Entertainment: Black Warrant Review: जेल की सलाखों से झांकती विक्रमादित्य मोटवानी की शानदार सीरीज, ज़हान ने खींच कर रखी कहानी की कमान – #iNA

दुनिया में ये बात मानी जाए या ना मानी जाए, लेकिन आज भी किसी का शरीर देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जाता है कि वो शख्स किसी काम के लिए फिट है या नहीं… खासतौर पर जहां बात पुलिस या फिर फौज की आती है तो मानसिक शक्ति और हिम्मत से कहीं ज्यादा बाजुओं की ताकत और मर्दानी आवाजों पर जोर दिया जाता है. खैर इस बात के लिए किसी को कसूर वार ठहराया भी नहीं जा सकता क्योंकि कुछ लातों के भूत बातों से नहीं मानते और जब बात देश के सबसे बड़े और खुंखार अपराधियों से भरे जेल को संभालने की हो तो इन बातों को ध्यान में रखना बनता भी है.

लेकिन हौसला भी किसी चिड़िया का नाम है और हौसले से बड़े से बड़े मुकाम हासिल किए जा सकते हैं. मगर सवाल ये है कि क्या आदर्शों की दाल जेल की सलाखों के पीछे दम भर सकती है. इसी बात का जवाब विक्रमादित्य मोटवानी की सीरीज ‘ब्लैक वारंट’ (Black Warrant) की कहानी का नायक सुनील गुप्ता पूरे शो में तलाशता है. अब उसे वो जवाब मिलता है या नहीं ये तो आपको सीरीज देखकर जानना पड़ेगा. हम यहां आपको ये बताने वाले हैं कि सीरीज में देखने लायक बल्कि याद रखने लायक क्या-क्या है?

सबसे बड़े जेल और उसके जेलर की कहानी

एक आम आदमी किसी अपराधी को किस तरह से देखता है ये बात इस सीरीज में बहुत कायदे से समझाई गई है. शो की कहानी के नायक हैं सुनील गुप्ता जिनको देश के सबसे बड़े और खतरनाक जेल तिहाड़ का जेलर बनने की नौकरी मिली है. वो एक ऐसा शख्स है जो ना तो मीट-मछली खाता है और ना ही गाली देना जानता है. उसे गुस्सा नहीं आता. वो कैदियों को अपराधी से ज्यादा इंसानों की तरह देखता है. शो की सबसे अच्छी बात ये है कि शो आपको ये नहीं कहता कि किसी जेलर का ऐसा स्वभाव जेल के लिए सही नहीं है. बल्कि शो के ट्विस्ट और टर्न्स आपको बहुत प्यार से सुनील के साथ-साथ बदलते हैं और आखिरी में आप खुद को उसी की जगह खड़ा महसूस करते हैं.

दिल्ली के तिहाड़ जेल में नौकरी करते रहे सुनील कुमार गुप्ता ने पत्रकार सुनेत्रा चौधरी के साथ मिलकर कोई छह साल पहले एक किताब लिखी थी जिसका नाम था ब्लैक वारंट: कन्फेशंस ऑफ ए तिहाड़ जेलर. ये किताब आज भी तिहाड़ को लेकर बनी सबसे चर्चित और सटीक किताब है. विक्रमादित्य मोटवानी का ये शो इसी किताब पर आधारित है. जिनको नहीं पता को ब्लैक वारंट उस आदेश पत्र को कहा जाता है जिसपर किसी कैदी की मौत का वक्त सजा के तौर पर मुकर्र किया जाता है. यानी जब किसी कैदी की फांसी तय हो जाती है तो उसके नाम का ये वारंट जारी किया जाता है जिसमें बताया जाता है कि उसे किस वक्त, किस दिन फांसी दी जाएगी.

