Entertainment: कम्प्यूटर जी! 25 साल का हुआ KBC और 82 के अमिताभ बच्चन, क्यों नहीं दूसरा ऑप्शन? – #iNA
हिंदी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन की अस्सी के दशक की एक फिल्म थी- कालिया, इसका लोकप्रिय डॉयलाग था- मैं जहां खड़ा हो जाता हू्ं, लाइन वहीं से शुरू होती है. यकीन मानिए बिग बी के करियर पर भी इस लाइन की अनोखी छाप है. अमिताभ बच्चन ने सिनेमा में एंग्री यंग मैन कैरेक्टर को शुरू किया, जिसके बाद कई सितारों पर इस ट्रेंड का प्रयोग किया गया. कोविड काल में ओटीटी पर सबसे पहले अमिताभ की फिल्म गुलाबो सिताबो रिलीज हुई, जिसके बाद अनेक फिल्मों की लाइन लग गई. इसी तरह आज से पच्चीस साल पहले उन्होंने टीवी पर पहली बार गेम शो शुरू किया- कौन बनेगा करोड़पति, जिसके बाद छोटे पर्दे पर गेम शो की भी लंबी लाइन लग गई. कहना गलत नहीं होगा कि ना तो अमिताभ बच्चन की तरह बड़े पर्दे पर दूसरा एंग्री यंग मैन हुआ और ना ही छोटे पर्दे पर उनके जैसा दूसरा सफल गेम शो होस्ट हो सका. साल 2000 में शुरू हुआ केबीसी अमिताभ बच्चन के साथ ऐसे जुड़ गया, जैसे जंजीर या दीवार. बॉलीवुड में उनको स्थापित करने में इन फिल्मों का जैसा योगदान था, वैसा ही आर्थिक संकट से उबारने और इंडस्ट्री में दोबारा स्थापित करने में केबीसी का अहम रोल है. केबीसी को इस रूप में अहमियत दी जानी चाहिए.
मोहब्बतें की तरह कौन बनेगा करोड़पति भी अमिताभ बच्चन की लाइफ की दूसरी जंजीर है. यह शो इन दिनों अपना सिल्वर जुबली मना रहा है. खास बात ये कि पच्चीस साल बाद भी अमिताभ बच्चन इस शो को उसी अंदाज में पेश करते हैं जैसे पहले किया करते थे. ना तो उनका जोश कम हुआ और ना ही उनका सेंस ऑफ ह्यूमर बदला. कम्प्यूटर के आगे ‘महाशय’ और ‘जी’ लगा कर उन्होंने एक नया प्रचलन ही शुरू कर दिया. यह लोगों की बोलचाल शामिल हो गया. जब गेम शो शुरू हुआ था तब अमिताभ 58 साल के थे, आज 82 पार हो चुके हैं. लेकिन इस उम्र में भी हॉट सीट पर बैठे प्रतियोगियों के साथ वार्तालाप करने, उनका मनोबल बढ़ाने, अपने पिता हरिवंश राय बच्चन की कविता, कहानी सुनाते और बीच-बीच में हास्य-विनोद करने का उनका अंदाज चिर युवा की तरह है. किसी भी उम्र का प्रतियोगी हो- किसी भी राज्य या भाषा में बातें करने वाला हो- वो सबसे बड़ी ही सहजता से तालमेल बिठा लेते हैं और गेम शो को मनोरंजक बना देते हैं.
25 साल में हॉट सीट पर दूसरी पीढ़ी आ गई
वास्तव में केबीसी केवल पैसे जीतने का शो भर नहीं रहा बल्कि अमिताभ बच्चन से मुलाकात करना, उनसे बातें करना, उनके साथ सेल्फी लेने का एक जीवंत ओपेरा बन गया. आज जब ढाई दशक बाद हम इस शो को देखते हैं- तो यहां आने वाले प्रतियोगियों की बातें अचरज भरी प्रतीत होती हैं. कोई कहता है- बीस साल से यहां आने का इंतजार कर रहे थे, कोई कहता है- जब यह शो शुरू हुआ तब वे पैदा ही हुए थे, कोई कहता है- उस साल उसकी शादी हुई थी, आज बच्चे बड़े हो गए आदि आदि… यानी एक पीढ़ी निकल गई और दूसरी पीढ़ी आ गई लेकिन मुस्कराते, खिलखिलाते और तालियां बजाते अमिताभ बच्चन होस्ट की सीट पर आज भी लोगों में जोश भरते हैं. नई उम्मीद जगाते हैं. वो जब फास्टेस्ट फिंगर फर्स्ट के लिए प्रश्न पूछते हैं तब 82 पार के इस शख्स की स्फूर्ति देखने लायक होती है. वो दौड़ते हुए पोडियम पर जाते हैं और फिर पूरी तत्परता के साथ प्रतियोगी को हॉट सीट पर बिठाते हैं. महिला हो तो कुर्सी थाम लेते हैं. सबसे पहले तो कॉन्टेस्टेंट की घबराहट दूर करते हैं और फिर भावुक करने वाले उस पल को हल्का-फुल्का बनाते हुए ‘प्रश्न’ पूछने का सिलसिला प्रारंभ करते हैं.
