Entertainment: श्याम बेनेगल को सिनेमा का था ऐसा जुनून, कोई बीमारी कभी फिल्ममेकिंग से रोक नहीं सकी – #iNA

आमतौर पर सरकारों का ध्यान सिनेमावालों को भारत रत्न देने की ओर कम जाता है. महान फिल्मकार सत्यजित राय को सन् 1992 में भारत रत्न देने का ऐलान तब हुआ जब उससे पहले उनको ऑस्कर सम्मान देने की घोषणा कर दी गई थी. यानी हम कह सकते हैं सत्यजित राय को ऑस्कर पहले और भारत रत्न बाद में मिला. दुर्भाग्य ये कि इन दोनों बड़े पुरस्कारों को हासिल करने के बाद वो सन् 92 में ही 70 साल की आयु में दुनिया से चल बसे. अब बिमल रॉय, सत्यजित राय जैसे दिग्गज फिल्ममेकर्स की धारा की आखिरी कड़ी और समानांतर सिनेमा के पुरोधा श्याम बेनेगल ने भी 90 साल की आयु में अलविदा कह दिया. निस्संदेह श्याम बेनेगल की शख्सियत और योगदान भी भारत रत्न के योग्य है. अंकुर (1974) से मुजीब-दी मेकिंग ऑफ ए नेशन (2023) तक के उनकी उपलब्धियों ने भारतीय सिनेमा को दुनिया में पहचान दी है.

फिल्ममेकर भी संवेदनशील रचनाकार होता है, इसे श्याम बेनेगल ने भी साबित किया है. उनकी तबीयत आज से नहीं बल्कि करीब 4-5 साल से ठीक नहीं थी. इसके बावजूद उनके भीतर सिनेमाई जुनून कुछ इस कदर रचा बसा था कि 90वां जन्मदिन पर भी उन्होंने कुछेक फिल्में बनाने की बात कही थी. यह हाल तब था जब अपनी हालिया फिल्म मुजीब-दी मेकिंग ऑफ ए नेशन की बनाने के दौरान और भी बीमार पड़ गए थे लेकिन कोरोना काल और खुद की बीमारी में ही उन्होंने फिल्म पूरी की और कहा कि भविष्य की नई योजनाओं के लिए जुटने की कोशिश कर रहा हूं.

स्वास्थ्य खराब लेकिन सिनेमा बनाने का ख्वाब

लेकिन फिल्म के रिलीज पर स्वास्थ्य खराब होने के कारण बांग्लादेश में नहीं जा पाए. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा भी था- काफी समय से मेरा स्वास्थ्य खराब चल रहा था. इस वजह से बांग्लादेश में प्रीमियर अटेंड नहीं कर सका. मुझे सख्त अफसोस है इस बात का. वहां की प्रधानमंत्री का मुझे फोन आया था. उन्होंने कहा भी था-हाऊ कैन आई रिपे यू फॉर दिस ब्यूटीफुल फिल्म. उन्होंने यह भी कहा था- आप आ जाएं, आपके लिए डॉक्टरों से लेकर एंबुलेंस तक की सारी व्यवस्था हैं. उन्होंने मेरे लिए हेलीकॉप्टर तक का इंतजाम किया था. इसके बावजूद मैं स्वास्थ्य खराब होने के कारण नहीं जा सका.

85 पार में भी दो देशों के साझा प्रोजेक्ट पर किया काम

श्याम बेनेगल ने अपनी लाइफ में मंथन से लेकर तमाम ऐसे प्रोजेक्ट्स पूरे किये जो काफी जटिल थे, लेकिन उनकी आखिरी फिल्म मुजीब कई कारणों से अहम हो जाती है. एक तो उम्र का ऐसा पड़ाव जब उनके जैसे कई दिग्गज फिल्ममेकर घर बैठे हैं लेकिन श्याम बेनेगल 85 पार होकर भी भारत और बांग्लादेश की सरकारों के साझा प्रोजेक्ट पर काम करने को तैयार होते हैं. मुजीब फिल्म की मेकिंग को लेकर उन्होंने कहा था – एक कॉमर्शियल फिल्म का निर्माण करना उतना चुनौतीपूर्ण काम नहीं है जितना कि एक बॉयोपिक फिल्म का निर्माण करना. एक तो जिस व्यक्ति की जीवनगाथा पर आप फिल्म बना रहे हैं उससे संबंधित तमाम ऐतिहासिक जानकारियों को जुटाना बहुत मुश्किल काम होता है. फिर उस विराट व्यक्तित्व को पर्दे पर साकार करने वाला उस क्षमता का कलाकार चाहिए. उस दौर को जीवंत करने के लिए वैसी ही पृष्ठभूमि तैयार करने की चुनौती हमारे सामने थी. हमने इन सारी चुनौतियों को स्वीकार किया और एक शानदार फिल्म का निर्माण करने में कामयाब हुए.