तिहाड़ का फांसी घर… और इम्तिहान

‘फांसी… किसी जेल के सबसे बड़े इम्तिहानों में से एक है…’ और ये इम्तिहान तिहाड़ का फांसी घर कई बार दे चुका है. शो की कहानी आपको जेल के सबसे काली कोठरियों तक ले जाती है, जो आपको ये दिखातीं हैं कि जेल में रहने वाले असल में कैसे रहते हैं. कैदियों के बीच की लड़ाई, ‘ए’ ‘बी’ और ‘सी’ क्लास के हिसाब से रहने वाले ये लोग जेल की चार दीवारों में भी पैसे से बंटे रहते हैं. जेल में तीन गैंग हैं, पहली है हड्डी, दूसरी है त्यागी और तीसरी है सरदार. सुनील जेल में अंदरूनी राजनीति, करप्शन और साजिशों से दो चार होता है तो हिल जाता है. वो दिमागी रूप से इतना परेशान होता है कि उसे लगने लगता है कि उसकी मदद अब बस एक अपराधी ही कर सकता है. शो में सुनील का किरदार दिवंगत एक्टर शशि कपूर के पोते ज़हान कपूर ने निभाया है. ज़हान पूरी तरह से इस शो को पकड़कर रखते हैं. कहीं भी शो की कहानी भटकती नहीं और इसका श्रेय उनकी शानदार एक्टिंग को जाता है. हालांकि, एक और ऐसा किरदार है जो जब-जब स्क्रीन पर आता है तो लगता है कि उसे ही देखा जाए.

चार्ल्स शोभराज के किरदार में खिले सिद्धांत

बिकिनी किलर के नाम से कुख्यात अपराधी चार्ल्स शोभराज का किरदार निभाया है सिद्धांत गुप्ता ने. चार्ल्स के बारे में एक बात बहुत मशहूर है और वो है उसका स्टाइल और उसका चार्म. सिद्धांत जब-जब स्क्रीन पर आते हैं तो साथ मौजूद हर शख्स को खा जाते हैं. उनकी आंखें चश्मे के भीतर से वो करिश्मा कर देती हैं जो करने में एक्टर्स को काफी लंबा वक्त लग जाता है. सिद्धांत की चाल-ढ़ाल से लेकर हाव-भाव और बोलने का तरीका इतना कमाल का है कि चार्ल्स खुद भी उन्हें देखे तो शायद देखता रह जाए. ये एक ऐसा अपराधी है जो जेल में होकर भी शायद सबसे ज्यादा आजाद है. सिद्धांत इस रोल में कमाल के हैं.

मोटवानी की इस सीरीज में एक कोशिश है ये बताने की कि कांग्रेस शासनकाल में एशिया की इस सबसे बड़ी जेल में क्या कुछ चलता था? यहां इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया का नारा भी है और ये नारा इतना बुलंद है कि जब उस समय के गृहमंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह, जेल का निरिक्षण करने आते हैं तो कैदी उनसे कहते हैं कि ये नेहरू की जेल है. पॉलिटिकल सटायर करने की कोशिश है लेकिन कुछ जगह इसकी जरूरत जरा कम सी महसूस होती है. इस सीरीज में बहुत कुछ ऐसा है जो किताब में है ही नहीं और किताब का बहुत कुछ ऐसा सनसनीखेज इसमें नहीं है जिसकी वजह से ये सीरीज देखने की दिलचस्पी पैदा होती है.

जेल के अंदर से क्राइम की कहानी

रंगा-बिल्ला की फांसी के दौरान ‘मौत’ का इंतजार करना या फिर मकबूल भट्ट की मौत की सजा का आसानी से चला जाना, सीरीज शांती से हर पहलू से आसानी से पार पा लेती है. हर एपिसोड औसतन 40 मिनट के आसपास हैें. कलाकार इसमें विक्रमादित्य मोटवानी ने छांट-छांटकर रखे हैं. ज़हान और सिद्धांत के अलावा शो में राहुल भट, अनुराग ठाकुर, परमवीर सिंह, प्रताप फाड, विनय शर्मा, सुखविंदर चहल और टोटा रॉय चौधरी जैसे शानदार नाम हैं. ब्लैक वारंट लिखने वाले सुनील कुमार गुप्ता ने अपने कार्यकाल के दौरान तिहाड़ में 14 फांसियां देखीं थीं, ये कहानी आपको सब कुछ तो नहीं दिखाती… दिखा भी नहीं सकती… लेकिन जितना दिखाती है वो कमाल का है. गालियां भर-भर के हैं तो फैमिली के साथ ना देखिएगा बाकी अगर जरा भी क्राइम की दुनिया को जानने में दिलचस्पी है तो सीरीज बढ़िया ऑप्शन है.

Black Warrant Review: जेल की सलाखों से झांकती विक्रमादित्य मोटवानी की शानदार सीरीज, ज़हान ने खींच कर रखी कहानी की कमान


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