इसकी वजह थी रंगा की मौत. दरअसल फांसी के 2 घंटे बाद जब डॉक्टरों ने जांच की, तब बिल्ला तो मर चुका था, लेकिन रंगा की नाडी चल रही थी. यानी फांसी के बाद भी रंगा 2 घंटे तक जिंदा था. तिहाड़ जेल के इतिहास में यह अद्भुत और चौंकाने वाली घटना पहली बार हुई थी. इस घटना का जिक्र दिल्ली के तिहाड़ जेल के पूर्व कानून अधिकारी सुनील गुप्ता और पत्रकार सुनेत्रा चौधरी ने उनकी किताब ब्लैक वारंट में किया गया है.
कुछ दिन पहले नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई विक्रमादित्य मोटवानी की सीरीज ‘ब्लैक वारंट’ में भी उन्होंने ये रोंगटे खड़े करने वाला सीन शामिल किया है और उनके मुताबिक ये सीन ऑडियंस के सामने पेश करना विक्रमादित्य ने लिए भी बेहद चैलेंजिंग था. तो आइए इस घटना के बारे में विस्तार से बात करते हैं.
सीरीज ‘ब्लैक वारंट’ के मुताबिक रंगा और बिल्ला को फांसी देने के 2 घंटे बाद नियम के मुताबिक जब डॉक्टर फांसी घर में पोस्टमार्टम से पहले दोनों के शव की जांच करने पहुंचे, तब वो आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि जहां उन्होंने बिल्ला को मरा हुआ पाया, वही रंगा की नाड़ी की जांच में ये पाया गया कि उसकी नाड़ी चल रही थी और वह जिंदा था. ये देखकर तिहाड़ जेल के अधिकारी कर्मचारी और जल्लाद सभी आश्चर्यचकित और हैरान थे कि फांसी देने के बावजूद 2 घंटे बाद भी रंगा जिंदा कैसे है. जैसे ही डॉक्टर ने ये बात अधिकारियों को बताई तो वहां हड़कंप मच गया. जिसके बाद जल्लाद ने रंगा के गले में लगे फंदे को नीचे से फिर खींचा और फिर रंगा की मौत हो गई.
#BlackWarrant – Netflix
Vikramaditya Motwane’s Black Warrant is refreshing saga amid the cluttered landscape of OTT content, which has long strayed into the mundane since its peak, standing out as an immersive, meticulously detailed, and brilliantly crafted piece of work. pic.twitter.com/BumHwBBZYf
— The Cinéprism (@TheCineprism) January 15, 2025
1978 में रंगा-बिल्ला की वजह से दहल गई थी दिल्ली
अगस्त 1978 में रंगा-बिल्ला ने नेवी अधिकारी के दो बच्चों का अपहरण किया. गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा युवा वाणी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 8:00 बजे के करीब घर से निकले थे. गीता के साथ दुष्कर्म करने के बाद इन दोनों ने भाई-बहन को बेरहमी से मारकर जंगल में फेंक दिया. दो दिनों बाद पुलिस के काफी ढूंढने पर भाई-बहन की लाश एक पशु चराने वाले को घने जंगल में मिली, उस समय वो पूरी तरह सड़ चुकी थी. इस घटना के बाद रंगा बिल्ला फरार होने के बाद आगरा में छुपे हुए थे. जब दोनों आगरा स्टेशन से दिल्ली जा रही कालका मेल ट्रेन में चुपचाप चढ़ गए, तब इत्तेफाक से वे दोनों जिस कोच में चढ़े वह कोच सेना की कोच थी. इन दोनों को जवानों ने पकड़ लिया और दिल्ली पहुंचते ही पुलिस के हवाले कर दिया.
अदालत ने दी मौत की सजह
रंगा-बिल्ला को हाई कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी देने का फैसला बरकरार रखा और दिल्ली के तिहाड़ जेल में 31 जनवरी 1982 को दोनों रंगा बिल्ला को फांसी दी गई थी. रंगा बिल्ला को फांसी देने के लिए तिहाड़ प्रशासन की ओर से फरीदकोट और मेरठ जेल से दो जल्लादों फकीरा और कालू को बुलाया गया था. क्योंकि फांसी के फंदे से 2 घंटे तक लटके होने के बावजूद रंगा जिंदा बच गया था इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने नया कानून पास किया. तब से फांसी से पहले दोषियों के वजन के बराबर की डमी बनाकर कई बार इसका ट्रायल किया जाता है, ताकि फिर से रंगा की फांसी जैसी घटना ना हो. हालांकि अब आज के समय में फांसी देने का फैसला काफी हद तक कम कर दिया गया है. अब सिर्फ ऐसे ही लोगों को फांसी दी जाती है जो बहुत ही कुख्यात अपराधी हैं.
Black Warrant : जानें कौन थे रंगा-बिल्ला, जिनसे लोगों को हमदर्दी भी थी और नफरत भी
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