Entertainment: Chhaava: छावा के ‘गद्दार’ कौन? महाराष्ट्र में शुरू हुआ बवाल, क्या कहते हैं इतिहासकार? – #iNA
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बॉक्स ऑफिस पर बड़ी-बड़ी फिल्मों को धूल चटाने वाली विकी कौशल की ऐतिहासिक फिल्म ‘छावा’ अब विवादों में घिर गई है. दरअसल मराठा सरदार गणोजी और कन्होजी शिर्के के वंशजों ने फिल्म के निर्माताओं पर उनके पूर्वजों को गलत तरीके से दिखाने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि यह फिल्म उनके परिवार की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाती है और उन्होंने निर्माताओं के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का दावा दायर करने की धमकी दी थी. हालांकि अब फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने ये कहते हुए माफी मांगी है कि उन्होंने फिल्म में किसी भी उपनाम का इस्तेमाल नहीं किया है. अब एनसीपी के विधायक अमोल मिटकारी ने भी इस फिल्म पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस फिल्म में सोयराबाई को खलनायक के रूप में गलत तरीके से पेश किया गया है.
विकी कौशल की फिल्म छावा भले ही ‘छत्रपति संभाजी महाराज’ के बारे में हो, लेकिन ये फिल्म मशहूर मराठी राइटर शिवाजी सावंत के उपन्यास ‘छावा’ के रेफरेंस के साथ बनाई गई है और इस नॉवेल में जो लिखा है, वही निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने अपनी फिल्म में दिखाया है. दरअसल छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बेटे छत्रपति संभाजी महाराज को आज भी महाराष्ट्र की संस्कृति और गौरव का प्रतीक माना जा जाता है. आज भी यहां के लोगों के दिलों में इस पिता-पुत्र के लिए खास स्थान है. यही वजह है कि हमारे पूर्वजों ने संभाजी महाराज के साथ गद्दारी की, ये इल्जाम कोई भी परिवार अपने सिर पर नहीं लेना चाहता. शिर्के परिवार उनमें से ही एक है. ‘छावा’ की वजह से फिर एक बार ये विवाद छिड़ गया है कि आखिर किसने संभाजी महाराज के साथ गद्दारी की और वो कौन था, जिसकी वजह से संभाजी महाराज को औरंगजेब ने पकड़ लिया?
‘शिर्के परिवार’ का क्या कहना है?
शिर्के परिवार के वंशज भूषण शिर्के ने इस पूरे मामले के बारे में टीवी9 से की खास बातचीत में कहा कि ‘छावा’ फिल्म की रिलीज होने के बाद उनसे लोगों ने सवाल पूछने शुरू कर दिए कि क्या उनके परिवार ने छत्रपति संभाजी महाराज से गद्दारी की? जब हमने फिल्म देखी, तब हमें पता चला कि इस फिल्म में जो इतिहास दिखाया गया है, वो ज्यादातर झूठ है. इस फिल्म की वजह से हमारे शिर्के खानदान पर बदनामी का दाग लगा है. हम सबने तय किया था कि छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती का सम्मान करते हुए इस खास दिन के बाद ही हम इस पूरे मामले के खिलाफ आवाज उठाएंगे. फिल्म बहुत अच्छी बनाई है, लेकिन हम चाहते हैं कि फिल्म में हमारे शिर्के खानदान की बदनामी करने वाले जो सीन हों, वो हटाए जाएं. हम फिल्म का विरोध नहीं कर रहे हैं. लेकिन हम खलनायक नहीं हैं. मेरी फिल्म के निर्देशक लक्ष्मण उतेकर से बात हुई है, उन्होंने माफी भी मांगी, लेकिन मैंने उनसे ये गुजारिश की है कि इस फिल्म से वो हिस्सा हटाया जाए, जो हमें गलत दिखाता है.
आगे भूषण शिर्के ने कहा है कि आज भी भोसले (शिवाजी महाराज का परिवार) और शिर्के खानदान के बीच रिश्ते होते हैं, अगर हम छत्रपति के साथ कुछ गलत करते, तो दोनों परिवारों के बीच सब कुछ बिगड़ जाता. आज हमारे बच्चे जब स्कूल जाएंगे, तब उन्हें भी पूछा जाएगा कि हम गद्दार थे क्या? यही वजह है कि हम चाहते हैं कि इस फिल्म से हमारी बदनामी करने वाली बातें हटाई जाएं.
