Entertainment: ताजमहल मोहब्बत की निशानी या गरीबों का मजाक… एक ही समय में साहिर और शकील में क्यों दिखा मतभेद? – #iNA

महज अड़तीस साल की आयु में 17 जून 1631 को मुमताज महल का इंतकाल हुआ. उनका जन्म अप्रैल 1593 में हुआ था. दुनिया उन्हें मुग़ल साम्राज्य की महारानी के तौर पर जानती है. उनकी याद में शाहजहां का बनवाया आगरा का ताजमहल अपनी खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात है. और इसी वजह से इश्क, मोहब्बत, ग़ज़ल, कविता, नाटक, सिनेमा में भी इस ताजमहल का अनगिनत बार जिक्र किया गया है. ताजमहल नाम से फिल्में बनीं तो ताजमहल का टेंडर नाटक भी खेला गया तो वहीं पूर्व प्रधानमंत्री और कवि अटल बिहारी बाजपेयी ने कविता लिखी थी- जब रोया हिंदुस्तान सकल, तो बन पाया यह ताजमहल.
ऐतिहासिक ताजमहल के संगमरमरी साये में किसी ने मोहब्बत के गीत गाए तो किसी ने ग़म का तराना भी गुनगुनाया. कला, सौंदर्य के प्रेमियों में सैकड़ों साल से यही रिवाज देखने को मिला है. दिलचस्प बात ये कि इसी बीच ताजमहल को लेकर दो किस्म का नजरिया भी देखने तो मिला. खासतौर पर मशहूर शायर साहिर लुधियानवी और गीतकार शकील बदायूंनी में दो नजरिये का टकराव साफ-साफ देखा गया है. शकील बदायूंनी ने ताजमहल को मोहब्बत की निशानी बताया तो साहिर लुधियानवी ने इसे गरीबों का मजाक करार दिया. वो भी एक ही समय में. आखिर इसकी वजह क्या थी, इसे समझने की कोशिश करेंगे.
सन् 1964 में दोनों शायर ताजमहल पर टकराए
साल 1964 की बात है. इसी साल ये दोनों ही गीत सामने आए. एक तरफ गीत गूंजा- एक शहंशाह ने बनवा के हंसी ताजमहल… सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है. यह गीत फिल्म ‘लीडर’ का था. इस गीत को दिलीप कुमार और वैजयंती माला पर फिल्माया गया था. इस गीत को लिखा था- गीतकार शकील बदायूंनी ने और संगीत दिया था- नौशाद ने. गाया था- लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी ने.
इस गीत की कुछ और पंक्तियां हैं-
ये हसीं रात ये महकी हुई पुर-नूर फजा
हो इजाजत तो ये दिल इश्क का इजहार करे
इश्क इंसान को इंसान बना देता है
किस की हिम्मत है मोहब्बत से जो इंकार करे
आज तकदीर ने ये रात सुहानी दी है
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज महल…
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
साल 1964 की ही बात है. इसी साल एक और गीत गूंजा- मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे… एक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक. फिल्म का नाम था- ग़ज़ल. फिल्म में इस गीत को सुनील दत्त और मीना कुमारी पर फिल्माया गया था. इस गीत को साहिर लुधियानवी ने लिखा था और संगीत दिया था मदन मोहन ने. गाया था- मोहम्मद रफी ने.
इस गीत की कुछ और पंक्तियां देखिए-
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिये तश्शीर का सामान नहीं
क्यूंकि वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
………..
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा, ये महल
ये मुनक़्कश दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे…
सन् 1957 में ‘दुनिया’ को अलग नजरिये से देखा
इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और कि दो बड़े शायर एक ही विषय पर एक ही समय में दो अलग-अलग किस्म के नजरिए के साथ आमने-सामने आ जाते हैं. अलबत्ता दोनों नजरियों को खारिज नहीं किया जा सकता. ताजमहल यकीनन मोहब्बत की निशानी है तो मुफलिसों के लिए सपनों की दुनिया. खास बात ये कि ऐसा संयोग पहली बार नहीं हुआ था. इससे पहले सन् 1957 में भी यही संयोग देखने को मिला था. यही दोनों शायर थे. यानी शकील और साहिर. दो अलग-अलग चर्चित फिल्में थीं और मुद्दा था- दुनिया. इस मुद्दे पर भी इन दोनों शायरों ने दो अलग-अलग किस्म की राय सामने रखी.