मुजीब-दी मेकिंग ऑफ ए नेशन की ख्याति

मुजीब-दी मेकिंग ऑफ ए नेशन की अंतरराष्ट्रीय ख्याति अपने आप में इतिहास रचने जैसा ही है. फिल्म बांग्लादेश बनने की कहानी कहती है लेकिन संयोग देखिए कि इस फिल्म के ठीक एक साल बाद बांग्लादेश बर्बाद हो रहा है. फिल्म बांग्लादेश के निर्माता शेख मुजीबुर्रहमान के संघर्ष और बलिदान की गाथा प्रस्तुत करती है, जिनकी बेटी शेख हसीना इन दिनों भारत में शरणार्थी हैं. अगर यह फिल्म 2023 में नहीं आ पाती तो संभव है आज के हालात में कभी पूरी हो पाती. लेकिन श्याम बेनेगल और उनकी टीम की काबिलियत कि उन्होंने कोविड काल की दुश्वारियों के बावजूद फिल्म को पूरा किया. फिल्म को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली. बांग्लादेश में इस फिल्म को देखने के बाद सिनेमा हॉल में लोग रोते देखे गए. लेकिन आज उसी बांग्लादेश की स्थिति एकदम उलट है.

भाषा के जरिए राष्ट्रप्रेम सिखाती है फिल्म

मुजीब फिल्म की मेकिंग में भारत सरकार की भूमिका प्रमुख रही है. फिल्म के पार्श्व को इसे प्रतीकात्मक तौर भी समझा जा सकता है, क्योंकि बांग्लादेश के निर्माण में भी भारत का पूरा समर्थन मिला था. वैसे तो यह बॉयोपिक मूलतः बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान के राजनीतिक संघर्ष की कथा सुनाती है लेकिन साथ में यह भी बताती है कि किसी राष्ट्र के निर्माण में उस देश की भाषा कितना अहम रोल निभाती है. मातृभाषा का प्रेम, लोक संस्कृति का प्रेम, अपनी माटी के प्रति प्रेम ही सच्चा राष्ट्रप्रेम है. धर्मांधता राजनीति और सत्ता के लिए हो सकती है लेकिन राष्ट्रप्रेम तो अपने इतिहास, अपनी संस्कृति से प्रेम करना सिखाता है. इसे श्याम बेनेगल ने पूरी तन्मयता के साथ पर्दे पर उतारा है.

बांग्लादेश के फिल्मी इतिहास का नया रिकॉर्ड

मुजीब फिल्म बांग्लादेश फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (बीएफडीसी) और भारत सरकार के नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएफडीसी) की साझेदारी में बनी थी. दोनों देशों में साल 2018 में समझौता हुआ था. 83 करोड़ रुपए के बजट से यह बननी शुरू हुई लेकिन कोरोना के दौरान अटक गई. हालात ठीक होने के बाद शूटिंग शुरू हुई. 2020 में बंगबंधु जन्म शताब्दी वर्ष पर इसे बन जाना था, लेकिन पहले कोरोना और फिर श्याम बेनेगल की तबीयत खराब होने के चलते फिल्म 13 अक्तूबर, 2023 में बांग्लादेश में और भारत में 27 अक्तूबर, 2023 को रिलीज हुई.

श्याम बेनेगल ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था- “बांग्लादेश के इतिहास में इस फिल्म की तरह वहां कोई दूसरी फिल्म इतनी सफल नहीं हुई. मैं खुश हूं कि भारत में भी इसे भरपूर सराहना मिली है. फिल्म में करीब 150 से ज्यादा कलाकार थे जिनमें सौ से ज्यादा कलाकार बांग्लादेश के थे. वैसे एक तथ्य तो यह भी है कि मुजीब को लेकर की गई लगातार दिन रात की मेहनत में ही उनकी तबीयत और ज्यादा बिगड़ती चली गई.

श्याम बेनेगल को सिनेमा का था ऐसा जुनून, कोई बीमारी कभी फिल्ममेकिंग से रोक नहीं सकी


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