क्या कहते हैं इतिहासकार?
इतिहास शोधकर्ता इंद्रजीत सावंत का कहना है कि गणोजी शिर्के और कान्होजी शिर्के की बात करें तो वे दोनों संभाजी महाराज पर हुए हमले के पहले ही औरंगजेब से मिल गए थे. कान्होजी पहले गए थे और संभाजी महाराज के साले और उनकी बहन के पति गणोजी कान्होजी के कुछ समय बाद औरंगजेब की फौज में शामिल हो गए थे. इस घटना के कई साल बाद यानी 1689 में संभाजी महाराज को मुगलों ने पकड़ लिया था. ‘छावा’ फिल्म में कहीं पर भी गणोजी और कान्होजी का उपनाम नहीं लिया गया है. लेकिन फिल्म में ये जरूर दिखाया गया है कि संभाजी महाराज को पकड़ने में इन दोनों का बहुत बड़ा हाथ था. फिल्म में ये भी दिखाया गया है कि शेख निजाब मुकर्रबखान कोल्हापुर में था और फिर स्वराज्य के ये दो गद्दार वहां से अम्बा घाट से होते हुए संगमेश्वर तक इस खान को लेकर गए. फिल्म में दिखाया गया ये सीन गणोजी शिर्के पर किया गया अन्याय है. वो मुगलों से जरूर मिले होंगे, लेकिन अपनी ही बहन के सुहाग को इस तरह से मुगलों को सौंपने की बेशर्मी उस समय के मराठाओं में नहीं थी.
इस बारे में आगे बात करते हुए इंद्रजीत सावंत कहते हैं कि फिल्म में जो दिखाया गया है, इसके विरुद्ध इतिहास से एक बड़ा सबूत हमारे पास है और वो ये है कि इस बड़ी फितूरी के बारे में फ्रेंच भाषा में कुछ लिखा गया है. दरअसल संगमेश्वर के नजदीक राजपुर में फ्रेंच लोगों की छोटी सी फैक्ट्री थी, राजपुर तब एक बड़ा बंदरगाह था. उस समय पांडिचेरी का प्रमुख था, फ्रांसिस्को मार्टिन, उसे इस फैक्ट्री से एक खबर मिली थी और उसने वो खबर अपनी डायरी में लिखकर रखी थी. उन्होंने फ्रेंच में लिखा था. संभाजी महाराज फरवरी में पकड़े गए थे और उन्होंने इस बारे में मार्च के आस-पास अपनी डायरी में लिखा था. इसका हिंदी में अनुवाद ये है कि संभाजी महाराज को उनके सह-कारकुन ने कवि कलश के प्रति उनकी नफरत की वजह से धोखा दिया. भले ही इस डायरी में उस इंसान का नाम नहीं लिखा था. लेकिन अन्नाजी दत्तो उस समय वो जिम्मेदारी निभा रहे थे. उन्हें संभाजी महाराज ने हाथी के पैरों के नीचे डाल दिया था, लेकिन उनके निधन के बाद उनके कई साथी वहीं मौजूद थे, संगमेश्वर का कुलकर्णी पद जहां महाराज पकड़े गए थे, वो अन्नाजी दत्तों के पास था. हालांकि संभाजी महाराज को बंदी बनाने के पीछे किसका हाथ था, इसे लेकर कई थ्योरी मौजूद हैं.