साहिर लुधियानवी ने गुरुदत्त की प्यासा में लिखा- ये दुनिया अलग मिल भी जाए तो क्या है… साल 2025 गुरुदत्त की जन्मशताब्दी का है. इस साल हम उनकी फिल्मों और सिनेमा में उनके योगदान को याद भी कर रहे हैं. इस बीच उनके इस गीत की खोजबीन और भी ज्यादा बढ़ गई है. उन्होंने ही लिखा था- जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं… प्यासा साल 1957 में रिलीज हुई थी. वहीदा रहमान और गुरुदत्त की इस फिल्म को आज भी शिद्दत से याद किया जाता है. प्यासा में संगीत दिया था- एसडी बर्मन ने. गुरुदत्त पर इस गाने को फिल्माया गया था.
दिलचस्प बात ये कि इसी साल महबूब खान लेकर आए- मदर इंडिया. हिंदी की ये दोनों ही फिल्में खासी अहम हैं. हिंदी की दस सबसे क्लासिक फिल्मों में इन दोनों का अहम स्थान है. मदर इंडिया में शकील बदायूंनी ने जो दुनिया को लेकर गीत लिखा, वह साहिर के नजरिए के बिल्कुल उलट है. शकील ने लिखा- दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा… मदर इंडिया में इस गीत को नरगिस पर फिल्माया गया था. संगीत दिया था- नौशाद ने.
आखिर ऐसा क्यों हुआ. दुनिया को देखने और समझने से लेकर ताजमहल को लेकर साहिर और शकील में टकराव की आखिर वजह क्या रही होगी. खास बात ये कि सिनेमा में दोनों शायर करीब-करीब समकालीन रहे. शकील की पैदाइश सन् 1916 की है जबकि साहिर की पैदाइश अन 1921 की है. उम्र में फर्क करीब पांच बरस का ही है. दोनों बड़े शायर थे, बड़े गीतकार थे और बड़े तजुर्बेकार भी. दोनों के गीतों ने हिंदी सिनेमा को अपनी-सी ऊंचाई दी है.
साहिर और शकील के गीतों में दिखा वैचारिक मतभेद
हर एक शख्सियत की अपनी ऊंचाई होती है अपना-अपना बैकग्राउंड होता है, अपनी सोच और फिलॉसफी होती है. इस बारे में मशहूर गीतकार गुलशन बावरा ने एक बार कहा था कि साहिर मूलत: प्रोग्रेसिव शायर थे. वह प्रगतिशील आंदोलन से निकल कर आए थे. उनका नजरिया उस आंदोलन की दिन था जहां असमानता, गरीबी, मुफलिसी, शोषण और भूख को लेकर अलग किस्म के जज्बाती सवाल थे. लेकिन शकील यकीनी तौर पर शायर होने के साथ-साथ फिल्म गीतकार भी थे. वह फिल्मों में कहानी और किरदार के मिजाज के मुताबिक गीत लिखना अधिक मुनासिब समझते थे.
इसके अलावा एक अंतर यह भी है कि साहिर ने फिल्मों के लिए कम लिखे. जैसा कि हम जानते हैं साहिर के फिल्मी गीत महज लोकप्रियता के पैमाने पर नहीं रचे गए. उनका गैर फिल्मी लिटरेचर भी उतना ही अहम है. उनकी पहले से लिखी बहुत सी गजलों को फिल्मों में शामिल किया गया जबकि शकील ने फिल्मों के लिए ज्यादा से ज्यादा लिखे और फिल्मों की मांग को ध्यान में रखकर लिखे. लिहाजा दोनों की सोच और नजरिये में फर्क नेचुरल था.
हालांकि यह जवाब और खोज सैद्धांतिक ही है. वास्तव में क्या दोनों के बीच किसी प्रकार का द्वंद्व था, अभी इसकी और तहकीकात की दरकार है. इस बारे में अभी और अनुसंधान की जरूरत है कि आखिर दो बड़े समकालीन शायरों की सोच और नजरिए में इतना बड़ा टकराव महज इत्तेफाक है या इसके पीछे कुछ और ही कहानी है.
यह भी पढ़ें :इरफान खान-कोंकणा सेन की जोड़ी, केके का अलविदा 18 साल बाद कितनी बदल गई मेट्रो लाइफ?
ताजमहल मोहब्बत की निशानी या गरीबों का मजाक… एक ही समय में साहिर और शकील में क्यों दिखा मतभेद?
देश दुनियां की खबरें पाने के लिए ग्रुप से जुड़ें,
#INA #INA_NEWS #INANEWSAGENCY
Copyright Disclaimer :-Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for “fair use” for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing., educational or personal use tips the balance in favor of fair use.
Credit By :-This post was first published on https://www.tv9hindi.com/, we have published it via RSS feed courtesy of Source link,