केबीसी में अमिताभ बच्चन होने के मायने
फिल्मों में अमिताभ बच्चन के होने के मायने हम बखूबी जानते हैं. अमिताभ बच्चन अपने रोल को लार्जर दैन लाइफ बना देने के लिए विख्यात रहे हैं. एंग्री यंग मैन की तरह फिल्मी पर्दे पर लार्जर दैन लाइफ का प्रभाव भी उनकी शख्सियत की विशिष्ठता से जुड़ा है. भारी भरकम किंतु मधुर आवाज में अपनी प्रभावशाली संवाद अदायगी से थ्रिल पैदा कर देना और दर्शकों के दिलों दिमाग को झकझोर देना उनके अभिनय कौशल की सबसे बड़ी देन है. सबसे हाल की उनकी फिल्म कल्कि में ऐसा प्रदर्शन एक बार फिर देखने को मिला है. दर्शक उनके कायल हो गए. कोई हैरत नहीं कि केबीसी के मंच पर भी अमिताभ बच्चन अपनी पर्सनाल्टी का पूरा रंग जमा देते हैं.
खास बात ये कि केबीसी के प्रस्तुतिकरण के लिए कोई तयशुदा स्क्रिप्ट नहीं लिखी गई थी कि अमिताभ बच्चन को प्रतियोगियों के साथ क्या-क्या बातें करनी हैं. शो का केवल कॉन्सेप्ट लिखा गया था. कंप्यूटर महाशय, कंप्यूटर महोदय, कंप्यूटर जी, ताला लगा दिया जाए या टिकटिकी जी, बज्जरबट्टू जैसे शब्द उन्होंने खुद से ही प्रयोग किये हैं. यह स्क्रीप्ट का हिस्सा नहीं था. अमिताभ बच्चन जब अपनी खास आवाज में इन शब्दों का उच्चारण करते हैं तो बड़े पर्दे पर फिल्मी डायलॉग का प्रभाव पैदा करते हैं. यह अमिताभ की ही खासियत है कि 25 साल बाद भी उनकी जुबान पर ये रिपिटेड शब्द तरोताजा लगते हैं और बोरियत पैदा नहीं करते. अमिताभ इसे हर बार नया – सा बना देते हैं.
जब 10 करोड़ पर 1 करोड़ पड़ा भारी
दिलचस्प बात ये कि साल 2000 में जब केबीसी शुरू हुआ तो उस शो को टक्कर देने के लिए कई और गेम शो भी टीवी पर धड़ाधड़ प्रसारित किए गए थे. लेकिन अनुपम खेर और मनीषा कोईराला का गेम शो ‘सवाल दस करोड़ का’ अमिताभ बच्चन के ‘एक करोड़’ के आगे फीका साबित हुआ. वहीं सलमान खान ने बिग बॉस के होस्ट के रूप में तो कामयाबी हासिल कर ली लेकिन ‘दस का दम’ को लंबा नहीं खींच सके. यहां तक कि शाहरुख खान ने भी केबीसी के एक सीजन को होस्ट किया और अपनी सी लोकप्रियता हासिल की, लेकिन जल्द ही यह शो अमिताभ की पर्सनाल्टी के साथ चस्पां हो गया. यानी डॉन का रिमेक तो हो सकता है लेकिन ओरिजिनल डॉन को पकड़ना वाकई मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. धीरे-धीरे केबीसी सिल्वर जुबली साल में प्रवेश कर गया. केबीसी भले ही प्रतियोगियों को जवाब देने के लिए चार ऑप्शन देता है लेकिन खुद केबीसी के सामने अमिताभ बच्चन के सिवा दूसरा कोई विकल्प नहीं जो उसे और आगे ले जा सके.