संभाजी महाराज को बंदी बनाने को लेकर दूसरी थ्योरी
शिवाजी सावंत की ‘छावा’ की तरह लेखक विश्वास पाटील ने भी छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर ‘संभाजी’ नाम का उपन्यास लिखा है. संभाजी महाराज की गिरफ्तारी के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि फ्रांसिस्को मार्टिन नाम का ये इंसान बिल्कुल भी भरोसेमंद नहीं था. उनकी अगर डायरी आप पढ़ते हो, तो उन्होंने छत्रपति संभाजी महाराज के ऊपर कई घटिया बातें लिखी हैं. कहीं और जाने की जगह मराठाओं का इतिहास जानने के लिए आपको जेधे शकावली देखनी चाहिए, तब आपको पता चल जाएगा जेधे शकावली के 34 नंबर पन्ने पर 1660 की एक एंट्री है, जहां लिखा है कि संभाजी महाराज ने कलश की मदद करते हुए खुद शिर्के के वतन पर आक्रमण करते हुए उनका पराभव किया था. संभाजी महाराज को मुगलों के बंदी बनाने से पहले के दो-तीन महीने के दस्तावेज अगर आप पढ़ते हैं, तो आपको पता चल जाएगा कि संभाजी महाराज ने खुद शिर्के की पागा म्हणजे अस्तबल को क्षति पहुंचाई थी. उनकी प्रॉपर्टी, उन्हें संभालने के लिए दिए गए गांव भी उनसे छीन लिए गए थे. संभाजी महाराज के निधन के बाद भी तारा राणी के समय भी (संभाजी महाराज के बाद उनके सौतेले भाई राजाराम को येसूबाई ने छत्रपति बनाया था और तारा राणी राजाराम की पत्नी थीं.) ये सबूत हैं कि कई जगह शिर्के की प्रॉपर्टी उनसे छीन लिए गए हैं. इन कई सबूतों के आधार पर ये साबित होता है कि आज जो लोग एक अलग चित्र दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं, वैसा नहीं था.
विश्वास पाटील ने आगे बताया कि जिस घाटी से मुग़ल आए और उन्हें पकड़ा, उस जगह से मैं खुद चलकर आया हूं, आप बिना जानकारी और समझ के आज भी वहां नहीं जा सकते. इसलिए उनके साथ गद्दारी हुई है ये तो तय है. आज हर कोई, वो कैसे संभाजी महाराज से वफादार थे, कहते हुए दूसरों को गद्दार ठहरा रहा है, वहां मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि जिस तरह से संभाजी महाराज को उनके ब्राह्मण कारकुनों ने धोखा दिया था, वैसे ही मराठा सरदारों ने भी उन्हें दिया था और धोखा देने वालों में मुस्लिम न्यायाधीश भी शामिल थे. इसके भी सबूत हैं. अक्टूबर 1684 को जब संभाजी महाराज के खिलाफ दूसरी बार गद्दारी हुई थी, उसमें मानाजी मोरे, गंगाधर पंडित, वासुदेव पंडित और शाहूजी सोमनाथ शामिल थे और जब तक महाराज जिंदा थे, इन सब को जेल में बंद किया गया था, वो राजबंदी थे. रायगढ़ का प्रमुख न्यायाधीश छत्रपति शिवाजी महाराज ने काजी हैदर को बनाया था, जब तक महाराज थे, तब तक वो गद्दी का वफादार बनकर रहा, लेकिन संभाजी राजा के समय वो औरंगजेब से जाकर मिला. इसलिए संभाजी महाराज का नाम लेकर जातिवाद करना और एक दूसरे पर कीचड़ उछालना बंद करना चाहिए. क्योंकि हर इंसान स्वार्थी है, उससे किसी भी जात या धर्म का कोई भी लेना देना नहीं है. स्वराज्य से इनका कोई मतलब नहीं था. वरना छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के बाद सूर्य की तरह पराक्रमी उनका पुत्र महज 9 साल के अंदर मारा नहीं जाता. कहां 800 मील दूर से औरंगजेब आता है, बंदी बनाकर संभाजी महाराज को 36 दिन तक घुमाया जाता है. लेकिन महाराष्ट्र का कोई भी गांव उस औरंगजेब को रोकने के लिए आगे नहीं आता. ये पूरे महाराष्ट्र की उनके साथ की हुई गद्दारी है.
नोट: इस आर्टिकल में शिर्के परिवार और अलग-अलग इतिहासकारों की राय पेश की गई है. टीवी9 हिंदी डिजिटल इन थ्योरीज का समर्थन या विरोध नहीं करता.
Chhaava: छावा के ‘गद्दार’ कौन? महाराष्ट्र में शुरू हुआ बवाल, क्या कहते हैं इतिहासकार?
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