केबीसी से अमिताभ को भी मिली नई लाइफलाइन
इस कहानी की पृष्ठभूमि में साल 1996 में आयोजित विश्व सौंदर्य प्रतियोगिता आयोजन की चर्चा लाजिमी है. अमिताभ बच्चन की कंपनी एबीसीएल के बैनर तले बैंगलुरू में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता हुई थी. देश भर में विरोध इतना हुआ कि अमिताभ हताश-निराश हुए और उनकी कंपनी दिवालिया हो गई. अमिताभ पर कुल 90 करोड़ का कर्ज चढ़ गया. जिसे उतारने में वो असमर्थ साबित हो रहे थे. कार ड्राइवर को देने के लिए भी पैसे नहीं थे. अमिताभ बच्चन ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह जिंदगी का सबसे कठिन दौर था. एक तो 90 करोड़ का कर्ज, दूसरे उन पर कुल 55 किस्म के लीगल केस. अमिताभ के मुताबिक सन् 1997 से 1999 तक कर्ज वसूली वालों से वे बहुत परेशान रहे. प्रताड़ित भी होते रहे. रात-रात भर नींद नहीं आती थी. वसूली करने वाले दरबाजे पर आकर पैसे मांगते थे तो वो बेचैन हो जाते थे.
लेकिन उनकी जिंदगी में चमत्कार हुआ जैसा सन् 1973 में जंजीर मिलने के बाद हुआ था. अमिताभ बच्चन को यश चोपड़ा की फिल्म मिली- मोहब्बतें और साथ ही सिद्धार्थ बसु जैसे दिग्गज टीवी शो निर्माता का साथ मिला, जिन्होंने टीवी पर कई क्विज शो करके सफलता हासिल की थी. सिद्धार्थ बसु ने पहली बार साल 2000 में स्टार प्लस के लिए अमिताभ बच्चन के साथ कौन बनेगा करोड़पति शो शुरू किया था. इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी गेम शो हू वांट्स टू बी अ मिलिनेयर से लाइसेंस लेकर इसका हिंदी संस्करण प्रारंभ किया था.
केबीसी का देश भर में उन्माद देखने को मिला
केबीसी के पहले ही एपिसोड ने रातों रात देश में जैसे उन्माद पैदा कर दिया. यह शो इतना लोकप्रिय हो गया कि टेलीफोन बूथ पर नंबर लगाने वालों की लंबी-लंबी कतारें लग गईं. तब सबके हाथ में आज की तरह स्मार्ट मोबाइल फोन नहीं थे. उस दौर में क्या आज भी केबीसी का फोन लग जाना और वहां से आमंत्रण सौभाग्यशाली होने की पहचान है. तब हर तरफ केबीसी की ही चर्चा आम थी. दफ्तर, स्कूल, कॉलेज पहुंचते ही लोग बीती रात दिखाये गये एपिसोड की चर्चा में मशगूल हो जाते. उठते जागते, घूमते फिरते केबीसी गॉसिप का सबसे हॉट टॉपिक था. वास्तव में केबीसी ने लोगों के दिलों दिमाग पर नशे सा ऐसा असर किया, जो आज तक बरकरार है. यह नशा आज भी उतरा नहीं है.
केबीसी में दिखती है भारत की विविधता की झांकी
यकीनन केबीसी ने कइयों के जीवन बदल दिये. किसी की झोंपड़ी महल बन गई, किसी का लाखों का कर्ज उतरा, कोई गंभीर बीमारी का इलाज करा सका, कोई धूमधाम से बेटी की शादी कर सका, किसी की बेरोजगारी दूर हुई, किसी ने मां के सपने पूरे किये और तो न जाने कितने एनजीओ की आर्थिक मदद हुई. भारत जैसे विकासशील देश में निम्न मध्य वर्ग की तादाद कितनी ज्यादा है- और यहां कितना गम है, कौन कितना जरूरतमंद है, किस-किस के कैसे सपने और अरमान हैं, कौन कितना फटेहाल है और कितना अमीर- आज सोनी चैनल पर प्रसारित होने वाला केबीसी शो उसकी बानगी पेश करता है. और अमिताभ बच्चन भारत की इस विविधता की छवि प्रस्तुत करने वाले अनोखे सूत्रधार हैं. आशा करें विविधता की यह झांकी जारी रहे.
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